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संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य

  संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य   1.     औद्योगिक विवाद क्या है ? औद्योगिक विवाद अधिनियम , 1947 के अनुसार “ industrial dispute” means any dispute or difference between employers and employers, or between employers and workmen, or between workmen and workmen, which is connected with the employment or non-employment or the terms of employment or with the conditions of labour, of any person; अर्थात " औद्योगिक विवाद" का मतलब किसी उद्योग या कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाले मतभेद या संघर्ष से है। यह विवाद निम्नलिखित पक्षों के बीच हो सकता है: 1.        नियोक्ता और नियोक्ता के बीच – जब दो या अधिक कंपनियां या प्रबंधन इकाइयाँ किसी औद्योगिक या व्यावसायिक मुद्दे पर असहमति रखती हैं। जैसे एक प्रबंधन इकाई कामगारों को बोनस देना चाहती है लेकिन दूसरी प्रबंधन इकाई इस विषय पर असहमत है। 2.        नियोक्ता और श्रमिक के बीच – जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी समूह नौकरी से संबंधित...

मुख्य परीक्षा के लिए लेखन कौशल का विकास

“एक अच्छे लेखक का जन्म नहीं विकास होता है।” “शुद्ध, सुनिश्चित एवं स्पष्ट शब्दावली के माध्यम से भावों एवं विचारों के क्रमायोजित लिपिबद्ध प्रकाशन को लिखित रचना कहते हैं। लेखन कौशल में सुधार एक दिन में नहीं होगा। इसके लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। लेकिन एक बार जब आप इसे अपना लेते हैं, तो यह आपका है। आत्म-विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। हम प्रतिदिन अपने ज्ञान और अनुभव से कुछ नया सीखते हैं और उसे अपने समग्र व्यक्तित्व में जोड़ते जाते हैं । दृढ इच्छाशक्ति, नियमित अभ्यास और बेहतर मार्गदर्शन से हम अपने लेखन को तराश कर खुद में गुणात्मक सुधार ला सकते हैं। बेहतर लेखन कौशल सिविल सेवा की परीक्षा में सफलता का आधार स्तंभ माना जाता है। परंतु प्रत्येक प्रतिभागी के मन में यह प्रश्न अवश्य उत्पन्न होता है कि इस लेखन कौशल को कैसे उत्कृष्ट बनाया जा सकता है और किस प्रकार इसमें गुणात्मक सुधार लाया जा सकता है। बेहतर लिखने की आकांक्षा में हम कई बार लिखना प्रारंभ ही नहीं कर पाते है। हम सोचते है कि जब सबकुछ मुझे अच्छे से आ जायेगा तो मैं लिखना प्रारंभ करूँगा और हम यहीं से अपने लेखन की कला के विका...

BPSC परीक्षा के पैटर्न में बदलाव; अब क्या हो रणनीति

परिवर्तन संसार का नियम है। प्रकृति में सबकुछ स्वयं को बेहतर बनाने के लिए परिवर्तित करते रहता है। समय के मांग के अनुसार व्यक्तित्व अथवा संस्था में बदलाव ही प्रगतिशीलता का आधार है। इसे प्रत्येक सिविल सेवा के अभ्यार्थी को स्वीकार कर अपनी तैयारी प्रारंभ करनी चाहिए। इसी कड़ी में 68वी बीपीएससी में बड़े बदलाव को समझा जा सकता है। यूपीएससी एवम् अन्य पड़ोसी राज्यों के सिलेबस को देखते हुए एवम् वर्तमान समय की मांग को देख कर बीपीएससी द्वारा परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया गया है। कई बार छात्रों को अनुभव होता था कि किसी ख़ास वैकल्पिक का चयन या बूम होने से विद्यार्थी डिप्टी कलेक्टर बन जाता है या ऑब्जेक्टिव परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग नहीं होने के कारण तुक्का मारकर भी लोग सफल हो जा रहे है। ऐसे में BPSC का सिलेबस परिवर्तन अपरिहार्य हो गया था। आइये समझते है बीपीएससी के नए बदलाब को और जानते है कैसे इस बदलाब में स्वयं को बेहतर बनाया जाए। प्रारंभिक परीक्षा में बदलाब प्रारंभिक परीक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में निगेटिव मार्किंग की शुरुआत की गयी है। जिसका मुख्य उद्देश्य तुक्केबाज और गैर-गंभीर अभ्...

सिविल सेवा परीक्षा में सफलता के लिए व्यक्तित्व निर्माण

क्या आपने कभी सोचा है कि लाखों बच्चे प्रतिवर्ष सिविल सेवा की तैयारी प्रारंभ करते है लेकिन सफलता महज 1% से भी कम उम्मीदवारों को मिलती है? वह कौन सी बात है, जो सफल उम्मीदवारों को 99% असफल उम्मीदवारों से अलग करती है? इस प्रश्न का उत्तर खोजनें पर निःसंदेह हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि सिविल सेवा की परीक्षा में सफलता और असफलता के मध्य व्यक्तिव निर्माण की एक बड़ी दिवार खड़ी है जिसके बिना सफलता की कामना नहीं की जा सकती है। व्यक्तित्व निर्माण क्या है और यह क्यों जरूरी है? व्यक्तित्व अंग्रेजी के पर्सनालिटी (Personality)  शब्द का रूपान्तर है। अंग्रेजी के इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘पर्सोना’ (Persona)   शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- ‘नकाब’ । व्यक्तित्व का अर्थ मनुष्य के व्यवहार की वह शैली है जिसे वह अपने आन्तरिक तथा बाह्य गुणों के आधार पर प्रकट करता है। व्यक्ति के बाह्य गुणों का प्रकाशन उसकी पोशाक, वार्ता का ढंग, आंगिक अभिनय, मुद्राएँ, आदत तथा अन्य अभिव्यक्तियाँ हैं। मनुष्य के आंतरिक गुण हैं उसकी अन्तःप्रेरणा या उद्देश्य, संवेग, प्रत्यक्ष, इच्छा आदि। व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के...

सिविल सेवा परीक्षा तैयारी में cycias.com का सहयोग

भारत में सिविल सेवा की शुरुवात स्वतंत्रता पूर्व ब्रिटिश शासन के दौरान हुई । हालाँकि शुरुआत में सिविल सेवा में भारतीयो का प्रतिनिधत्व नहीं था , लेकिन समय के साथ सुधारात्मक कदम उठाते हुए ब्रिटिश शासन ने सिविल सेवा में भारतीयो का प्रवेश सुनिश्चित किया । तब से स्वतंत्रता के बाद तक शासन व्यवस्था में अनेक बदलाव हुए लेकिन सिविल सेवा जुड़े उत्तरदायित्व ,चुनौती और समाज में प्रतिष्ठा की वजह से सिविल सेवा के प्रति आज भी जबर्दस्त आकर्षण है । निजी क्षेत्र में अनेक अवसर उपलब्ध होने के बाद भी सिविल सेवा में चुने जाने का सपना आज हर युवा की होती है , लेकिन क्या कारण है की लाखो छात्रो कि तैयारी करने और शामिल होने के बाद भी अंतिम रूप से कुछ ही छात्र सफल हो पाते है । इसका मुख्य कारण सीमित सीटो की संख्या के कारण अत्यधिक प्रतिस्पर्धा है । संघ सिविल सेवा के अलावे कई बच्चे राज्य सिविल सेवाओं में भी अपना योगदान समर्पित करते है। बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा की परीक्षा हर साल तीन चरणों में आयोजित की जाती है । तीनो चरणों ( प्रारंभिक परीक्षा , मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार ) में सफल अभ्यर्थी की प्राथमिकता ...