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संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य

  संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य   1.     औद्योगिक विवाद क्या है ? औद्योगिक विवाद अधिनियम , 1947 के अनुसार “ industrial dispute” means any dispute or difference between employers and employers, or between employers and workmen, or between workmen and workmen, which is connected with the employment or non-employment or the terms of employment or with the conditions of labour, of any person; अर्थात " औद्योगिक विवाद" का मतलब किसी उद्योग या कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाले मतभेद या संघर्ष से है। यह विवाद निम्नलिखित पक्षों के बीच हो सकता है: 1.        नियोक्ता और नियोक्ता के बीच – जब दो या अधिक कंपनियां या प्रबंधन इकाइयाँ किसी औद्योगिक या व्यावसायिक मुद्दे पर असहमति रखती हैं। जैसे एक प्रबंधन इकाई कामगारों को बोनस देना चाहती है लेकिन दूसरी प्रबंधन इकाई इस विषय पर असहमत है। 2.        नियोक्ता और श्रमिक के बीच – जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी समूह नौकरी से संबंधित...

बाल श्रम तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986




"बाल श्रम" शब्द को सामान्यता बच्चों द्वारा किये गए ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी शिक्षा और उनकी गरिमा से वंचित करता है, और जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में (5-14) आयु वर्ग के कामकाजी बच्चों की कुल संख्या 43.53 लाख है। जिसमें से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश भारत में कुल कामकाजी बच्चों का लगभग 55% हैं। 2021 में ILO द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “बाल श्रम: वैश्विक अनुमान 2020, रुझान और आगे की राह” में आईएलओ और यूनिसेफ ने अनुमान लगाया है कि दुनिया भर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर 160 मिलियन हो गई है जिसमें पिछले चार वर्षों में 8.4 मिलियन बच्चों की वृद्धि हुई है और COVID-19 के प्रभावों के कारण लाखों बच्चे जोखिम में हैं। आईएलओ के इस रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र में बाल श्रम में 70 प्रतिशत (11.2 करोड़) बच्चे हैं, इसके बाद सेवा क्षेत्र में 20 प्रतिशत (3.14 करोड़) और उद्योग में 10 प्रतिशत (1.65 करोड़) हैं। 5 से 11 वर्ष की आयु के लगभग 28 प्रतिशत बच्चे और 12 से 14 वर्ष की आयु के 35 प्रतिशत बच्चे बाल श्रम में संलग्न रहने के कारण स्कूल से बाहर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों (14 प्रतिशत) में बाल श्रम की व्यापकता शहरी क्षेत्रों (5 प्रतिशत) की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। आज के इस टॉपिक में हम बाल श्रम तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 (Child Labour and Child & Adolescent Labour (Prohibition and Regulation) Act, 1986) के बारे में चर्चा करेंगे।
बाल श्रम तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

बाल श्रम तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

👉संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा। 

👉अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 10 मूलभूत अभिसमयों में से दो अभिसमय क्रमशः अभिसमय संख्या 138 (काम करने के न्यूनतम उम्र का निर्धारण) तथा 182 (बाल श्रम के निकृष्टतम [worst] रूपों का प्रतिषेध) बाल श्रम उन्मूलन से ही जुड़ा हुआ है। अभिसमय संख्या 138 के अनुसार किसी भी बालक से कार्य लेने का उम्र अनिवार्य स्कूली शिक्षा के उम्र या अन्य मामलों में कम से कम 15 वर्ष होना चाहिए जिसमें विकासशील देशों को अपवाद स्वरुप कुछ छूट है। अभिसमय संख्या 182 में ऐसे खतरनाक उद्योगों में जिसमें बच्चे के शारीरिक, मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य पर असर होगा वहाँ से तत्काल प्रभाव से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम से हटाने की बात की गयी है।

👉कार्य के न्यूनतम उम्र निर्धारण के लिए ILO ने कई अभिसमयों को पारित किया है। जैसे अभिसमय संख्या 05 तथा 59 (उद्योगों में न्यूनतम उम्र के लिए), अभिसमय संख्या 07 तथा 58 (समुद्रों में कार्य हेतु न्यूनतम उम्र के लिए), अभिसमय संख्या 33 और 60 (गैर उद्योगों में न्यूनतम उम्र के लिए), अभिसमय संख्या 10 (कृषि में न्यूनतम उम्र के लिए), अभिसमय संख्या 123 (खानों में कार्य हेतु न्यूनतम उम्र के लिए) आदि।

👉इसी प्रकार ILO ने न्यूनतम उम्र से संबंधी कई सिफारशों को भी पारित किया है। जैसे सिफारिश संख्या-41 (गैर-उद्योगों के लिए), सिफारिश संख्या-52 (परिवार उद्यम में), सिफारिश संख्या-96 (कोयला खदानों में), सिफारिश संख्या- 124 (खानों में) आदि।

👉अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2021 को “बाल श्रम के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” घोषित किया। इसके तहत इसने 2025 बाल श्रम के सभी रूपों का तथा 2030 तक बंधुआ श्रम के सभी रूपों का उन्मूलन करने पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। 

👉 भारत सरकार ने ILO के अभिसमय संख्या 138 और 182 को अनुसमार्थित करते हुए 2016 में बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम को अधिक सख्त बनाते हुए बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 को लागू किया है।

बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

इस अधनियम का उद्देश्य बालकों का नियोजन सभी व्यवसायों में तथा किशोरों का नियोजन खतरनाक व्यवसायों में नहीं करने देना तथा दोषी नियोजकों पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई करना है। इस अधिनियम की मुख्य बातें निम्नलिखित है-

👉 अधिनियम की धारा-2 के अनुसार वह व्यक्ति जिसने अपने उम्र का 14 वर्ष पूर्ण कर लिया हो लेकिन 18 वर्ष पूर्ण नहीं किया हो किशोर (Adolescent) कहलाता है। साथ ही वह व्यक्ति जिसका उम्र 14 वर्ष तक अथवा वैसा उम्र जिसका उल्लेख नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 में, दोनों में जो ज्यादा हो, बालक (Child) कहलाता है।
👉 अधिनियम की धारा 3 के तहत बालक को किसी भी व्यवसाय या प्रकिया में नियोजित करने अथवा कार्य करने की अनुमति नहीं दी गयी है। लेकिन बालक अपने गैर-खतरनाक परिवारिक प्रतिष्ठान में एवं बाल कलाकार के रूप में किसी दृश-श्रव्य मनोरंजन उद्योग में (सर्कस को छोड़कर) विहित सुरक्षा शतों के साथ अपने स्कूल के समय को छोड़कर या छुट्टी के दिनों में सहायता कर सकताहै।यहाँ ध्यान देनेवाली बात यह है कि परिवार से तात्पर्य है नियोजक, नियोजक के पति या पत्नी, उनके बच्चे, तथा नियोजक के भाई बहन।
👉अधिनियम में धारा 3A को जोड़कर परिसंकटमय (Hazardous) उद्योगों में किशोरों के नियोजन को रोका गया है। खतरनाक उद्योगों की एक अनुसूचि दी गयी है जिसमें ईट-भट्ठे पर कार्य, बीड़ी बनाने का कार्य सहित कुल 38 प्रकार के परिसंकटमय कार्यों को शामिल किया गया है।
👉 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बच्चों को किसी भी प्रकार के नियोजन में कार्य करने से पूर्ण रूप से रोक लगाया गया है। किशोरों को गैर-परिसंकटमय कार्यों में नियोजित किया जा सकता है लेकिन उसके कार्यों को विनियमित (Regulate) किया गया है। जैसे किसी किशोर से एक दिन में 6 घंटे से अधिक कार्य नही लिया जाएगा, कम-से-कम एक घंटे का विश्राम-अंतराल दिए बिना तीन घंटे से अधिक कार्य नहीं लिया जाएगा, सुबह 8 बजे से पहले तथा शाम 7 बजे के बाद किशोरों से काम नहीं लिया जाएगा, सप्ताह में एक दिन अवकाश दिया जाएगा।
👉अगर किसी बालक या किशोर की उम्र के संबंध में निरीक्षक और नियोजक के बीच विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे निरीक्षक द्वारा विहित चिकित्सा पदाधिकारी के पास निर्णय के लिए भेजा जाएगा।
👉 बालकों एवं किशोरों को यदि कोई नियोजक अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करके नियोजित करता है तो ऐसा अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अनुसार ऐसे अपराध जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होतीहै, संज्ञेय अपराध कहलाते है। संज्ञेय अपराध सामान्यतः गंभीर होते हैं जिनमें पुलिस को तुरन्त अनुसंधान प्रारंभ करना होता है। संज्ञेय अपराध में पुलिस बिना मेजिस्ट्रेट की आज्ञा अनुसंधान प्रारम्भ कर सकती है। सीआरपीसी में यह भी कहा गया है कि पुलिस को ऐसे मामलों में एफआईआर (FIR) दर्ज करना चाहिए।
👉 किसी भी प्रतिष्ठान में बालक या परिसंकटमय प्रतिष्ठान में किशोर को नियोजित करने पर दोषी व्यक्ति को 20 हजार से 50 हजार तक जुर्माना या 6 माह से 2 वर्ष तक का कारावास या दोनों हो सकता है। दूसरी बार अपराध करने के मामले में दोषी व्यक्ति जो कम से कम 1 वर्ष का कारावास जिसकी अवधि 3 वर्ष तक बढाई जा सकती है, दिया जा सकता है। 
👉 एक बार विमुक्त कर पुनर्वासित किए गए बच्चे को यदि यदि माता/पिता या अभिभावक द्वारा फिर से काम पर रखा जाता है तो उनपर 10 हजार रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
👉 किशोरों को यदि गैर परिसंकटमय नियोजनों में नियोजित किया जाता है और उनके कार्य के घंटो, अवकाश आदि के प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है तो नियोजकों को 10 हजार तक जुर्माना अथवा एक माह तक का कारावास या दोनों हो सकता है। 
👉 अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती है। जिलाधिकारी अधिनियम के प्रभावी प्रवर्तन के लिए जिला नोडल पदाधिकारी नियुक्त करेंगे। साथ ही जिलाधिकारी विमुक्ति एवं पुनर्वास हेतु गठित जिला कार्य-बल के अध्यक्ष भी होंगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. बाल श्रम का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर- बाल श्रम के लिए कई सामाजिक और आर्थिक कारण जिम्मेदार है। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा के जागरूकता का अभाव, प्रवासन, आपदा आदि के कारण बाल श्रम को बढ़ावा मिलता है। 

2. बाल श्रम किसे कहते है?
उत्तर- बाल श्रम से तात्पर्य बच्चों द्वारा किये गए ऐसे कार्य से है, जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी शिक्षा और उनकी गरिमा से उन्हें वंचित करता है, और जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। 

3. बाल श्रमिक की उम्र कितनी होती है?
उत्तर- बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अनुसार भारत मे 14वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कार्य लेने पर उस बच्चे को बाल श्रमिक माना जाता है। साथ ही 14 से 18 वर्ष तक के किशोरों को भी परिसंकटमय कार्यों में नियोजन पर रोक लगाया गया है।

4. बाल श्रम को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर- बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों का प्रभावी प्रवर्तन तथा जनजागरूकता के माध्यम से बाल श्रम को रोका जा सकता है।

5. विश्व बाल श्रम निषेध दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर- प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है।

6. बाल श्रम करवाने पर क्या दंड मिलता है?
 उत्तर- किसी भी प्रतिष्ठान में बालक या परिसंकटमय प्रतिष्ठान में किशोर को नियोजित करने पर दोषी व्यक्ति को 20 हजार से 50 हजार तक जुर्माना या 6 माह से 2 वर्ष तक का कारावास या दोनों हो सकता है। दूसरी बार अपराध करने के मामले में दोषी व्यक्ति जो कम से कम 1 वर्ष का कारावास जिसकी अवधि 3 वर्ष तक बढाई जा सकती है, दिया जा सकता है। 



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