संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य 1. औद्योगिक विवाद क्या है ? औद्योगिक विवाद अधिनियम , 1947 के अनुसार “ industrial dispute” means any dispute or difference between employers and employers, or between employers and workmen, or between workmen and workmen, which is connected with the employment or non-employment or the terms of employment or with the conditions of labour, of any person; अर्थात " औद्योगिक विवाद" का मतलब किसी उद्योग या कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाले मतभेद या संघर्ष से है। यह विवाद निम्नलिखित पक्षों के बीच हो सकता है: 1. नियोक्ता और नियोक्ता के बीच – जब दो या अधिक कंपनियां या प्रबंधन इकाइयाँ किसी औद्योगिक या व्यावसायिक मुद्दे पर असहमति रखती हैं। जैसे एक प्रबंधन इकाई कामगारों को बोनस देना चाहती है लेकिन दूसरी प्रबंधन इकाई इस विषय पर असहमत है। 2. नियोक्ता और श्रमिक के बीच – जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी समूह नौकरी से संबंधित...
प्रारंभ में दहेज प्रथा के पीछे का विचार यह सुनिश्चित करना था कि शादी के बाद दुल्हन आर्थिक रूप से स्थिर रहे। दुल्हन के माता-पिता दुल्हन को "उपहार" के रूप में पैसा, जमीन, संपत्ति देते थे, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी बेटी शादी के बाद खुश और स्वतंत्र हो। दहेज़ का इरादा आर्थिक शोषण नहीं था। लेकिन समय के साथ कई बदलाव हुए और माता-पिता को अपनी बेटी की शादी करने के लिए "विवाह ऋण" की आवश्यकता होने लगी। अब कई बार दहेज़ न देने के कारण महिलाओं को घरेलु हिंसा का शिकार होना पड़ता है। यहाँ तक कि कई मामलों में उनकी हत्या तक कर दी जाती है। ऐसे परिस्थितियों से महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 को लाया गया है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961
दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम की मुख्य बातें निम्न प्रकार से है-
👉 यह अधिनियम 20 मई 1961 को अधिसूचित किया गया।
👉 अधिनियम के अनुसार दहेज का अर्थ है, विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या विवाह के किसी भी पक्ष के माता-पिता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, विवाह के किसी भी पक्ष को या किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शादी या शादी के पहले या शादी के बाद दी जाने वाली कोई भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु। हालाँकि उन व्यक्तियों के मामले में जिन पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) लागू होता है, मेहर में दी जानेवाली रकम दहेज़ में शामिल नहीं किया जाता है।
👉 दहेज कानून में दहेज लेना या देना या लेन-देन में सहायता करना व मांगना कानूनी अपराध है। दहेज लेने या देने के जुर्म में 5 साल तक की कैद और ₹15000 या दहेज़ की रकम तक, जो भी अधिक हो, का जुर्माना हो सकता है। लेकिन विवाह के समय स्वेच्छा एवं आर्थिक हैसियत के अनुसार वर-वधु को दी गई भेंट अपराध नहीं है। किंतु दिए गए उपहारों की एक सूची बनानी होगी, जिसपर वर-वधू दोनों के हस्ताक्षर होंगे।
👉 दहेज से संबंधित अपराधों की शिकायत पुलिस अधिकारी, दहेज पीड़ित व्यक्ति या उसके माता-पिता, स्वैच्छिक संस्था अथवा अदालत स्वयं कर सकती है। दहेज से संबंधित अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं। इसके अतिरिक्त ये अपराध अक्षमनीय है- यानी कोई जुर्माना भरने पर अपराधी कैद की सजा से छूट नहीं सकता है।
👉 दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज की माँग करने पर छह माह से 2 वर्ष की कैद और 10,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
👉 अधिनियम में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति दहेज़ लेने-देने के लिए अभियोजित है तो खुद को निर्दोष साबित करने का भार उस व्यक्ति पर ही दिया गया है।
👉 कोई व्यक्ति यदि अपने बेटे या बेटी या किसी के विवाह के लिए किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका, पत्रिका या किसी अन्य मीडिया में किसी भी विज्ञापन के माध्यम से, अपनी संपत्ति में किसी भी हिस्से या किसी भी धन या व्यवसाय आदि में हिस्सेदारी के रूप में पेशकश करता है तो छह माह से 5 वर्ष की कैद अथवा 15000 रुपए के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
👉 दहेज लेने या देने का कोई भी समझौता अमान्य होगा।
👉 यदि कोई दहेज/मूल्यवान संपत्ति शादी करने वाली महिला के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है तो वह व्यक्ति इसे महिला को प्राप्ति के तिथि से 3 माह के भीतर हस्तांतरित कर देगा। यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है तो उसे छह माह से 5 वर्ष की कैद अथवा न्यूनतम 5000 से लेकर 10000 रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
👉 यदि किसी भी संपत्ति की हकदार महिला की मृत्यु इसे प्राप्त करने से पहले हो जाती है, तो महिला के उत्तराधिकारी बच्चों और यदि बच्चे नहीं हो तो उसके माता-पिता को हस्तांतरित कर दी जाएगी।
👉 राज्य सरकार इस अधिनियम के समुचित अमुपालन के लिए दहेज निषेध अधिकारी नियुक्त कर सकती है। राज्य सरकार चाहे तो पुलिस अधिकारी को भी दहेज़ निषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान कर सकती है।
👉 इसके अलावे दहेज़ से जुड़े मामलों में भारतीय दंड संहिता, 1860 तथा घरेलु हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत भी दोषियों पर कारवाई की जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. दहेज का अर्थ क्या है?
2. दहेज प्रथा के उद्देश्य क्या है?
उत्तर- प्रारंभ में दहेज प्रथा के पीछे का विचार यह सुनिश्चित करना था कि शादी के बाद दुल्हन आर्थिक रूप से स्थिर रहे। दुल्हन के माता-पिता दुल्हन को "उपहार" के रूप में पैसा, जमीन, संपत्ति देते थे, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी बेटी शादी के बाद खुश और स्वतंत्र हो। दहेज़ का इरादा आर्थिक शोषण नहीं था। लेकिन समय के साथ कई बदलाव हुए और माता-पिता को अपनी बेटी की शादी करने के लिए "विवाह ऋण" की आवश्यकता होने लगी। अब कई बार दहेज़ न देने के कारण महिलाओं को घरेलु हिंसा का शिकार होना पड़ता है। यहाँ तक कि कई मामलों में उनकी हत्या तक कर दी जाती है। ऐसे परिस्थितियों से महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 को लाया गया है।
3. दहेज के लिए कौन सी धारा लगती है?
उत्तर- दहेज़ प्रथा के मामलों में दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा-3 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 498A को लगाया जाता है। इसके अलावे मामले की गंभीरता के अनुसार आईपीसी की अन्य धाराएँ भी लगायी जाती है।
4. दहेज के केस में कितनी सजा होती है?
उत्तर- दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा-3 के उल्तलंघन के मामले में छह माह से 2 वर्ष की कैद और 10,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अनुसार तीन साल का कारावास तथा जुर्माने का प्रावधान है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा-4A ( के उल्तलंघन के मामले में) छह माह से 5 वर्ष की कैद अथवा 15000 रुपए के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
5. दहेज का केस कब तक लग सकता है?
उत्तर- दहेज का मामला शादी के सात साल तक चलता है। जो व्यक्ति शादी के पहले या फिर शादी के दौरान दहेज के लिए मांग करता है तो उसपर दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता, 1860 तथा घरेलु हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधान भी लगाये जाते है।
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