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Factories Act Part-2 MCQs

Test Instructions –  Factories Act  All questions in this test are curated from the chapter on the Factories Act, 1948, as covered in our book  Labour Laws and Industrial Relations . 📚 If you’ve studied this chapter thoroughly, this quiz offers a chance to assess your understanding and retention. The test includes multiple-choice questions that focus on definitions, governance, benefits, and procedural aspects under the Act. ✅ Each correct answer awards you one mark. At the end of the test, your score will reflect your grasp of the subject and guide any revisions you might need. 🕰️ Take your time. Think through each question. Ready to begin? Let the assessment begin! Book- English Version - " Labour Laws & Industrial Relation " हिंदी संस्करण- " श्रम विधान एवं समाज कल्याण ” Factories Act Part-2 MCQs Factories Act, 1948 - Part-2 - MCQ Quiz Submit

श्रम कानूनों में प्रचलित महत्वपूर्ण शब्दावली सरल शब्दों में



(इस शब्द-कोष की परिभाषाएँ सहज शब्दों में छात्रों के समझने के उद्येश्य से लिखी गयी है । कृपया शाब्दिक परिभाषा जानने के लिए मूल अधिनियम में उल्लेखित शब्दों को संदर्भित किया जाए ।)

 


1.  श्रम (Labour)- श्रम वह मानसिक या शारीरिक प्रयत्न है जो अंशतः या पुर्णतः कार्य से प्राप्त होनेवाले सुख के अतिरिक्त, अन्य किसी आर्थिक उद्येश्य से किया जाता है । अर्थशास्त्र में श्रम के लिए मानवीय प्रयत्न, मानसिक एवं शारीरिक श्रम, आर्थिक लाभ तथा भौतिक या अभौतिक पदार्थों का निर्माण होना आवश्यक है ।

2.  श्रम अर्थशास्त्र (Labour Economics)- श्रम अर्थशास्त्र वह विषय है जिसमे विभिन्न श्रम समस्याओं का सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूपों में अध्ययन किया जाता है ।

3.  सामाजिक विधान (Social Legislation)- वैसे विधान जिनका उद्येश समाज के उन समूहों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार लाना है, जो समाज में कमजोर स्थिति में है तथा जिन्हें उम्र, लिंग, शारीरिक दशाओं, मानसिक बाधाओं एवं आर्थिक या सामाजिक  कारणों के कारण स्वयं मानवोचित ढंग से जीवन-यापन करने में असमर्थ है ।

4. श्रम विधान (Labour Legislation)- श्रम विधान सामाजिक विधान का ही एक प्रकार है जो रोजगार और बेरोजगारी, मजदूरी, काम करने की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा और उद्योगों में नियोजित व्यक्ति के श्रम कल्याण से संबंधित है ।

5.     बालक (Child)- बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार बालक से तात्पर्य वैसे व्यक्ति से है, जिसने अपने उम्र का 14 वर्ष अथवा वैसा उम्र जिसका उल्लेख नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम2009 में, दोनों में जो ज्यादा हो, पूरा नहीं किया हो ।

6.      किशोर (Adolescent)- किशोर से तात्पर्य वैसे व्यक्ति से है, जिसने अपने उम्र का 14 वर्ष पूर्ण कर लिया हो लेकिन 18 वर्ष पूर्ण नहीं किया हो ।

7.     वयस्क (Adult)- वयस्क से तात्पर्य वैसे व्यक्ति से है, जिसने अपने उम्र का 18 वर्ष पूर्ण कर लिया हो।

8.   नियोजक (Employer)- नियोजक से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो या तो स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी स्थापना या नियोजन में नियोजित एक या अधिक कर्मचारियों को सेवा की शर्ते पूर्ण करने के बाद पारिश्रमिकी देने के लिए उत्तरदायी है ।

9.    प्रधान नियोजक (Principle Employer)- प्रधान नियोजक से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी उद्योग या स्थापना या प्रतिष्ठान या नियोजन के कामकाज पर अंतिम रूप से नियंत्रण रखता है ।

10. ठेकेदार या संवेदक (Contractors)- ठेकेदार से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी उद्योग या प्रतिष्ठान या नियोजन में माल की आपूर्ति को छोड़कर सौपें गए अन्य किसी कार्य को भाड़े के श्रमिकों या ठेका श्रमिकों के जरिए करवाता है, तथा इसके अंतर्गत उप-ठेकेदार, अभिकर्ता, मुंशी, ठेकेदार या सट्टेदार भी शामिल होते  है ।

11.  मजदूरी (Wage)- मजदूरी से तात्पर्य ऐसे परिश्रमिकी से है, जिन्हें मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तथा जो नियोजक द्वारा नियोजित व्यक्ति को नियोजन की अभिवयक्त (expressed) या विवक्षित (implied) की शर्ते पूर्ण करने पर किये गए किए गए काम के लिए देय होता है । लेकिन इसके अंतर्गत बोनस, आवास-भत्ता,अंशदान, यात्रा-भत्ता,उपादान आदि शामिल नहीं होता है ।

12.  न्यूनतम मजदूरी- उचित मजदूरी समिति के अनुसार न्यूनतम मजदूरी ऐसी मजदूरी है जो जीवन के निर्वाह मात्र की के साथ-साथ श्रमिक के कार्यकुशलता को बनाए रखने के लिए शिक्षा, चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं एवं सुविधाओं की कतिपय मात्रा की भी व्यवस्था करता है ।

13.  उचित मजदूरी- उचित मजदूरी समिति के अनुसार उचित मजदूरी ऐसी मजदूरी है जिसकी निम्नतर सीमा न्यूनतम मजदूरी तथा उच्चतर सीमा उद्योग की भुगतान क्षमता पर निर्भर करती है । इन दोनों सीमाओं के बीच उचित मजदूरी की वास्तविक दर श्रम की उत्पादकता, प्रचलित मजदूरी की दर, राष्ट्रीय आय का स्तरराष्ट्रीय आय का वितरण एवं देश की अर्थ-व्यवस्था में उद्योग के स्थान पर निर्भर करती है

14.  निर्वाह मजदूरी- उचित मजदूरी समिति के अनुसार निर्वाह मजदूरी ऐसी मजदूरी है, जो केवल भौतिक निर्वाहमात्र की व्यवस्था नहीं करता, बल्कि जो स्वास्थ्य एवं मनुष्योचित जीवन की आवश्यकताओं की सुरक्षा, साधारण आराम तथा अधिक महत्वपूर्ण विपत्तियों के प्रति कतिपय सुरक्षा की भी व्यवस्था करता है ।

15.  कर्मचारी (Employee)- कर्मचारी से तात्पर्य ऐसा व्यक्ति से है, जो किसी स्थापना या उद्योग या नियोजन में कुशल या अकुशल, शारीरिक या लिपिकीय कार्य करने के लिए भाड़े या परिश्रमिकी पर नियोजित है ।

16.  समान प्रकृति का काम (Equal nature work)- समान प्रकृति के काम से अभिप्रेत है, वैसा काम जिसके बारे में अपेक्षित कौशल, प्रयत्न तथा उत्तरदायित्व उस समय एक जैसे है जब काम करने की दशाओं में वह काम पुरुष या स्त्री द्वारा किया जाता है और यदि उसमे कोई अंतर है तो उसका कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है ।

17.  अस्थायी आंशिक अशक्तता (Temporary partial disablement) - अस्थायी आंशिक अशक्तता वह अशक्तता है, जिसमें कर्मचारी की उस नियोजन में उपार्जन-क्षमता अस्थायी अवधि के लिए कम हो जाती है, जिसमें वह दुर्घटना के समय लगा हुआ था ।

18.  स्थायी आंशिक अशक्तता (Permanent partial disablement)- स्थायी आंशिक अशक्तता वह अशक्तता है, जिसमें कर्मकार की हर ऐसे नियोजन में उपार्जन-क्षमता स्थायी रूप में कम हो जाती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में समर्थ था ।

19.  अस्थायी पूर्ण अशक्तता (Temporary full disablement)-  अस्थायी पूर्ण अशक्तता ऐसी अशक्तता है, जो कर्मकार को ऐसे सभी कामों के लिए अस्थायी तौर पर असमर्थ कर देती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में समर्थ था ।

20.  स्थायी पूर्ण अशक्ता (Permanent partial disablement)- स्थायी पूर्ण अशक्तता वह अशक्तता है, जो कर्मकार को ऐसे सभी कामों के लिए स्थायी रूप से असमर्थ कर देती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में समर्थ था ।

21.  आश्रित (Dependent)- आश्रित का अर्थ है, मृत कर्मकार का पति या पत्नी, नाबालिक पुत्र, अविवाहित पुत्री, माता-पिता या अन्य कोई व्यक्ति जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके नृत्यु के समय उसपर निर्भर था ।

22.  उपादान (Gratuity)- अर्थात उपादान वह सेवानिवृति लाभ है जो किसी कर्मचारी के न्यूनतम अवधि के लिए निरंतर सेवा के बदले में देय होता है

23.  कारखाना (Factory)- अपनी परिसीमाओं के भीतर ऐसा परिसर जहाँ विनिर्माण प्रक्रिया में दस या अधिक कामगार शक्ति की सहायता से तथा बीस या अधिक कर्मकार बिना शक्ति की सहायता से पिछले 12 माह में किसी भी दिन यदि काम किया हो, कारखाना के अंतर्गत आता है ।

24.  विनिर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process)-  विनिर्माण प्रक्रिया में शामिल होता है, किसी वस्तु या पदार्थ का प्रयोग, विक्रय, परिवहन या व्ययन की दृष्टि से उसका निर्माण, मरम्मत, पैकिंग, विघटन आदि की प्रक्रिया ।

25.  श्रमसंघ (Trade union)- श्रमसंघ एक या अधिक व्यवसायों में कार्यरत कामगारों का संघ है, जिसका संचालन मुख्यतः उसके सदस्यों के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबद्ध आर्थिक हितों की रक्षा और विकास के उद्येश्य से होता है।

श्रमसंघ अधिनियम, 1926 के अनुसार श्रमसंघ से तात्पर्य है, ऐसा स्थायी या अस्थायी सम्मिलन, जो मुख्यतः कामगारों और नियोजकों या कामगारों और कामगारों या नियोजकों और नियोजकों के बीच के संबंध को विनियमित करने या किसी व्यवसाय या करोबार के सञ्चालन पर प्रतिबंधक (Restrictive) दशाओं को अधिरोपित (imposing) करने के उद्येश्य से बनाया गया हो और जिसमे दो या अधिक श्रम संघों का महासंघ भी शामिल होते है ।  

26.  औद्योगिक विवाद (Industrial dispute)- जब किसी उद्योग के अंतर्गत श्रमिकों द्वारा अपने शोषण को समाप्त करने के उद्येश्य से नियोजक का विरोध किया जाए तो इस कारण दोनों के बीच उत्पन्न होने वाले मतभेद को ही औद्योगिक विवाद कहा जाता है ।

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार औद्योगिक विवाद से नियोजकों को और नियोजकों के बीच या नियोजकों और श्रमिकों के बीच या श्रमिकों और श्रमिकों के बीच ऐसे विवाद या मतभेद का बोध होता है जो किसी व्यक्ति के नियोजन या अनियोजन या नियोजन की शर्तों या श्रम की दशाओं से जुड़ा हुआ होता है । इसके अंतर्गत व्यक्तिगत कर्मचारी की सेवामुक्ति या पदोच्युती या छंटनी से उत्पन्न विवाद भी आता है ।

27.  उद्योग (Industry)- उद्योग से ऐसे कार्य का बोध होता है जो नियोजक और कर्मकारों के सहयोग से, आध्यात्मिक या धार्मिक प्रकृति की आवश्यकताओं या इच्छाओं को छोड़कर, मनुष्य की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण के लिए संचालित किया जाता है। चाहे ऐसे कार्य के लिए कोई पूंजी लगाई गई हो अथवा नहीं या उसे लाभ के उद्देश्य से चलाया जाता हो या नहीं ।

28.  हड़ताल (Strike)- हड़ताल का अर्थ है किसी उद्योग में कार्य पर लगे हुए व्यक्तियों के समूह द्वारा मिलकर काम बंद कर देना या कार्य में लगे व्यक्तियों द्वारा किसी काम को करते रहने या काम को स्वीकार करने से इनकार करना।

29.  तालाबंदी (Lock-out)- तलाबंदी का अर्थ है नियोजक द्वारा अस्थाई रूप से कार्य के स्थान को बंद कर देना या काम का निलंबन करना या अपने द्वारा काम में लगाये गए किसी संख्या में व्यक्तियों को काम में लगाए रखने से इनकार करना ।

30.  छंटनी (Retrenchment)- छंटनी का अर्थ होता है नियोजक द्वारा अनुशासनिक कार्यवाही के रूप में दिए गए दंड को छोड़कर, किसी अन्य कारण से किसी कामगार की सेवा की समाप्ति लेकिन छंटनी में कामगार द्वारा अपनी इच्छा से सेवा त्याग, सेवानिवृति उम्र होने के कारण सेवा से मुक्ति, नियोजक और श्रमिक के बीच संविदा सेवा के नवीकरण नहीं होने के कारण कर्मकार की सेवानिवृत्ति, निरंतर बुरे स्वास्थ्य के आधार पर कर्मकार की सेवा समाप्ति शामिल नहीं होते हैं ।

31.  समझौता(Settlement)- समझौता का मतलब सुलह की कार्यवाही के दौरान किए गए समझौते से हैं । इसके अंतर्गत नियोजक और कामगार की कार्यवाही के दौरान किए गए समझौते के अलावा ऐसा समझौता भी शामिल है जिस पर विवाद के पक्षकारों ने अपना हस्ताक्षर कर दिया हो तो था जिसकी प्रतिलिपि समुचित सरकार के द्वारा सुलह पदाधिकारी को भेज दी गयी हो ।

32.  अधिनिर्णय (Adjudication)- अधिनिर्णय एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक न्यायाधीश सभी पक्षों के साक्ष्य और बहस की समीक्षा करता है तथा शामिल पक्षों के बीच अधिकारों और दायित्वों को निर्धारित करने के लिए निर्णय लेता है ।

33.  विवाचन (Arbitration)- विवाचन या मध्यस्थता विवादों को सुलझाने का एक तरीका है जिसमे एक या अधिक मध्यस्थ या विवाचक विवाद का समाधान करके विवाचन पंचाट जारी करते है जो जिसे मानने के लिए दोनों पक्ष क़ानूनी रूप से बाध्य होते है ।

34.  पंचाट (Award)- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार श्रम न्यायालय, औद्योगिक अधिकरण, राष्ट्रीय अधिकरण या विवाचक द्वारा औद्योगिक विवाद से संबंधित किसी विषय पर दिया जाने वाला अंतरिम (Interim) या अंतिम (Final) आदेश होता है, जिसका अनुपालन करना सभी पक्षों के लिए क़ानूनी रूप से बाध्यकारी होता है ।

35.  दूकान (Shop)- ऐसे परिसर या उससे संबधित कार्यालय, गोदाम, भंडार आदि जहाँ माल की खुदरा या थोक बिक्री होती है या जहाँ ग्राहकों को सेवा दी जाती है, लेकिन इसके अंतर्गत रेंस्तरा, आवासीय होटल, भोजनालय, थियेटर या लोक मनोरंजन के स्थान शामिल नहीं है ।

36.  प्रतिष्ठान (Establishment)- ऐसे स्थापना जहाँ वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण  किया जाता है या कर्मचारियों की मदद से किसी भी प्रकार की सेवा दी जाती है, जैसे प्रशासनिक या लिपिकीय सेवा, आवासीय होटल, भोजनालय, थियेटर आदि ।

37.  औद्योगिक संबंध (Industrial Relation)- औद्योगिक संबंध से उत्पादन में ऐसे सामाजिक संबंधों का बोध होता है, जिसके अंतर्गत प्रबंधक, अंशधारी, उपभोक्ता, श्रमिक, नियोजक संघ, श्रमिक संघ, सरकार तथा श्रम न्यायलय या श्रम न्यायाधिकरण सभी आते है ।

38.  सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining)- सामान्यतः नियोजक या नियोजक के संघों के साथ श्रमिकों या श्रमिकों के संघ का सेवा शर्तों तथा कार्य की दशाओं के लिए आपसी विचार विमर्श को सामूहिक सौदेबाजी कहते  है ।

39.  प्रबंधन में सहभागिता (Workers participation in management)- किसी औद्योगिक संगठन में साधारण कर्मियों द्वारा समुचित प्रतिनिधियों के जरिए प्रबंध के सभी स्तरों पर तथा प्रबंध की क्रियाओं के समस्त क्षेत्र में निर्णयन के अधिकार में भाग लेना ही प्रबंधन में सहभागिता कहलाता है ।

40.  अभिसमय (Conventions)- अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मलेन के संकल्प के रूप में होते है जिन्हें पारित करने के लिए सम्मलेन के कुल सदस्यों में दो-तिहाई की उपस्थिति तथा दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति आवश्यक है । इनका अनुसमर्थन सदस्य राष्टों के लिए आवश्यक होता है जिसे वे नया कानून बनाकर या पुराने कानून में संशोधन करके कर सकते है । यदि अनुसमर्थित नहीं करते है तो उसका कारण का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय को भेजना होता है ।

41.  सिफारिश (Recommendation)- सिफारिश भी अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मलेन के संकल्प के रूप में होते है लेकिन ये गैर-बाध्यकारी होते है, जो सदस्य देशों के लिए श्रम संबंध विषयों पर कानून और नीति बनाने तथा क्रियान्वित करने के लिए मार्गदर्शक का काम करते है ।

42.  उत्कृष्ट कार्य (Descent work)- उत्कृष्ट कार्य का अर्थ ऐसे कार्यों से है जिसमे श्रमिकों को उचित मजदूरी (fair wage), कार्यस्थल पर सुरक्षा, आश्रितों की सामाजिक सुरक्षा, व्यक्तिगत विकास और सामाजिक एकीकरण के लिए बेहतर संभावनाएं, संगठित होने और उनके प्रभावित होने वाले निर्णयों में भाग लेने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

43.  श्रम नीति (Labour Policy)- श्रम नीति वह नीति है, जिसके द्वारा सरकार औद्योगिक संबंध, काम की स्थिति, प्रशिक्षण, शोध एवं अन्य महत्वपूर्ण समस्याओं के संबंध में अपने अभिप्राय व्यक्त करती है कि वह नियोजकों तथा श्रमिकों के लिए क्या करना चाहती है

44. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)- सामाजिक सुरक्षा जीवन की उन आकस्मिकताओं जैसे कि बीमारी, बेरोजगारी, वृद्धावस्था, औद्योगिक दुर्घटना के खिलाफ समाज द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा है, जिसके खिलाफ व्यक्ति को अपनी क्षमता या दूरदर्शिता से अपने और अपने परिवार की रक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती है ।

45.  श्रम प्रशासन (Labour administration)- श्रम प्रशासन से तात्पर्य राष्ट्रीय श्रम नीति के क्षेत्र में सार्वजनिक प्रशासन की गतिविधियों से है । इसके अंतर्गत सरकार द्वारा आर्थिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए श्रमिकों और नियोजकों के संबंधों को विनियमित किया जाता है ।

46.  बालश्रम (Child Labour)- 14 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति से पारिवारिक उद्यम में सहायता अथवा दृश्य-श्रव्य मनोरंजन में बाल-कलाकार के रूप में कार्य करने के अलावे व्यावसायिक रूप से काम लेना बाल-श्रम कहलाता है

47.  बंधुआ श्रम (Bonded Labour)- ऐसा व्यक्ति जो लिये हुए ऋण को चुकाने के बदले स्वयं या अगले पीढ़ियों में ऋणदाता के लिये श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बंधुआ मज़दूर कहलाता है । इस प्रथा से पीड़ित व्यक्ति अपने रोजगार की स्वतंत्रता तथा निर्वाध आने-जाने की स्वतंत्रता खो देता है । श्रमिकों को किया जाने वाला भुगतान भी न्यूनतम मजदूरी से कम होता है तथा उसे अपने द्वारा बनाए गए उत्पाद को स्वतंत्र रूप से बाजार में बेचने की अनुमति भी नहीं होती है ।

48.  प्रवासी श्रमिक (Migrant workers)- वैसे श्रमिक जो दुसरे राज्यों या विदेशों में जाकर कार्य करते है प्रवासी श्रमिक कहलाते है । प्रवासी श्रमिक कार्य-स्थल पर अस्थायी निवासी होते है तथा उनका जन्मस्थान पर आना-जाना लगा रहता है ।

49.  असंगठित क्षेत्र (Unorganized Sector)- असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुसार असंगठित क्षेत्र का अर्थ है, किसी व्यक्ति या स्व-नियोजित श्रमिकों के स्वामित्व वाला उद्यम जो माल के उत्पादन या बिक्री में संलग्न या किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान करता है, और जहाँ उद्यम में श्रमिकों को यदि नियुक्त करता है तो ऐसे श्रमिकों की संख्या उस उद्यम में दस से कम है ।

50. असंगठित कामगार (Unorganized Workman) - असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुसार असंगठित कामगार का अर्थ है, अपने स्वयं के घर में कार्य करने वाला, स्व-नियोजित व्यक्ति या असंगठित क्षेत्र में मजदूरी करने वाला दैनिक कामगार और इसमें संगठित क्षेत्र का वह श्रमिक भी शामिल है, जो इस अधिनियम के अनुसूची II में वर्णित किसी भी अधिनियम द्वारा आच्छादित नहीं किया गया है । (अधिनियम के अनुसूची-II में शामिल अधिनियम है- कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1939, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1948, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी भविष्य निधि तथा प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952, मातृत्व हितलाभ अधिनियम, 1961 तथा उपादान भुगतान अधिनियम, 1972) ।

51. स्वनियोजित कामगार (self-employed worker)- असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुसार स्वनियोजित कामगार से तात्पर्य ऐसे कामगार से है जो किसी नियोजक द्वारा नियोजित नहीं है, बल्कि असंगठित क्षेत्र में अपना स्वयं का कार्य करता है । जैसे रिक्शाचालाक, फेरीवाला, लोहार, बढई, मछुआरा, टोकरी बीनने वाले, पान-दूकान चलाने वाला आदि ।

52.  घरेलु कामगार (Domestic workers)- असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुसार घरेलु कामगार से तात्पर्य ऐसे कामगार से है जो कार्यस्थल को छोड़कर किसी नियोजक के घर के अंदर या उसके इच्छा से किसी अन्य जगह पर माल के उत्पादन या सेवा कार्य में पारिश्रमिक पर कार्य करता है ।

53.  कर्मचारी भविष्य-निधि (Employee Provident Fund)- कर्मचारी भविष्य-निधि संगठित क्षेत्र में नियोजित कामगारों को कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 के तहत प्रदान किया गया एक सामाजिक सुरक्षा का उपाय है जिसमे नियोजक और श्रमिक दोनों अंशदान देते है इसे सामान्यतः भविष्य-निधि (Provident Fund) भी कहा जाता है

54.  सामान्य भविष्य-निधि (Public Provident Fund)- यह सरकार की बचत योजना है जिसमे संगठित या  असंगठित मजदूर , सरकारी सेवक, बेरोजगार व्यक्ति आदि भी निवेश कर सकते है जिसमे किसी भी प्रकार का अंशदान की व्यवस्था नहीं है । इसमें कोई भी व्यक्ति अधिकतम 1.5 लाख रुपये सालाना तक जमा कर सकता है जिसपर उसे निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है ।

55.  अतिकाल (Overtime)- सामान्य कार्य के घंटों के अतिरिक्त कामगार द्वारा किये जाने वाले कार्य को अतिकाल कहा जाता है

56.  कार्य-विस्तृति (Spread over)- एक दिन में कामगार अतिकाल या विशेष परिस्थितियों सहित अधिकतम जितने घंटे कार्य कर सकता है वह कार्य-विस्तृति है

57.  विश्राम-अंतराल (Rest interval)- कार्य के घन्टों के बीच कामगार को दिया जाने वाला विश्राम का समय विश्राम अंतराल कहलाता है

58.  सवैतनिक अवकाश (Leave with wage)- किसी कामगार द्वारा एक वर्ष में न्यूनतम 240 दिन कार्य करने के पश्चात एक निश्चित दर से पूर्ण वेतन सहित वैसा अवकाश दिया जाना जिसका यदि उपभोग नहीं किया जाता है तो उसका संचयन किया जा सकता है

59.  कार्य की भौतिक दशाएँ (Physical conditions of works)- श्रमिकों के कार्य स्थल से जुडी वैसी दशाएँ  जो कामगार के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है, जैसे- सफाई, प्रकाश, तापमान, संवातन, पेयजल, शौंचालय आदि

60.  नियोजन की शर्ते (Condition of Employment)- नियोजन की शर्तों से तात्पर्य किसी नियोजन में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के बीच किसी कर्मचारी के रोजगार की शुरुआत में कार्य के शर्तों के लिए सहमत होना है । इसके अंतर्गत कर्मचारी का वेतन, भत्ता, कल्याणकारी सुविधा, कार्मिक मामला आदि आता है ।


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अंग्रेजी में- "Labour Laws & Industrial Relation"

हिंदी में- "श्रम विधान एवं समाज कल्याण

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