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सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wage Act, 1936)

श्रमिकों के लिए मजदूरी की निर्धारित मात्रा के साथ-साथ उसका समय पर वैध मुद्रा में भुगतान, भुगतान का तरीका, मनमाने कटौती से संरक्षण, आदि भी आवश्यक होता है। यदि श्रमिक को समय पर मजदूरी नहीं मिले, उसकी इच्छा के विरुद्ध नकदी के बजाय वस्तु में मजदूरी मिले, मनमाने ढंग से मजदूरी से कटौती कर लिया जाए तो श्रमिक का कार्य के प्रति अभिरुचि कम होना स्वाभाविक है। मजदूरी भुगतान में व्याप्त कुव्यवस्था की जाँच के लिए 1926 में मजदूरी भुगतान संबंधी समिति का गठन किया गया। सरकार ने इस समिति समिति की अनुशंसाओं को ध्यान में रखकर कानून बनाने के लिए कदम उठाये, लेकिन 1929 में शाही श्रम आयोग के गठन के बाद मामला पुनर्विचार के लिए आयोग को दिया गया। शाही श्रम आयोग के सुझावों के बाद 1933-34 में दिल्ली सत्र में यह बिल चयन समिति के समक्ष रखा गया जो कतिपय कारणों से पास नहीं हो सका। हालाँकि बाद में ब्रिटिश सरकार द्वारा 1936 में मजदूरी भुगतान अधिनियम पारित किया गया। आज के इस टॉपिक में हम मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wage Act, 1936)  के बारे में चर्चा करेंगे। मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936  मज़दूरी भुग...

LSW MCQ-3; न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948

इस टेस्ट में पूछे गए सभी प्रश्न हमारे पुस्तक " श्रम विधान, औद्योगिक संबंध एवं समाज कल्याण   " से लिया गया है। यदि आपने इसका न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 वाला अध्याय पढ़ लिया है तो आप यह टेस्ट दे सकते है। टेस्ट के अंत में आपको आपका स्कोर मिलेगा- Labour Law Quiz Question of Next Good Try! You Got out of answers correct! That's TryAgain न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के बारे में जानने के यहाँ क्लिक करें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम से संबंधित Full Video Class 

न्यूनतम मजदूरी एवं न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948

संगठित क्षेत्र के श्रमिक अपनी मजदूरी को बढ़ाने के लिए सामूहिक सौदेबाजी, सुलह, अधिनिर्णयण आदि के द्वारा  नियोजकों पर दबाब डालते है। परंतु छोटे नियोजनों और असंगठित क्षेत्र में श्रमिक संगठन का अभाव रहता है जिसके कारण असंगठित मजदूर सामूहिक सौदेबाज़ी या अन्य तरीको से मजदूरी नहीं बढ़वा पाते है। साथ ही छोटे उद्योगों में नियोजक का भुगतान क्षमता कम होना तथा नियोजक द्वारा अधिक मुनाफा कमाने की प्रवृति भी कम मजदूरी का कारण बनती है। इसी समस्या को देखते हुए सबसे पहले प्रत्येक उद्योग में न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए बोर्डों की स्थापना का प्रस्ताव के०जी०आर० चौधरी द्वारा 1920 के श्रम सम्मेलन में सर्वप्रथम रखा गया। बाद में केंद्र सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 लाया जिसका मुख्य उद्येश्य असंगठित क्षेत्र के कुछ नियोजनों में न्यूनतम मजदूरी की दरों का निर्धारण एवं पुनरीक्षण करना, नियोजक द्वारा न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किए जाने की स्थिति में जुर्माना के साथ भुगतेय राशि की वसूली के प्रक्रिया का निर्धारण करना तथा समय-समय पर अनुसूचित नियोजनों की संख्या में बढ़ोतरी करना, आदि है। आज के इस टॉपिक में ...