Skip to main content

चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा फैक्ट्री चलाने पर बोनस की प्रयोज्यता

  The Management of WORTH Trust v. WORTH Trust Workers Union  वर्थ ट्रस्ट का प्रबंधन बनाम वर्थ ट्रस्ट वर्कर्स यूनियन  (सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय - 2025) 1. तथ्यात्मक पृष्ठभूमि (Factual Matrix) “वर्थ ट्रस्ट” (WORTH Trust) की स्थापना 1969 में स्वीडिश रेड क्रॉस पुनर्वास ट्रस्ट (Swedish Red Cross Rehabilitation Trust) के रूप में हुई थी। यह एक पूर्णतः परोपकारी कार्य (purely charitable work) करने वाला संगठन था, जो कोढ़ से मुक्त एवं निःशक्त व्यक्तियों (leprosy-cured and differently abled persons) के पुनर्वास हेतु कार्य करता था। 1985 से, इस ट्रस्ट ने कारखाना अधिनियम (Factories Act) के अंतर्गत ऑटो पार्ट्स का व्यावसायिक निर्माण (commercial manufacturing of auto parts) प्रारंभ किया, जिससे इसे "अतिरिक्त लाभ" (surplus profits) प्राप्त होने लगे। इसके कारखानों के प्रमुख कर्मचारी (major workforce) पुनर्वासित विकलांग (rehabilitated disabled) व्यक्ति थे, जिन्होंने "वर्थ ट्रस्ट वर्कर्स यूनियन" (WORTH Trust Workers Union) बनाई और वर्ष 1996–97 के लिए वैधानिक बोनस/अनुग्रह राशि ...

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: तीसरे बच्चे के लिए भी मातृत्व अवकाश संवैधानिक अधिकार

Maternity Benefit is a Constitutional Right

 

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मातृत्व अवकाश एक संवैधानिक अधिकार है, चाहे महिला का तीसरा बच्चा ही क्यों न हो। इस फैसले ने मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व के निर्णय को पलट दिया, जिसमें तमिलनाडु की एक सरकारी स्कूल शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था।

मामला क्या था?

याचिकाकर्ता, जो एक सरकारी स्कूल शिक्षिका हैं, पहली शादी से दो बच्चों की मां थीं। दूसरी शादी के बाद उन्होंने तीसरा बच्चा जन्म दिया और मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। लेकिन तमिलनाडु सरकार ने मौलिक नियम 101(a) का हवाला देकर उनकी छुट्टी को अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि महिला के दो जीवित बच्चे हैं तो उसे मातृत्व अवकाश नहीं मिलेगा।

जब शिक्षिका ने इस फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी, तो पहले एकल-न्यायाधीश पीठ ने उनके पक्ष में फैसला दिया। लेकिन बाद में एक डिवीजन बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि मातृत्व अवकाश केवल कानूनी अधिकार है, जिसे सेवा नियमों के तहत नियंत्रित किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस ओका और उज्जल भुइयाँ की पीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश सिर्फ नौकरी से संबंधित सुविधा नहीं है, बल्कि यह मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत संरक्षित है। कोर्ट ने कहा:

  • प्रजनन अधिकार मानव गरिमा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

  • केवल बच्चों की संख्या के आधार पर मातृत्व अवकाश को अस्वीकार करना संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन है।

  • जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां महिलाओं के मातृत्व अधिकारों पर हावी नहीं हो सकतीं।

इसके साथ ही, कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को दो महीने के भीतर सभी लंबित मातृत्व लाभ दिए जाएं।

इस फैसले का प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में महिलाओं के अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कार्यस्थल पर कोई भी नीति संविधान के अनुरूप होनी चाहिए और लैंगिक समानता व गरिमा का संरक्षण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत मातृत्व अवकाश पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, बल्कि केवल अवकाश की अवधि तय की गई है:

  • दो बच्चों तक मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह होगा।

  • तीसरे बच्चे या उससे अधिक के लिए मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह होगा।

यह फैसला महिलाओं की प्रजनन स्वतंत्रता को संरक्षित करने और कार्यस्थल पर उनके अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम है।


अधिनियम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें- https://youtu.be/ROlNptj34lw

 डॉ० गणेश कुमार झा,

सहायक श्रमायुक्त, पटना 

ईमेल- gkjha108@gmail.com


Comments