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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: तीसरे बच्चे के लिए भी मातृत्व अवकाश संवैधानिक अधिकार

Maternity Benefit is a Constitutional Right   भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मातृत्व अवकाश एक संवैधानिक अधिकार है, चाहे महिला का तीसरा बच्चा ही क्यों न हो। इस फैसले ने मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व के निर्णय को पलट दिया, जिसमें तमिलनाडु की एक सरकारी स्कूल शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था। मामला क्या था? याचिकाकर्ता, जो एक सरकारी स्कूल शिक्षिका हैं, पहली शादी से दो बच्चों की मां थीं। दूसरी शादी के बाद उन्होंने तीसरा बच्चा जन्म दिया और मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। लेकिन तमिलनाडु सरकार ने मौलिक नियम 101(a) का हवाला देकर उनकी छुट्टी को अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि महिला के दो जीवित बच्चे हैं तो उसे मातृत्व अवकाश नहीं मिलेगा। जब शिक्षिका ने इस फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी, तो पहले एकल-न्यायाधीश पीठ ने उनके पक्ष में फैसला दिया। लेकिन बाद में एक डिवीजन बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि मातृत्व अवकाश केवल कानूनी अधिकार है, जिसे सेवा नियमों के तहत नियंत्रित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्...

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: तीसरे बच्चे के लिए भी मातृत्व अवकाश संवैधानिक अधिकार

Maternity Benefit is a Constitutional Right

 

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मातृत्व अवकाश एक संवैधानिक अधिकार है, चाहे महिला का तीसरा बच्चा ही क्यों न हो। इस फैसले ने मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व के निर्णय को पलट दिया, जिसमें तमिलनाडु की एक सरकारी स्कूल शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था।

मामला क्या था?

याचिकाकर्ता, जो एक सरकारी स्कूल शिक्षिका हैं, पहली शादी से दो बच्चों की मां थीं। दूसरी शादी के बाद उन्होंने तीसरा बच्चा जन्म दिया और मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। लेकिन तमिलनाडु सरकार ने मौलिक नियम 101(a) का हवाला देकर उनकी छुट्टी को अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि महिला के दो जीवित बच्चे हैं तो उसे मातृत्व अवकाश नहीं मिलेगा।

जब शिक्षिका ने इस फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी, तो पहले एकल-न्यायाधीश पीठ ने उनके पक्ष में फैसला दिया। लेकिन बाद में एक डिवीजन बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि मातृत्व अवकाश केवल कानूनी अधिकार है, जिसे सेवा नियमों के तहत नियंत्रित किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस ओका और उज्जल भुइयाँ की पीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश सिर्फ नौकरी से संबंधित सुविधा नहीं है, बल्कि यह मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत संरक्षित है। कोर्ट ने कहा:

  • प्रजनन अधिकार मानव गरिमा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

  • केवल बच्चों की संख्या के आधार पर मातृत्व अवकाश को अस्वीकार करना संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन है।

  • जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां महिलाओं के मातृत्व अधिकारों पर हावी नहीं हो सकतीं।

इसके साथ ही, कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को दो महीने के भीतर सभी लंबित मातृत्व लाभ दिए जाएं।

इस फैसले का प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में महिलाओं के अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कार्यस्थल पर कोई भी नीति संविधान के अनुरूप होनी चाहिए और लैंगिक समानता व गरिमा का संरक्षण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत मातृत्व अवकाश पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, बल्कि केवल अवकाश की अवधि तय की गई है:

  • दो बच्चों तक मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह होगा।

  • तीसरे बच्चे या उससे अधिक के लिए मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह होगा।

यह फैसला महिलाओं की प्रजनन स्वतंत्रता को संरक्षित करने और कार्यस्थल पर उनके अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम है।


अधिनियम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें- https://youtu.be/ROlNptj34lw

 डॉ० गणेश कुमार झा,

सहायक श्रमायुक्त, पटना 

ईमेल- gkjha108@gmail.com


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