बंधुवा श्रमिक की प्रथा समाज के सामंती सोच की देन है जो परम्परा के रूप में काफी समय से चलती चली आ रही है। ये भोले-भाले श्रमिक अपने मालिकों से जो ऋण लेते है उसके ऋण-जाल में उलझ कर न तो कभी मूलधन चूका पाते है और न ही सूद से मुक्ति पाते है। ऐसे में पीढ़ी दर पीढ़ी उस मालिक के यहाँ सपरिवार कार्य में लगे रहते है। बिहार में हरवाहा, बारामासी तथा कमियाँ जैसे नामों से इन्हें पुकारा जाता रहा है। आज के इस टॉपिक में हम बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 (Bonded Labour and Bonded Labour System (Abolition) Act, 1976) के बारे में चर्चा करेंगे। बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 सामान्य अर्थों में जब एक व्यक्ति के श्रम या सेवाओं को उसके कर्ज या अन्य दायित्वों के पुनर्भुगतान के लिए गिरवी के रूप में रख लिया जाता है तो उसे हम बंधुआ मजदूरी या ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जानते है। ऋण चुकाने के लिए उस व्यक्ति को कितनी सेवा देनी है और कितने दिनों तक देनी है यह बंधुआ श्रम प्रथा में अपरिभाषित रहता है। बंधुआ श्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी किया जा सकता है...
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत