संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य 1. औद्योगिक विवाद क्या है ? औद्योगिक विवाद अधिनियम , 1947 के अनुसार “ industrial dispute” means any dispute or difference between employers and employers, or between employers and workmen, or between workmen and workmen, which is connected with the employment or non-employment or the terms of employment or with the conditions of labour, of any person; अर्थात " औद्योगिक विवाद" का मतलब किसी उद्योग या कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाले मतभेद या संघर्ष से है। यह विवाद निम्नलिखित पक्षों के बीच हो सकता है: 1. नियोक्ता और नियोक्ता के बीच – जब दो या अधिक कंपनियां या प्रबंधन इकाइयाँ किसी औद्योगिक या व्यावसायिक मुद्दे पर असहमति रखती हैं। जैसे एक प्रबंधन इकाई कामगारों को बोनस देना चाहती है लेकिन दूसरी प्रबंधन इकाई इस विषय पर असहमत है। 2. नियोक्ता और श्रमिक के बीच – जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी समूह नौकरी से संबंधित...
बंधुवा श्रमिक की प्रथा समाज के सामंती सोच की देन है जो परम्परा के रूप में काफी समय से चलती चली आ रही है। ये भोले-भाले श्रमिक अपने मालिकों से जो ऋण लेते है उसके ऋण-जाल में उलझ कर न तो कभी मूलधन चूका पाते है और न ही सूद से मुक्ति पाते है। ऐसे में पीढ़ी दर पीढ़ी उस मालिक के यहाँ सपरिवार कार्य में लगे रहते है। बिहार में हरवाहा, बारामासी तथा कमियाँ जैसे नामों से इन्हें पुकारा जाता रहा है। आज के इस टॉपिक में हम बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 (Bonded Labour and Bonded Labour System (Abolition) Act, 1976) के बारे में चर्चा करेंगे। बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 सामान्य अर्थों में जब एक व्यक्ति के श्रम या सेवाओं को उसके कर्ज या अन्य दायित्वों के पुनर्भुगतान के लिए गिरवी के रूप में रख लिया जाता है तो उसे हम बंधुआ मजदूरी या ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जानते है। ऋण चुकाने के लिए उस व्यक्ति को कितनी सेवा देनी है और कितने दिनों तक देनी है यह बंधुआ श्रम प्रथा में अपरिभाषित रहता है। बंधुआ श्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी किया जा सकता है...