Skip to main content

सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976



बंधुवा श्रमिक की प्रथा समाज के सामंती सोच की देन है जो परम्परा के रूप में काफी समय से चलती चली आ रही है। ये भोले-भाले श्रमिक अपने मालिकों से जो ऋण लेते है उसके ऋण-जाल में उलझ कर न तो कभी मूलधन चूका पाते है और न ही सूद से मुक्ति पाते है। ऐसे में पीढ़ी दर पीढ़ी उस मालिक के यहाँ सपरिवार कार्य में लगे रहते है। बिहार में हरवाहा, बारामासी तथा कमियाँ जैसे नामों से इन्हें पुकारा जाता रहा है। आज के इस टॉपिक में हम बंधुआ श्रमिक एवं  बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 (Bonded Labour and Bonded Labour System (Abolition) Act, 1976) के बारे में चर्चा करेंगे।
बंधुआ श्रमिक एवं  बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

सामान्य अर्थों में जब एक व्यक्ति के श्रम या सेवाओं को उसके कर्ज या अन्य दायित्वों के पुनर्भुगतान के लिए गिरवी के रूप में रख लिया जाता है तो उसे हम बंधुआ मजदूरी या ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जानते है। ऋण चुकाने के लिए उस व्यक्ति को कितनी सेवा देनी है और कितने दिनों तक देनी है यह बंधुआ श्रम प्रथा में अपरिभाषित रहता है। बंधुआ श्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी किया जा सकता है। भारत की सामाजिक-आर्थिक संस्कृति विभेद के कारण कई जगहों पर बंधुआ मजदूरी की प्रथा विभिन्न रूपों में आज भी दिख जाता है। इस प्रथा की मुख्य विशेषता यह है कि कर्जदार व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी सदस्य को ऋण के लिए गिरवी रखता है और ऋण चुकाने पर मुक्त हो जाता है। लेकिन कई मामलों में ब्याज कि दर इतनी ज्यादा होती है, कि कर्जदार अपने पूरे जिन्दगी में काम करके भी मूलधन नहीं चूका पाता है और उसकी अगली पीढ़ी भी इस कर्ज का बोझ उठाने के लिए बाध्य हो जाती है। इस प्रकार का ऋण जाल ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जाना जाता है। बंधुआ मजदूरी प्रथा में आमतौर पर सेवा देने  की अवधि नही होती है और इसमें अवैध संविदात्मक शर्तें शामिल होती हैं। इस प्रथा के करार/अनुबंध किसी व्यक्ति को अपने पसंद के नियोक्ता को चुनने या अपने समझौता की शर्तों पर बातचीत करने के मूल अधिकार से रोकते हैं। सामान्यतया इस प्रथा में श्रमिक को या तो मजदूरी नहीं दी जाती है या काफी कम मजदूरी दी जाती है। 

    बंधुआ मज़दूरी के निवारण में अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
    वैश्विक दासता सूचकांक (Global Slavery Index), 2018 के अनुसार, भारत में 18 मिलियन लोग आधुनिक दासता में जकड़े हुए हैं।ऋण बंधन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा "आधुनिक समय की दासता" के रूप में वर्णित किया गया है और गुलामी उन्मूलन अभिसमय (Convention on  the Abolition of Slavery) द्वारा इस प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया है। बंधुआ मजदूरी की प्रथा कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार अभिसमयों का उल्लंघन करती है, जिन्हें भारत द्वारा अनुसमर्थित किया गया है, जैसे-

    👊दास व्यापार और दासता उन्मूलन कन्वेंशन (Convention on the suppression of slave trade and slavery), 1926 का उद्देश्य दासता और दास व्यापार के उन्मूलन की पुष्टि करना है।
    👊नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (International covenantion on civil and political rights), 1966 दासता और दास व्यापार के सभी रूपों यथा- वंशानुगत सेवा या बलपूर्वक या अनिवार्य श्रम सभी को प्रतिबंधित करता है।
    👊बच्चों के अधिकारों पर कन्वेंशन (Convention on rights of child), 1989 बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित कर उन्हें आर्थिक शोषण से बचाता है।
    👊बाल एवं बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशनवर्ष 2017 में भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो प्रमुख कन्वेंशन का अनुमोदन किया।
    👉कन्वेंशन 138: रोजगार हेतु न्यूनतम आयु का निर्धारण
    👉कन्वेंशन 182: बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों यथा- बाल दासता (Child Slavery) (बच्चों को बेचने, उनकी तस्करी करने, बंधुआ मज़दूर बनाने, सशस्त्र समूहों में बलपूर्वक भर्ती करने), बाल वेश्यावृत्ति एवं अश्लील गतिविधियों में उनके अनुचित इस्तेमाल, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे घृणित कृत्यों में उनके उपयोग तथा अन्य जोखिम भरे कार्यों (विशेषकर ऐसे कार्यों में जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता को नुकसान पहुँचता है) को पूर्णता प्रतिबंधित करना।
    👊सतत् विकास लक्ष्य 8.7 वर्ष 2025 तक बंधुआ मज़दूरी, आधुनिक दासता और बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों के उन्मूलन हेतु प्रभावी उपाय करने पर बल देता है।

बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

हालाँकि भारतीय संविधान का  अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार), अनुच्छेद 23 (बलात श्रम पर रोक), अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में  चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन पर रोक), अनुच्छेद 39 (श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य और शक्ति को सुरक्षित रखने और बच्चों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न होने देने के लिए राज्य को निर्देश) बंधुआ श्रम प्रथा पर प्रहार करता है। इन समस्याओं के निवारण के लिए प्रारंभ में बिहार और उड़ीसा कमिऔती समझौता 1920 बना और उसके बाद बिहार महाजन अधिनियम, 1938 आया। इंदिरा गाँधी ने अपने बीस-सूत्री कार्यक्रम में बंधुआ श्रम-प्रथा उन्मूलन को भी सम्मिलित किया। 1976 में बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम बनाया गया जिसमें इस प्रथा को संज्ञेय अपराध घोषित करते हुए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। इस अधिनियमकी प्रमुख बातें निम्न प्रकार से है-

👉 अधिनियम की धारा 2(छ) में बंधुआ श्रम प्रथा को परिभाषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के किसी कर्ज अथवा ब्याज को चुकाने या किसी रूढ़िगत सामाजिक प्रथा के कारण या अपने पूर्वजों से प्राप्त किसी प्रथा की बाध्यता में या किसी जाति विशेष में जन्म लेने के कारण किसी कर्जदाता से इस आशय का लिखित अथवा मौखिक करार करता है कि- 

- वह स्वयं या अपने कुटुम्ब के माध्यम से कर्जदाता के पास अपना श्रम या सेवा किसी निश्चित या अनिश्चित अवधि के लिए बिना मज़दूरी या नाममात्र मज़दूरी पर प्रदान करेगा अथवा 

-जीविका के अन्य साधनों की स्वतंत्रता खो देगा अथवा

-भारत में कही अन्यत्र जाकर जीविका नही करेगा अथवा -अपने संपत्ति या उत्पाद को किसी अन्य को नही बेचेगा तो वह बंधुआ श्रम प्रथा के अंतर्गत शामिल होगा।

यदि किसी ऋणी व्यक्ति का कोई सम्बन्धी या आश्रित किसी कर्जदाता से इस आशय का लिखित अथवा मौखिक करार करता है कि वह कर्ज लेने वाले के द्वारा कर्ज चुकाने में असफल रहने के कारण कर्जदाता के अधीन बिना मज़दूरी या नाममात्र मज़दूरी पर जीविका करेगा तो वह भी बंधुआ श्रम के तहत शामिल किया जाएगा।

👉 अधिनियम के धारा 4 के अनुसार इस अधिनियम के पर कोई किसी को बंधुआ श्रम प्रथा के तहत अग्रिम नही देगा एवं सभी कर्जदार बंधुआ श्रम प्रथा के तहत लिए गए कर्ज से मुक्त हो जाएगा। अधिनियम की धारा 5 स्पष्ट करती है कि कोई भी करार, प्रथा इत्यादि जो बंधुआ श्रम प्रथा के अंतर्गत आती है शून्य हो जाएगी और उसका कोई प्रभाव नही रह जाएगा।

👉 धारा 6 के अनुसार इस अधिनियम के आने के बाद ऋणी को बंधुआ ऋण चुकाने की बाध्यता समाप्त हो जाएगी तथा कोई भी व्यक्ति ऐसे ऋण की वसूली के लिए सिविल न्यायालय में वाद दायर नही कर सकता है।

👉 अधिनियम की धारा 7 के तहत बंधुआ श्रमिक की कोई सम्पत्ति यदि इस अधिनियम के आने के पूर्व कर्ज के बदले बंधक में रखी गयी थी, वह बंधक से मुक्त हो जाएगी।

👉 धारा 8 के अनुसार बंधुआ श्रम से मुक्त कराये गए किसी श्रमिक को उस वासस्थान या निवास परिसर से बेदखल नही किया जाएगा जिसे वह बन्धुआ श्रम के प्रतिफल के रूप में लेनदार से प्राप्त किया है।

👉 अधिनियम की धारा 9 के तहत कोई भी लेनदार किसी भी बंधुआ श्रमिक से, जो इस अधिनियम के तहत सभी बंधन ऋण देने से मुक्त हो गया है, कोई भी भुगतान स्वीकार नही करेगा।

👉 इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार सभी जिलाधिकारी को मजिस्ट्रेट घोषित करती है। जिलाधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारी को अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अपनी शक्ति अधिरोपित कर सकता है।

👉 जिलों को बंधुआ श्रम प्रथा से मुक्त करने के लिए जिला एवं अनुमंडल स्तर पर सतर्कता समीतियों का गठन किया जाना है। इन समितियों की अध्यक्षता क्रमशः जिलाधिकारी और अनुमंडलाधिकारी करेंगे। 

👉 अधिनियम की धारा 15 स्पष्ट रुप से घोषित करती है कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं या सतर्कता समिति द्वारा बंधुआ श्रमिक घोषित किया जाता है तो उसके बंधुआ श्रमिक नही होने को साबित करने का भार लेनदार का होता है। यहां Burden of Proof नियोजक का होता है।

👉 यदि कोई व्यक्ति किसी को बंधुआ श्रम के लिए विवश करता है या किसी को बंधन ऋण देता है या किसी संविदा/करार/रूढ़िगत प्रथा आदि के कारण किसी से बंधुआ श्रम करवाता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास और 2000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

👉 अधिनियम लागू होने के बाद भी यदि कोई कर्जदाता किसी बंधुआ श्रमिक की गिरवी रखी संपत्ति पर अवैध कब्जा रखता है तो वह एक वर्ष तक के कारावास या 1000 रुपये के जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। साथ ही उसे कब्जा रखने की अवधि के लिए प्रत्येक दिन पाँच रुपये की दर से हर्जाने का भुगतान बंधुआ श्रमिक को करना होगा।

बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना, 2016 

पूर्व में बंधुआ श्रमिकों के लिए पुनर्वास का कार्य केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 50;50 के हिस्से के साथ होता था जिसके तहत विमुक्त बंधुआ श्रमिकों को तत्काल केन्द्रांश 10,000 रुपए तथा राज्यांश 10,000 रुपए आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाता था। लेकिन 17 मई 2016 से बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास के लिए शत-प्रतिशत केंद्र प्रायोजित योजना का सञ्चालन शुरू किया गया है।

👉बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना, 2016 के अनुसार बंधुआ श्रमिकों को तीन श्रेणियों में रखकर वित्तीय रूप से पुनर्वासित करने का प्रावधान रखा गया है-

  • पहला श्रेणी- पहले श्रेणी में वयस्क पुरुष कामगारों को रखा गया है। वयस्क विमुक्त बंधुआ श्रमिकों को पुनर्वास हेतु 1,00,000/- (एक लाख रूपये) की राशि उपलब्ध कराया जाएगा। लाभार्थी के पास इस सहायता राशि को सावधि जमा योजना में जमा कराने अथवा नकद प्राप्त करने दोनों का विकल्प होगा।
  • दूसरा श्रेणी- इस श्रेणी में अनाथ बच्चों, जबरन संगठित भिक्षावृति में लगाए गए बच्चों तथा महिलाओं को शामिल किया गया है। इस श्रेणी में विमुक्त बंधुआ श्रमिकों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि 2,00,000/-(दो लाख रूपये) की होगी, जिसमें 1,25,000/- की राशि उसके नाम से सावधि जमा योजना में जमा कराया जाएगा तथा शेष 75,000/- राशि को विमुक्त श्रमिक के बैंक खाते में भेज दिया जाएगा।
  • तीसरा श्रेणी- इस श्रेणी में वैसे श्रमिकों को शामिल किया जाएगा, जो गंभीर प्रकृति के कार्यों से विमुक्त कराये गए हैं जैसे- किन्नर, वेश्यावृत्ति या मसाज-पार्लर से विमुक्त महिलाये, यौन-शोषण के शिकार बच्चे या महिलाएँ आदि। इस श्रेणी के श्रमिकों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि 3,00,000/- (तीन लाख) रूपये होगी, जिसमें दो लाख की राशि उसके नाम से सावधि जमा योजना में जमा कराया जाएगा तथा शेष 1,00,000/- की राशि को विमुक्त श्रमिक के बैंक खाते में भेज दिया जाएगा।

👉इस वित्तीय सहायता में से तत्काल 30,000 रुपए की आर्थिक सहायता उस जिले के जिलाधिकारी को दे देना है जो बंधुआ श्रमिक के विमुक्ति प्रमाण-पत्र को निर्गत करेंगे। इस तत्काल सहायता के लिए देश के प्रत्येक जिले में दस लाख रुपए के जिला स्तरीय बंधुआ मजदूर पुर्नवास कोष का गठन जिलाधिकारी के स्तर से किया गया है। शेष राशि नियोजक के दोषी सिद्ध होने पर केंद्र सरकार द्वारा श्रमिक के श्रेणी के अनुसार निर्गत की जाएगी, जिसमें पूर्व में दी गयी तत्काल आर्थिक सहायता का समायोजन कर लिया जाएगा।

👉इस योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को दिए जाने वाले गैर वित्तीय घटक निम्न प्रकार से है-

  • गृह निर्माण एवं खेती के लिए भूखंडो का आवंटन।
  • पशुधन, डेयरी, पोल्ट्री एवं सुअर पालन में सहायता।
  • जरूरी वस्तुओं का लक्षित जन वितरण प्रणाली के माध्यम से आपूर्ति।
  • इंदिरा आवास योजना तथा मनरेगा योजना से जोड़ना।
  • बच्चों को शिक्षा आदि।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


1. बंधुआ मजदूरी क्या है?
उत्तर- जब एक व्यक्ति के श्रम या सेवाओं को उसके कर्ज या अन्य दायित्वों के पुनर्भुगतान के लिए गिरवी के रूप में रख लिया जाता है तो उसे हम बंधुआ मजदूरी या ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जानते है।

2. बंधुआ मजदूरी सबसे ज्यादा कहाँ पायी जाती है।
उत्तर- एंटी सेलेवरी इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन के अनुसार बंधुआ मजदूरी भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों में सबसे अधिक दिखाई देता है। यह सामान्यतया कृषि, ईंट भट्टों, मिलों, खानों और कारखानों में दिखता है। वैश्विक दासता सूचकांक (Global Slavery Index), 2018 के अनुसार, भारत में 18 मिलियन लोग आधुनिक दासता में जकड़े हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में मध्य प्रदेश में सबसे अधिक बंधुआ श्रमिकों के मामले है।

3. आधुनिक दासता क्या है?
उत्तर- आधुनिक दासता शब्द को किसी कानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। यह शोषणकारी प्रकृति की स्थितियों का वर्णन करने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला एक सामान्य शब्द है जिसमें कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, धोखा और शक्ति के दुरुपयोग के कारण किसी नियोजित कार्य को छोड़ या मना नहीं कर सकता है।
आधुनिक दासता में श्रम, ऋण बंधन, और मानव तस्करी जैसे शोषणकारी कार्य शामिल हैं।

4. बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम क्या है?
उत्तर- समस्याओं के निवारण के लिए प्रारंभ में बिहार और उड़ीसा कमिऔती समझौता 1920 बना और उसके बाद बिहार महाजन अधिनियम, 1938 आया। इंदिरा गाँधी ने अपने बीस-सूत्री कार्यक्रम में बंधुआ श्रम-प्रथा उन्मूलन को भी सम्मिलित किया। 1976 में बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम बनाया गया जिसमें इस प्रथा को संज्ञेय अपराध घोषित करते हुए कठोर दंड का प्रावधान किया गया।

5. बंधुआ मजदूर कितने प्रकार के होते है?
उत्तर- नियोजन की प्रकृति के अनुसार बंधुआ श्रमिकों को प्रवासी बंधुआ श्रमिक, बाल बंधुआ श्रमिक, कृषि बंधुआ श्रमिक, कारखाना बंधुआ श्रमिक आदि में बांटा जा सकता है। 


Comments