श्रमिकों के लिए मजदूरी की निर्धारित मात्रा के साथ-साथ उसका समय पर वैध मुद्रा में भुगतान, भुगतान का तरीका, मनमाने कटौती से संरक्षण, आदि भी आवश्यक होता है। यदि श्रमिक को समय पर मजदूरी नहीं मिले, उसकी इच्छा के विरुद्ध नकदी के बजाय वस्तु में मजदूरी मिले, मनमाने ढंग से मजदूरी से कटौती कर लिया जाए तो श्रमिक का कार्य के प्रति अभिरुचि कम होना स्वाभाविक है। मजदूरी भुगतान में व्याप्त कुव्यवस्था की जाँच के लिए 1926 में मजदूरी भुगतान संबंधी समिति का गठन किया गया। सरकार ने इस समिति समिति की अनुशंसाओं को ध्यान में रखकर कानून बनाने के लिए कदम उठाये, लेकिन 1929 में शाही श्रम आयोग के गठन के बाद मामला पुनर्विचार के लिए आयोग को दिया गया। शाही श्रम आयोग के सुझावों के बाद 1933-34 में दिल्ली सत्र में यह बिल चयन समिति के समक्ष रखा गया जो कतिपय कारणों से पास नहीं हो सका। हालाँकि बाद में ब्रिटिश सरकार द्वारा 1936 में मजदूरी भुगतान अधिनियम पारित किया गया। आज के इस टॉपिक में हम मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wage Act, 1936) के बारे में चर्चा करेंगे।
मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936
मज़दूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की प्रमुख बातें निम्न प्रकार से है-
👉 इस अधिनियम के मुख्य उद्येश्य मजदूरी के नियमित भुगतान की व्यवस्था करना, वैध-मुद्रा में में मजदूरी का भुगतान करना, मजदूरी से अनाधिकृत कटौतियों को रोकना, नियोजकों द्वारा मनमाने ढंग से श्रमिकों पर जुर्माना लगाने से रोकना, मजदूरी भुगतान में व्याप्त अनियमिताओं से श्रमिकों को बचाना, आदि है।
👉 वैसे कर्मचारी इस अधिनियम से अच्छादित होंगे जिनकी मजदूरी 24,000/- रुपए प्रतिमाह तक है।
👉 यहअधिनियम कारखानों और रेलवे में नियोजित कर्मचारियों पर लागू था जिसके विस्तार को बाद में बढ़ा कर खान, बगान, विमानन, पत्तन, विद्युत आदि क्षेत्रों में लागू किया गया। राज्य सरकार राजपत्र में तीन महीने की पूर्व अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों को पूर्ण या आंशिक रूप से किसी भी प्रतिष्ठान में लागू कर सकती है।
👉 अधिनियम में मजदूरी का अर्थ है, जिसे मुद्रा के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है और जो नियोजन की शर्तों को पूरा करने पर नियोजित व्यक्ति को नियोजन या नियोजन के दौरान किए गए काम के लिए देय होता है।
किसी अधिनिर्णय/ समझौते/ न्यायालय आदेश द्वारा देय पारिश्रमिकी, अतिकाल कार्य या छुट्टी के दिन किए गए कार्य के लिए पारिश्रमिकी, नियोजन के शर्तों के अधीन देय पारिश्रमिकी, आदि मजदूरी में शामिल होता है जबकि बोनस, आवास, प्रकाश, जल, आदि सेवा का मूल्य, यात्रा-भत्ता, पेंशन या भविष्य-निधि के अंशदान, एवं उपादान को मजदूरी में शामिल नहीं किया जाता है।
👉 मजदूरी भुगतान का दायित्व नियोजक पर है। कारखानों में उसके प्रबंधक, औद्योगिक या अन्य प्रतिष्ठानों में उनके पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी व्यक्ति तथा रेलवे में रेलवे प्रशासन द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति नियोजक के रूप में जाना जाता है।
👉 नियोजक द्वारा मजदूरी का भुगतान का अंतराल किसी भी दशा में एक माह से अधिक समय में नहीं हो सकता है।
👉 वैसे कारखाना या प्रतिष्ठान जिसमें एक हजार से कम कामगार नियोजित है, उसमे मजदूरी का भुगतान मजदूरी भुगतान अवधि की समाप्ति (अर्थात महीना लगने के बाद) के सात दिनों के अंदर तथा अन्य स्थितियों में दस दिनों के अंदर कर देना आवश्यक है।
👉 मजदूरी का भुगतान चालू सिक्कों या करेंसी नोट या दोनों में किया जा सकता है। मजदूरी भुगतान संशोधन अधिनियम, 2017 के अनुसार यदि नियोजक चाहे तो मजदूरी का भुगतान चेक से या उसके बैंक खाते में सीधे अंतरित करके कर सकते है।
👉 श्रमिक के मजदूरी से निम्न प्रकार की कटौती नियोजकों के लिए अधिकृत की गयी है-
- जुर्माने के रूप में कटौती;
- कर्तव्य से अनुपस्थिति के लिए कटौती;
- माल नुकसान या हानि के लिए कटौती;
- प्रदत्त गृहवास सुविधा के लिए कटौती;
- नियोजक द्वारा प्रदत्त ऐसी सुविधा के लिए कटौती जिसे राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत किया जा चूका है;
- कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की अग्रिम (जिसमें यात्रा-भत्ता या सवारी भत्ता की पेशगी भी शामिल है) या उसपर देय ब्याज की वसूली या अधिक देय मजदूरी का समायोजन के लिए कटौती;
- श्रम-कल्याण निधि से लिए गए उधारों या उसके ब्याज देने के लिए कटौती;
- गृह निर्माण के लिए गए उधारों या उसके ब्याज देने के लिए कटौती;
- आयकर की कटौती;
- न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकार के आदेश से की जानेवाली कटौती;
- भविष्य-निधि में अंशदान या अग्रिम की वसूली के लिए कटौती;
- सहकारी सोसाइटी या भारतीय डाकघर में किसी स्कीम में भुगतान के लिए कटौती;
- जीवन बीमा निगम को जीवन बीमा की पालिसी के लिए देय क़िस्त या सरकार की प्रतिभूतियों का क्रय या किसी बचत योजना में कर्मचारियों के लिखित प्राधिकरण पर कटौती;
- कर्मचारी द्वारा लिखित रूप से प्राधिकृत करने पर राज्य सरकार या सक्षम पदाधिकारी से स्वीकृत नियोजक या पंजीकृत श्रमसंघ द्वारा नियोजित व्यक्तियों या उनके परिवार के सदस्यों के कल्याण लिए गठित निधि में अंशदान के लिए कटौती;
- कर्मचारी द्वारा लिखित रूप से प्राधिकृत करने पर श्रम संघ अधिनियम 1926 के अंतर्गत पंजीकृत श्रमसंघ की सदस्यता के लिए देय फीस से सम्बन्ध कटौती;
- विश्वस्तता गारंटी बांड (Fidelity Guarantee bond) पर बीमा क़िस्त देने के लिए कटौती,
- कर्मचारी द्वारा लिखित रूप से प्राधिकृत करने पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत निधि के लिए कटौती;
👉 किसी नियोजित व्यक्ति की मजदूरी में से सहकारी समितियों को अंशदान देने की स्थिति में अधिकतम 75% तक तथा अन्य स्थिति में अधिकतम 50% तक कटौती की जा सकती है।
👉 नियोजक राज्य सरकार के पूर्वानुमोदन से वैसे कार्यों या लोपों को विनिर्दिष्ट कर सकता है, जिनके लिए जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है। ऐसे कृत्यों या लोपों की सूचना विहित स्थान में और विहित तरीके से प्रदर्शित करना आवश्यक है।
👉 किसी कर्मचारी के खिलाफ तब-तक जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है जबतक उसे जुर्माने के खिलाफ कारण बताओं का अवसर (show cause notice) नहीं दिया गया हो।
👉 किसी भी मजदूरी कालावधि (Time Period) में जुर्माने की राशि उस कालावधि के लिए देय मजदूरी के तीन प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है।
👉 15 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है।
👉 जुर्माने की रकम किस्तों में या उसे लगाए जाने के 90 दिनों के बाद वसूला नहीं जा सकता है।
👉 सभी जुर्माने और इस संबंध में वसूल की गयी सभी वसूलियों को रजिस्टर में अंकित करना जरूरी है।
👉 जुर्माने में वसूल की गयी राशि को केवल उस प्रतिष्ठान में नियोजित व्यक्तियों के लाभ के लिए खर्च किया जा सकता है।
👉 राज्य सरकार औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 या इस तरह के अन्य कानून के अंतर्गत स्थापित श्रम न्यायालय या औद्योगिक अधिकरण के पीठासीन अधिकारी या सहायक श्रमायुक्त जिसे दो वर्षों का अनुभव हो या कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त या सिविल न्यायालय के न्यायाधीश आदि को मजदूरी की कटौती या विलंब भुगतान दावा सुनवाई के लिए प्राधिकारी नियुक्त कर सकती है।
👉 अनधिकृत कटौती या बिलंब भुगतान के मामले में श्रमिक स्वयं या किसी विधि-व्यवसायी या किसी पंजीकृत श्रमसंघ या निरीक्षक के माध्यम से आवेदन दे सकता है।
👉 आवेदन अनधिकृत कटौती या बिलंब भुगतान की तिथि से 12 माह के अंदर करना आवश्यक है। यदि आवेदन के तथ्यों से प्राधिकारी संतुष्ट है तो अनधिकृत कटौती लौटने या बिलंवित भुगतान करने का निदेश दे सकता है।
👉 प्राधिकारी अनधिकृत कटौती के मामले में 10 गुणा क्षतिपूर्ति के साथ तथा बिलंब भुगतान के मामले में 1500 से 3000 तक के जुर्माने के साथ भुगतान का निदेश कर सकता है।
👉 विद्वेषपूर्ण या गलत आवेदन देने पर मज़दूर को अधिकतम 375 रुपए के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
👉 दावा का निपटान दायर होने के तीन माह के अंदर किया जाना चाहिए।
👉 यदि कोई मजदूर प्राधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट है तो वह निर्णय के विरुद्ध जिलाधिकारी के समक्ष प्राधिकारी के आदेश के 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है।
👉 मजदूरी भुगतान नहीं करने या अनधिकृत कटौती करने, विवरणी नहीं भरने या दस्तावेज नहीं रखने, निरीक्षक के कार्य में बाधा डालने या गलत सूचना देने पर दोषी नियोजक को 1500 रुपए से 7500 रुपए तक के जुर्माने से एवं बिलम्ब से भुगतान करने पर 3750 रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। अपराध दुहराने पर एक से छह माह तक का कारावास या 3750 से 22,500 रुपए से दण्डित किया जा सकता है।
👉 प्राधिकारी द्वारा नियत तिथि पर भुगतान नहीं करने पर अभियुक्त को प्रत्येक दिन के लिए 750 रुपए के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. मजदूरी भुगतान अधिनियम कब लागू किया गया था?
उत्तर- देश में मजदूरी से जुड़ा 4 अधिनियम है यथा मजदूरी भुगतान अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, बोनस अधिनियम तथा सामान पारिश्रमिक अधिनियम। इसमें से दो अधिनियम श्रमिकों के मजदूरी भुगतान से जुड़े है पहला मजदूरी भुगतान अधिनियम जो 1936 में लागू हुआ तथा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम जो 1948 में लागू हुआ।
2. वेतन भुगतान अधिनियम 1936 क्या उद्येश्य हैं?
उत्तर- वेतन भुगतान अधिनियम के मुख्य उद्येश्य मजदूरी के नियमित भुगतान की व्यवस्था करना, वैध-मुद्रा में में मजदूरी का भुगतान करना, मजदूरी से अनाधिकृत कटौतियों को रोकना, नियोजकों द्वारा मनमाने ढंग से श्रमिकों पर जुर्माना लगाने से रोकना, मजदूरी भुगतान में व्याप्त अनियमिताओं से श्रमिकों को बचाना, आदि है।
3. वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर- वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 की कई विशेषताएं है, जैसे- मजदूरी भुगतान का दायित्व नियोजक पर है, नियोजक द्वारा मजदूरी का भुगतान का अंतराल किसी भी दशा में एक माह से अधिक समय में नहीं हो सकता है, मजदूरी का भुगतान चालू सिक्कों या करेंसी में किया जाना है, मजदूरी से अधिकतम 50% तक कटौती की जा सकती है, आदि।
4. नियोजक द्वारा मजदूरी का भुगतान कब किया जाना है?
उत्तर- वैसे कारखाना या प्रतिष्ठान जिसमें एक हजार से कम कामगार नियोजित है, उसमे मजदूरी का भुगतान मजदूरी भुगतान अवधि की समाप्ति (अर्थात महीना लगने के बाद) के सात दिनों के अंदर तथा अन्य स्थितियों में दस दिनों के अंदर कर देना आवश्यक है।
5. मजदूरी भुगतान नहीं होने के बाद कहाँ शिकायत करना होगा?
उत्तर- यदि किसी को मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है या अनधिकृत कटौती कर ली जाती है तो वह श्रम न्यायालय या श्रम विभाग के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपना दावा या शिकायत दायर कर सकता है। आवेदन अनधिकृत कटौती या बिलंब भुगतान की तिथि से 12 माह के अंदर करना आवश्यक है। यदि आवेदन के तथ्यों से प्राधिकारी संतुष्ट है तो अनधिकृत कटौती लौटने या बिलंवित भुगतान करने का निदेश दे सकता है।
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