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सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

न्यूनतम मजदूरी एवं न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948

संगठित क्षेत्र के श्रमिक अपनी मजदूरी को बढ़ाने के लिए सामूहिक सौदेबाजी, सुलह, अधिनिर्णयण आदि के द्वारा  नियोजकों पर दबाब डालते है। परंतु छोटे नियोजनों और असंगठित क्षेत्र में श्रमिक संगठन का अभाव रहता है जिसके कारण असंगठित मजदूर सामूहिक सौदेबाज़ी या अन्य तरीको से मजदूरी नहीं बढ़वा पाते है। साथ ही छोटे उद्योगों में नियोजक का भुगतान क्षमता कम होना तथा नियोजक द्वारा अधिक मुनाफा कमाने की प्रवृति भी कम मजदूरी का कारण बनती है। इसी समस्या को देखते हुए सबसे पहले प्रत्येक उद्योग में न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए बोर्डों की स्थापना का प्रस्ताव के०जी०आर० चौधरी द्वारा 1920 के श्रम सम्मेलन में सर्वप्रथम रखा गया। बाद में केंद्र सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 लाया जिसका मुख्य उद्येश्य असंगठित क्षेत्र के कुछ नियोजनों में न्यूनतम मजदूरी की दरों का निर्धारण एवं पुनरीक्षण करना, नियोजक द्वारा न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किए जाने की स्थिति में जुर्माना के साथ भुगतेय राशि की वसूली के प्रक्रिया का निर्धारण करना तथा समय-समय पर अनुसूचित नियोजनों की संख्या में बढ़ोतरी करना, आदि है। आज के इस टॉपिक में हम न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (Minimum Wage Act, 1948) के बारे चर्चा करेंगे।


न्यूनतम मजदूरी




न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948


अधिनियम की प्रमुख बातें निम्नलिखित है-

  • अधिनियम में न्यूनतम मजदूरी को परिभाषित नहीं किया गया है। अधिनियम के अनुसार जिसे मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तथा जो नियोजक द्वारा नियोजित व्यक्ति को संविदा की शर्ते पूरा करने पर किए गए काम के लिए देय होता है, मज़दूरी कहलाता है। मजदूरी में आवासीय भत्ता सम्मिलित होगा परन्तु पेंशन निधि, भविष्य निधि, यात्रा भत्ता, उपादान आदि नहीं सम्मिलित होता है।
  • राज्य या केंद्र सरकार को जिस उद्योग में न्यूनतम मजदूरी को लागू करना है उसे अधिसूचित करना होगा। राज्य में यदि किसी नियोजन में काम करने वाले श्रमिको की संख्या 1000 कम है तो सरकार उसमे न्यूनतम मजदूरी की दरें नियत नहीं भी कर सकती है। लेकिन जैसे ही श्रमिको की संख्या 1000 से अधिक होगी उस नियोजन में मजदूरी की न्युनतम दरें निर्धारित करना आवश्यक होगा।
  • न्यूनतम मजदूरी की दरें कई प्रकार से अधिसूचित की जा सकती है, जैसे- कालानुपाती काम के लिए न्यूनतम कालानुपाती दर से (अर्थात एक घंटे के लिए, एक दिन के लिए, एक माह के लिए आदि), मात्रानुपाती काम के लिए न्यूनतम मात्रानुपाती दर से (अर्थात प्रति हजार बीडी बनाने के लिए, नाई द्वारा प्रति व्यक्ति बाल काटने के लिए, प्रति 100 किलो बोरा उठाने के लिए, आदि), मात्रानुपाती काम पर नियोजित कर्मचारियों के लिए प्रत्याभूतित (Guaranteed) कालानुपाती दर से (अर्थात एक दिन में 1000 बीडी बनाने का यदि दर निर्धारित है और कोई कामगार एक निश्चित मजदूरी से कम का बीडी बना पाता है तब भी उसे कम-से-कम एक निश्चित मजदूरी देना) तथा अतिकाल काम के लिए अतिकाल दर से (ओवरटाइम के लिए सामान्यतया दुगुने दर से)।
  • नियत की गयी मजदूरी की दरों का पुनरीक्षण अधिकतम पाँच वर्षो के अन्तराल पर करना आवश्यक है। जब तक मजदूरी की दरों का संशोधन नहीं हो जाता नियत की गयी पुरानी दर ही लागू रहेगी।
  • न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नकद वैध मुद्रा में किया जाएगा। लेकिन जहाँ प्रकार में आंशिक या पूर्ण रूप से मजदूरी देने की परंपरा है, वहां न्यूनतम मजदूरी आंशिक या पूर्ण रूप से प्रकार में दिया जा सकता है।
  • श्रमिक से एक दिन में अधिकतम 9 घंटे तक कार्य लिया जा सकता है जिसमें उसका एक घन्टे का विश्राम अंतराल भी शामिल रहेगा। यदि किसी दिन कार्य की अधिकता है तो एक घंटे और काम लिया जा सकता है लेकिन उसके लिए ओवरटाइम का भुगतान करना होगा। किसी भी परिस्थिति में अधिकतम कार्य-विस्तृति (spread-over) विश्राम अंतराल सहित अधिकतम 12 तक घंटे हो सकती है। एक व्यक्ति एक त्रैमासिक में अधिकतम 50 घंटे तक ओवरटाइम किया जा सकता है।
  • यदि श्रमिक लगातार काम कर रहा है तो उसे साप्ताहिक अवकाश देना होगा।
  • सरकार द्वारा निर्धारित दर से कम मजदूरी प्राप्त होने पर, ओवरटाइम का भुगतान नहीं होने पर या अधिनियम के तहत किसी अन्य बकाया राशि के लिए कर्मचारी स्वयं या किसी विधि-व्यवसायी या अपने श्रमसंघ या निरीक्षक के माध्यम से लिखित रूप में रकम बकाये की तारीख से 6 महीनें के अंदर श्रम विभाग में सक्षम प्राधिकार के समक्ष अपना दावा देना होगा।
  • अगर बकाये रकम का दावा सही साबित होता है तो नियोजक को बकाये राशि का 10 गुणा तक जुर्माना के साथ श्रमिक को भुगतान के लिए निदेशित किया जा सकता है। नियोजक द्वारा श्रमिक को बकाया रकम नहीं देने की स्थिति में उससे राशि की वसूली बकाये भू-राजस्व की तरह हो सकती है। यदि कर्मचारी झूठा आवेदन देकर नियोजक को परेशान करता है तो उसपर 50 रुपया का जुर्माना लग सकता है।
  • न्यूनतम मजदूरी से कम दर पर भुगतान या कार्य के घंटो या विश्राम सबंधी नियमो के उल्लंघन में अधिकतम 6 माह का कारावास या 500 रुपए का जुर्माना हो सकता है। (बिहार में 1983 में संशोधन कर 1 वर्ष का कारावास या 3000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों कर दिया गया है।)

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. न्यूनतम मजदूरी किसे कहते है?
उत्तर- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में न्यूनतम मजदूरी को परिभाषित नहीं किया गया है। उचित मजदूरी समिति के अनुसार “न्यूनतम मजदूरी को केवल जीवन के निर्वाह मात्र की ही व्यवस्था नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसे श्रमिक के कार्यकुशलता को बनाए रखने के लिए शिक्षा, चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं एवं सुविधाओं की भी कतिपय मात्रा में व्यवस्था करनी चाहिए”।

2. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 कब लागू हुआ?
उत्तर- सबसे पहले प्रत्येक उद्योग में न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए बोर्डों की स्थापना का प्रस्ताव के०जी०आर० चौधरी द्वारा 1920 के श्रम सम्मेलन में सर्वप्रथम रखा गया। बाद में स्थायी श्रम समिति और भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश पर, मजदूरी और आवास, सामाजिक परिस्थितियों और रोजगार जैसे अन्य मामलों की जांच के लिए 1943 में एक श्रमिक जांच समिति नियुक्त की गई थी। जिसके बाद 1945 में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में समिति द्वारा प्रस्तावित मसौदा विधेयक पर विचार किया गया। उस विधेयक पर विचार-विमर्श के बाद 15 मार्च 1948 से न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लाया गया।

3. न्यूनतम मजदूरी दर क्या है?
उत्तर- केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर न्यूनतम मजदूरी की दर परिवर्तित होती रहती है। अद्यतन दर के लिए श्रम विभाग के सरकारी वेबसाइट पर विजिट कीजिए।

4. मजदूरी नहीं मिलनें पर क्या करें?
उत्तर- सरकार द्वारा निर्धारित दर से कम मजदूरी प्राप्त होने पर, ओवरटाइम का भुगतान नहीं होने पर या अधिनियम के तहत किसी अन्य बकाया राशि के लिए कर्मचारी स्वयं या किसी विधि-व्यवसायी या अपने श्रमसंघ या निरीक्षक के माध्यम से लिखित रूप में रकम बकाये की तारीख से 6 महीनें के अंदर श्रम विभाग में सक्षम प्राधिकार के समक्ष अपना दावा देना होगा।

5. न्यूनतम मजदूरी नहीं देने पर क्या दंड मिलता है?
उत्तर- अगर श्रमिक के बकाये रकम का दावा प्राधिकार के समक्ष सही साबित होता है तो नियोजक को बकाये राशि का 10 गुणा तक जुर्माना के साथ श्रमिक को भुगतान करना होता है। नियोजक द्वारा श्रमिक को बकाया रकम नहीं देने की स्थिति में उससे राशि की वसूली बकाये भू-राजस्व की तरह हो सकती है। न्यूनतम मजदूरी से कम दर पर भुगतान या कार्य के घंटो या विश्राम सबंधी नियमो के उल्लंघन में अधिकतम 6 माह का कारावास या 500 रुपए का जुर्माना हो सकता है।

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