“ भोज घड़ी कोहड़ा ” बिहार का एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है। मैथिलि भाषा में भी यह लोकोक्ति “भोज काल में कुम्हड़ रोपब” के रूप में प्रचलित है। जैसा की हम सभी जानते है कि यह लोकोक्ति तो काफी सरल है, लेकिन इसका अर्थ बहुत गूढ़ है। सामान्य अर्थों में यदि किसी कार्य को काफी बिलम्ब से प्रारंभ किया जाए तथा कार्य निष्पादन संभव नहीं हो तो इस लोकोक्ति का प्रयोग आज भी समाज में किया जाता है। यह लोकोक्ति एक नकारात्मक टिप्पणी के रूप में है जो कर्ता को यह एहसास दिलाता है कि उसने सही समय पर अपने कार्य को प्रारंभ नहीं किया है तथा कार्य बिलम्ब से शुरू किया गया है, जिससे कार्य में सफलता असंभव है। यदि इसके अर्थों की गहराई में झाँका जाए तो सही समय पर कार्य प्रारंभ करना या सरल अर्थों में समय के महत्व को रेखांकित करना इस मुहावरे का उद्येश्य है। समय एक अनमोल रत्न है। इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि आप चाहे कितने भी धनी क्यों न हो अपनी सम्पूर्ण संपत्ति देकर भी एक क्षण का बीता हुआ समय वापस नहीं ला सकते है। एक सफल जीवन जीने के लिए प्रत्येक मनुष्य द्वारा धरती पर समय के मूल्य को महसूस करना अति आवश्यक है। यदि आप समय का सही तरीके ...
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत