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सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

बिहार की राजकीय वित्तव्यवस्था


दोस्तों बिहार के संबंध क्या आप निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर बता सकते है?
  • वर्ष 2021-22 में बिहार राज्य का कुल व्यय कितना लाख करोड़ रुपया था?
  • वर्ष 2021-22 में बिहार सरकार के कुल व्यय में राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय का हिस्सा कितना प्रतिशत रहा?
  • राज्य सरकार ने 2021-22 में अपने स्रोतों से कितना करोड़ रुपया राजस्व संग्रहित किया?
  • 2021-22 में गत वर्ष की अपेक्षा बिहार सरकार के राजस्व लेखे में प्राप्ति कितना प्रतिशत से बढ़ी है?
यदि आप इन तथ्यों से अवगत नहीं हैं तो आइये पढ़ते है इस आर्टिकल को.............




इस टॉपिक को समझने से पहले आइये जानते है कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को-

बजट- बजट फ्रेंच शब्द बूजट (bougette) से लिया गया है जिसका अर्थ है चमड़े का थैला। बजट में सरकार आगामी वित्तीय वर्ष के आय-व्यय की स्थिति, आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम एवं उनपर होनेवाला व्यय, प्रस्तावित कर ढांचा, आय बढ़ाने और व्यय घटाने के प्रस्ताव, आदि को शामिल करती है। बजट वह अस्त्र है जिससे विधायिका कार्यपालिका के कार्यों पर अपना नियंत्रण रखती है। भारतीय संविधान में बजट शब्द का उल्लेख नहीं है।

धन विधेयक यानि मनी बिल- संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक का उल्लेख है । एक विधेयक को उस स्थिति में धन विधेयक कहा जाता है, जब इसमें केवल कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत की संचित निधि से धनराशि प्राप्त करने से संबंधित प्रावधान शामिल हो।

वार्षिक वित्तीय विवरण यानि एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट- संविधान के अनुच्छेद 112 में वार्षिक वित्तीय विवरण का उल्लेख है। इसके अनुसार सरकार प्रत्येक वर्ष आय-व्यय का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी जिसमे यह उल्लेख होगा कि सरकार आगामी वित्तीय-वर्ष में किस मद पर कितना व्यय करेगी तथा इस व्यय को पूरा करने के लिए  आय कहाँ से प्राप्त करेगी।

वित्त विधेयक यानि फाइनेंस बिल- संविधान के अनुच्छेद 117 में वित्त विधेयक का उल्लेख है। वित्त विधेयक में उन सभी विधेयकों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्यक्ष रूप से वित्त से संबंधित मामलों से जुड़े होते हैं, जैसे- सरकार के व्यय अथवा सरकार के राजस्व से संबंधित व्यय को इसमें शामिल किया जाता है।

विनियोग विधेयक यानि Appropriation Bill - संविधान के अनुच्छेद 114 में विनियोग विधेयक का उल्लेख है। विनियोग विधेयक सरकार को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय की पूर्ति के लिये भारत की संचित निधि से धनराशि निकालने की शक्ति देता है।

लेखानुदान यानि वोट ऑन एकाउंट- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार,  लेखानुदान केंद्र सरकार के लिये अग्रिम अनुदान के रूप में है। इसे भारत की संचित निधि से अल्पकालिक व्यय की आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रदान किया जाता है और आमतौर पर नए वित्तीय वर्ष के कुछ शुरुआती महीनों के लिये जारी किया जाता है।

अंतरिम बजट यानि इंटरिम बजट- भारतीय संविधान में 'अंतरिम बजट' जैसा कोई शब्द नहीं है। जिस वित्तीय वर्ष में सरकार चुनाव में जाने वाली होती है उसके पिछले वित्तीय वर्ष में जो बजट पेश होता है उसमे सरकार कोई विशेष घोषणा नहीं करती है, जैसे दरों में बदलाव या नए योजनाओं को चालू करना आदि। उसी बजट को अंतरिम बजट के रूप में जाना जाता है। इसमें बजट की सभी प्रक्रिया का पालन होता है।

लोकखाता यानि पब्लिक एकाउंट- संविधान के अनुच्छेद 226 में पब्लिक एकाउंट का उल्लेख है। इस खाते में एकत्रित धनराशि सरकार की नहीं होती है। इस खाते में वे धनराशियाँ होती है जो लघु बचत या जमा एवं भविष्य निधि आदि के रूप में सरकार को प्राप्त होती है। इनका भुगतान जमाकर्ता को करना होता है। जैसे विभिन्न विभागों एवं मंत्रालयों के बैंक बचत खाते, विनिवेश से प्राप्त राशि, प्रोविडेंट फण्ड, डाकघर बीमा आदि। 

आकस्मिक निधि यानि कंटिजेंसी फण्ड- संविधान के अनुच्छेद 267 में कंटिजेंसी फण्ड का उल्लेख है। ऐसे व्यय जो तुरंत करना आवश्यक है उनकी निकासी इस निधि से की जाती है। आपदा आदि में इसका उपयोग किया जाता है। कोष से राशि निकासी पूर्व संसद के अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि राष्ट्रपति की अनुमति से राशि निकासी की जाती है।

संचित निधि यानि कंसोलिडेटेड फण्ड- संविधान के अनुच्छेद 266 में कंसोलिडेटेड फण्ड का उल्लेख है। सरकार को प्राप्त सभी प्रकार के आय इसी निधि में रखे जाते है। सरकार इसी निधि से सभी प्रकार का व्यय करती है। इस कोष से राशि निकासी पूर्व संसद/विधानसभा का अनुमति आवश्यक होता है।

राजस्व प्राप्ति यानि रेवेन्यू रिसीप्ट- राजस्व प्राप्ति में आय के उन स्रोतों को शामिल किया जाता है जिसके बदले कोई भुगतान नहीं करना होता है। यह अल्पकालिक प्राप्ति है तथा इस प्राप्ति का संबंध केवल प्राप्ति वाले वित्तीय वर्ष से होता है। इस प्राप्ति से सरकार की कोई देनदारी नहीं बढती है। यह दो प्रकार का होता है, पहला- कर राजस्व जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सभी प्रकार के टैक्स शामिल होते है तथा दूसरा गैर-कर राजस्व जिसमें सरकार द्वारा वसूले गए फीस, ब्याज, लाभ, दंड आदि शामिल होते है।

पूंजीगत प्राप्ति यानि कैपिटल रिसीप्ट- पूंजीगत प्राप्ति में आय के उन स्रोतों को शामिल किया जाता है जिसके बदले सरकार को भुगतान करना होता है। यह दीर्घकालिक प्राप्ति होती है जिसमें भुगतान उस वित्तीय वर्ष में न होकर आगामी वित्तीय वर्ष में किया जाता है। शुद्ध घरेलु ऋण, शुद्ध विदेशी ऋण, सरकार द्वारा आम-जनता या आरबीआई से लिया गया ऋण आदि इसमें शामिल होता है।

राजस्व व्यय यानि रेवेन्यू एक्सपेंडीचर- गैर-विकासात्मक प्रकृति का वैसा व्यय जो न तो सरकार की उत्पादन क्षमता बढ़ता है और न ही भविष्य के लिए आय सृजन करता है राजस्व व्यय कहलाता है। सरकारी विभागों एवं सेवाओं पर होनेवाला व्यय, सरकारी सब्सिडी, सरकार कर्ज पर ब्याज आदायगी, सब्सिडी आदि में किया गया व्यय इसमें शामिल होता है।

पूंजीगत व्यय यानि  कैपिटल एक्सपेंडीचर- विकासात्मक प्रकृति का वैसा व्यय जो सरकार के परिसंपत्ति अर्थात एसेट्स में बढ़ोतरी करता है उसे पूंजीगत व्यय में रखा जाता है। पूल, अस्पताल, सड़क, उद्योग-धंधे आदि की स्थापना में किया गया व्यय इसमें शामिल होता है।

राजस्व घाटा यानि रेवेन्यू डेफिसिट- राजस्व प्राप्ति और राजस्व व्यय के बीच का अंतर राजस्व घाटा कहलाता है। 

प्रभावी राजस्व घाटा यानि इफेक्टिव रेवेन्यू डेफिसिट- प्रभावी राजस्व घाटा राजस्व घाटे और पूंजीगत संपत्ति के निर्माण के लिए अनुदान के बीच का अंतर है। हर साल केंद्र सरकार राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों को अनुदान देती है और इन अनुदानों की मदद से दोनों पूंजीगत संपत्ति बनाते हैं हालांकि इन पूंजी को केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में नहीं जोड़ा जाता है। इसलिए इस तरह के व्यय को मापने के लिए एक प्रभावी राजस्व घाटा पेश किया गया है। प्रभावी राजस्व घाटा = राजस्व घाटा - पूंजीगत संपत्ति के लिए सहायता अनुदान।

राजकोषीय घाटा यानि फिस्कल डेफिसिट- राजकोषीय घाटा एक वित्तीय वर्ष के दौरान उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों पर कुल व्यय के आधिक्य के रूप में परिभाषित किया गया है। राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय - उधार को छोड़कर कुल बजट प्राप्तियां या राजकोषीय घाटा = (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) - (राजस्व प्राप्तियां + उधार को छोड़कर पूंजीगत प्राप्तियां) राजकोषीय घाटा सरकार की उधार आवश्यकताओं को दर्शाता है। यह ब्याज भुगतान और ऋण चुकौती पर सरकार की भावी देनदारियों में वृद्धि का सूचक है। सरकार को भविष्य में उधार ली गई राशि को ब्याज सहित वापस करना होगा। नतीजतन, सरकार को ब्याज और ऋण राशि का भुगतान करने के लिए या तो लोगों से अधिक उधार लेना पड़ता है या भविष्य में लोगों पर अधिक कर लगाना पड़ता है।

प्राथमिक घाटा यानि प्राइमरी डेफिसिट- प्राथमिक घाटे को पिछले उधारों पर राजकोषीय घाटा माइनस ब्याज भुगतान के रूप में परिभाषित किया गया है। सकल प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान।

  1. वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार का कुल व्यय 1.93 लाख करोड़ रुपया था। इसमें से 1.59 लाख करोड़ रुपया राजस्व व्यय और 0.34 लाख करोड़ रुपया पूंजीगत व्यय। अर्थात कुल व्यय में राजस्व व्यय का हिस्सा 82.4 प्रतिशत तथा पूंजीगत व्यय का हिस्सा 17.6 प्रतिशत रहा। राज्य सरकार ने पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर अपना ध्यान बनाए रखा जो गत वर्ष से 2021-22 में 29.4 प्रतिशत बढ़ गया है।

  2. वर्ष 2021-22 में सामान्य सेवाओं पर राज्य सरकर का व्यय 48,939 करोड़ रुपया था । इसमें से 28.2 प्रतिशत ब्याज भुगतान था। वहीं, सामाजिक सेवाओं पर व्यय 76,115 करोड़ रुपया और आर्थिक सेवाओं पर व्यय 34,166 करोड़ रुपया था। 

  3. वर्ष 2021-22 में गत वर्ष की अपेक्षा राजस्व लेखे में प्राप्ति 23.9 प्रतिशत बढ़कर 1,58,797 करोड़ रुपया हो गया जबकि राजस्व लेखे में व्यय 14.1 प्रतिशत बढ़ा और 1,59,220 करोड़ रुपया हो गया। इसके चलते राज्य सरकार अपना राजस्व घाटा 2020-21 के 11,325 करोड़ रुपया से घटाकर 2021-22 में 422 करोड़ रुपया तक लाने में सफल रही जो राजस्व घाटे में 96.3 प्रतिशत की कमी को दर्शाता है।

  4. राज्य सरकार ने 2021-22 में अपने स्रोतों से 38,839 करोड़ रुपया राजस्व संग्रहित किया। इसमें से करों से संग्रहित राजस्व का हिस्सा 89.7 प्रतिशत और करेतर राजस्व का हिस्सा 10.3 प्रतिशत रहा। 

  5. वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार से राज्य सरकार को होने वाला सकल वित्तीय अंतरण 1,29,486 करोड़ रुपया था। इसमें से 91,353 करोड़ रुपया केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से के बतौर प्राप्त हुए। केंद्र सरकार से राज्य को प्राप्त सहायता अनुदान 28,606 करोड़ रुपया था जबकि 8527 करोड़ रुपया ऋण के बतौर प्राप्त हुए थे। 

  6. वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार का प्राथमिक घाटा 2020-21 के 17,344 करोड़ रुपया से घटकर 11,729 करोड़ रुपया रह गया। इसी प्रकार, राज्य सरकार का राजकोषीय घाटा 2020-21 में 29,828 करोड़ रुपया था जो 2021-22 में 25,551 करोड़ रुपया रह गया। घाटे में यह कमी महामारी के कारण चुनौतीपूर्ण वर्ष 2020-21 की तुलना में 2021-22 में राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति में सुधार का संकेत देती है । 

  7. वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार का सकल ऋण ग्रहण 40,445 करोड़ रुपया था। वहीं, 2021-22 के अंत में राज्य सरकार पर कुल बकाया ऋण 2,57,510 करोड़ रुपया था । उस वर्ष राज्य सरकार द्वारा ब्याज भुगतान 13,822 करोड़ रुपया और पूंजीगत अदायगी 8746 करोड़ रुपया थी।

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