Test Instructions – Factories Act All questions in this test are curated from the chapter on the Factories Act, 1948, as covered in our book Labour Laws and Industrial Relations . 📚 If you’ve studied this chapter thoroughly, this quiz offers a chance to assess your understanding and retention. The test includes multiple-choice questions that focus on definitions, governance, benefits, and procedural aspects under the Act. ✅ Each correct answer awards you one mark. At the end of the test, your score will reflect your grasp of the subject and guide any revisions you might need. 🕰️ Take your time. Think through each question. Ready to begin? Let the assessment begin! Book- English Version - " Labour Laws & Industrial Relation " हिंदी संस्करण- " श्रम विधान एवं समाज कल्याण ” Factories Act Part-2 MCQs Factories Act, 1948 - Part-2 - MCQ Quiz Submit
संविधान का अनुच्छेद 39d कहता है की “there is equal pay for equal work for both men and women” अर्थात समान कार्य के लिए महिला और पुरुष दोनों को समान वेतन प्राप्त हो। पुरुषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले इस सिद्धांत की मान्यता पूरे विश्व में रही है। अंतर्राष्टीय श्रम संगठन के समान कार्य के लिए महिला एवं पुरुषों को समान वेतन का का अभिसमय संख्या 100 को दस मूलभूत अभिसमयों में से एक माना गया है। इस अभिसमय पर सिफारिश संख्या- 90 (1951) समान पारिश्रमिक सिफारिश भी लाया गया है। भारत ने 1958 में ही समान पारिश्रमिकी अभिसमय को अनुसमर्थित कर दिया था। राष्ट्रीय श्रम आयोग ने भी 1969 में सिफारिश की “समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत इस समय की अपेक्षा, अधिक संतोषजनक रूप से लागू करना चाहिये”। जिसके बाद 1975 में समान पारिश्रमिक अध्यादेश लाया गया और इस अध्यादेश को बाद में समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 से प्रतिस्थापित किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्येश्य है- पुरुष एवं स्त्री कामगारों को समान कार्य के लिए समान वेतन उपलब्ध कराना तथा रोजगार में नियोजन और उससे जुड़े अन्य मामलों में लैगिंक भेदभाव को समाप्त करना। आज के इस टॉपिक में हम समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 (सामान कार्य सामान वेतन) पर चर्चा किया जा रहा है।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
अधिनियम के मुख्य प्रावधान-
👉 इस अधिनियम में कुल तीन अध्याय तथा 18 धाराएँ है।
👉 इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत में है।
👉 यह अधिनियम महिला एवं पुरुष दोनों कामगारों के लिए प्रभावी है। यदि समान कार्य के लिए किसी पुरुष को महिला से कम पारिश्रमिक प्राप्त हो रहा है तो वह भी इस अधिनियम के दायरे में आएगा।
👉 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पारिश्रमिक वह आधारिक मजदूरी (Basic Wage) या वेतन और अतिरिक्त परिलब्धियाँ (Emoluments) चाहे वह नकद या वस्तु (Cash or Kind) रूप में संदेय है, जिसे नियोजित व्यक्ति, नियोजन की शर्तों को पूरा करने के बाद प्राप्त करता है।
👉 अधिनियम में समान काम या समान प्रकृति का काम को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि वैसा काम जिसके बारे में अपेक्षित कौशल, प्रयत्न तथा उत्तरदायित्व उस समय एक जैसे है जब काम करने की समान दशाओं में वह काम पुरुष या स्त्री द्वारा किया जाता है और यदि उसमे कोई अंतर है तो उसका कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है। अर्थात यदि किसी कार्य को अलग-अलग लिंग के लोग कर रहे है और उसको करने में जो कौशल (Skill) की जरुरत है, जितना प्रयास (Efforts) लगाना है और जिसको करने में उत्तरदायित्व (Responsibility) भी वही है तो वह समान कार्य कहलायेगा।
👉 किसी स्थापना में कोई भी नियोजक एक ही समान कार्य पर लगे किसी भी कामगार को उस दर से कम दर पर मजदूरी नहीं देगा, जिस दर से वैसे ही काम पर लगे दूसरे लिंग के कामगारों को देय होता है।
👉 इस अधिनियम को लागू करने में कोई भी नियोजक किसी कामगार के पारिश्रमिकी को कम नहीं सकता है। यानि नियोजक पुरुष कामगार को यदि 12 हजार प्रतिमाह का पारिश्रमिक दे रहा है और उसी समान कार्य के लिए महिला कामगार को 10 हजार वेतन दे रहा है तो वह एक समान वेतन करने के लिए पुरुष कामगार का वेतन नहीं घटा सकता है बल्कि उसे महिला कामगार का वेतन बढ़ाना होगा।
👉 उन स्थितयों को छोड़कर जहाँ स्त्रियों के नियोजन को प्रतिबंधित नहीं किया गया हो, कोई भी नियोजक एक ही समान कार्य पर भर्ती, पदोन्नति, प्रशिक्षण या स्थानांतरण के समय भेदभाव नहीं करेगा।
👉 दावे एवं शिकायत की सुनवाई के लिए समुचित सरकार प्राधिकारी की नियुक्ति कर सकती है। सामान्यतया श्रम विभाग के पदाधिकारियों को प्राधिकार घोषित किया जाता है। प्राधिकार के निर्णय से विक्षुब्ध व्यक्ति 30 दिनों के अंदर सरकार द्वारा नियुक्त अपील प्राधिकारी के पास अपील कर सकता है।
👉 अपने अपने अधिकार क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा निरीक्षक नियुक्त किया जाएगा। सामान्यतया श्रम विभाग के पदाधिकारियों को निरीक्षक घोषित किया जाता है।
👉 नियोजक द्वारा दस्तावेज को अनुरक्षण नहीं करना या कर्मकारों के नियोजन सम्बन्ध में सूचना नहीं देने या किसी व्यक्ति को सूचना देने से रोकने पर एक माह का कारावास या 10 हजार तक जुर्माना या दोनों हो सकता है।
👉 भर्ती, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि में महिला-पुरुष में भेदभाव या समान काम के लिए समान वेतन नहीं देने पर 10 हजार से 20 हजार तक जुर्माना या 3 माह से एक वर्ष तक कारावास या दोनों हो सकता है।
👉 निरीक्षक के समक्ष रजिस्टर नहीं पेश करने, दस्तावेज या सूचना नहीं प्रस्तुत करने पर 500 रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
👉 2019 में भारत सरकार द्वारा इस अधिनियम को वेतन संहिता 219 में समाहित कर दिया गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. समान कार्य के लिए समान वेतन क्या है?
उत्तर- वैसा काम जिसके बारे में अपेक्षित कौशल, प्रयत्न तथा उत्तरदायित्व उस समय एक जैसे है जब काम करने की समान दशाओं में वह काम पुरुष या स्त्री द्वारा किया जाता है और यदि उसमे कोई अंतर है तो उसका कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है। अर्थात यदि किसी कार्य को अलग-अलग लिंग के लोग कर रहे है और उसको करने में जो कौशल (Skill) की जरुरत है, जितना प्रयास (Efforts) लगाना है और जिसको करने में उत्तरदायित्व (Responsibility) भी वही है तो वह समान कार्य कहलायेगा।
2. क्या समान काम का समान वेतन मौलिक अधिकार है?
उत्तर- सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 जनवरी 2022) को दिए गए एक फैसले में टिप्पणी की कि " समान काम के लिए समान वेतन" किसी भी कर्मचारी में निहित मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि यह सरकार द्वारा प्राप्त किया जाने वाला एक संवैधानिक लक्ष्य है। जैसा कि हम जानते है संविधान का अनुच्छेद 39d कहता है की “there is equal pay for equal work for both men and women” अर्थात समान कार्य के लिए महिला और पुरुष दोनों को समान वेतन प्राप्त हो। पुरुषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले इस सिद्धांत की मान्यता पूरे विश्व में रही है। अंतर्राष्टीय श्रम संगठन के समान कार्य के लिए महिला एवं पुरुषों को समान वेतन का का अभिसमय संख्या 100 को आठ मूलभूत अभिसमयों में से एक माना गया है।
3. समान मजदूरी अधिनियम क्या है?
उत्तर- यह अधिनियम लिंग के आधार पर पारिश्रमिक पर भेदभाव नहीं करने से सम्बंधित है। किसी स्थापना में कोई भी नियोजक एक ही समान कार्य पर लगे किसी भी कामगार को उस दर से कम दर पर मजदूरी नहीं देगा, जिस दर से वैसे ही काम पर लगे दूसरे लिंग के कामगारों को देय होता है। भर्ती, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि में महिला-पुरुष में भेदभाव या समान काम के लिए समान वेतन नहीं देने पर 10 हजार से 20 हजार तक जुर्माना या 3 माह से एक वर्ष तक कारावास या दोनों हो सकता है।
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