Traning Material
हालाँकि भारत सरकार द्वारा श्रम नीति की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गयी है, परंतु मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि श्रम नीति से उन नियमों उपायों का बोध होता है जिन्हें उद्योगों में श्रमिक, नियोजक और राष्ट्र के आर्थिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाता है। श्रम नीति का प्रमुख उद्देश्य होता है कि ऐसे औद्योगिक वातावरण का निर्माण किया जाए जिससे श्रमिकों और नियोजकों के बीच पारस्परिक सहयोग की भावना बनी रहे। प्रोफेसर ए०के० जैन के अनुसार “श्रम नीति वह नीति है, जिसके द्वारा सरकार औद्योगिक संबंध, काम की स्थिति, प्रशिक्षण, शोध एवं अन्य महत्वपूर्ण समस्याओं के संबंध में अपने अभिप्राय व्यक्त करती है कि उसे नियोजकों तथा श्रमिकों के लिए क्या करना चाहिए”। एक विकासशील देश में तीव्र गति से आर्थिक विकास लाने के लिए समुचित व दृढ़ श्रम नीति का होना आवश्यक है। विकास की प्रारंभिक अवस्था में मूल्यों में वृद्धि, अधिक बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः श्रम नीति का आयोजन इस प्रकार होना चाहिए कि इन समस्याओं को नियंत्रित किया जा सके। इस टॉपिक में हम भारत में श्रम नीति के संबंध में चर्चा करेंगे।
भारत में श्रम नीति
बेहतर श्रम नीति की विशेषता
एक बेहतर श्रम नीति की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नवत है-
● श्रमिकों को उचित मजदूरी मिलनी चाहिए तथा मजदूरी की वृद्धि को उत्पादकता से जुड़ा होना चाहिए जिससे जब उत्पादकता में वृद्धि हो तो मजदूरी बढे और कीमतों में वृद्धि ना हो।
● विकास के नाम पर वास्तविक मजदूरी बढे और कीमतों में ज्यादा वृद्धि न होने पाए।
● अनुचित तथा अत्यधिक मजदूरी, बोनस, महंगाई एवं अन्य प्रकार के भत्तों में अत्यधिक वृद्धि से बचना चाहिए।
● मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे उपभोक्ताओं को कम कीमत पर आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध होती रहें एवं श्रमिकों को महंगाई के कारण अधिक कष्ट न उठाना पड़े।
● देश में सुदृढ़ और शक्तिशाली श्रमिक संघों का विकास किया जाना चाहिए।
● श्रमिकों को शिक्षित व प्रशिक्षित करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
● श्रमिकों को मनोवृति मे इस प्रकार का परिवर्तन करना चाहिए कि वे तकनीकी परिवर्तनों का विरोध न कर उसमे दक्षता लाने का प्रयत्न करें।
● श्रम अधिनियमों के समुचित क्रियान्वयन की व्यवस्था होनी चाहिए।
● देश में सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक कल्याण संबंधी सुविधाओं का विस्तार होना चाहिए।
● श्रमिकों में भी कर्तव्य, उत्तरदायित्व एवं अनुशासन की भावना जागृत होनी चाहिए।
पंचवर्षीय योजनाओं में श्रम नीति की प्रमुख विशेषताएं
- 1951 से भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को प्रारंभ किया है और श्रम के संबंध में अपनी नीतियां व्यक्त की जैसा कि तीसरी पंचवर्षीय योजना में उल्लेखित किया गया है “भारत में श्रम नीति का विकास उद्योगों और श्रमिक वर्ग से संबंधित परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुरूप ही हुआ है और इसे योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं से सामंजस्य रखना पड़ता है। सरकार को नियोजकों और श्रमिकों के प्रतिनिधियों के साथ परामर्श करने के फलस्वरूप कुछ सिद्धांतों और व्यवहारों के विकास में सहमति प्राप्त हो गई है और इस सहमति के आधार पर सरकार ने श्रम विधान तथा कुछ अन्य उपायों का निर्माण किया है। इस प्रकार राष्ट्रीय श्रम नीति का विकास हुआ है”।
- हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में भारत सरकार की श्रम नीति एवं श्रम संबंधी अधिनियम का मुख्य उद्देश्य देश में सामूहिक सौदेबाजी के द्वारा और यदि वह असफल हो जाए तो समझौता कराने की व्यवस्था के द्वारा और फिर भी वह असफल हो जाए तो मध्यस्थ निर्णयन के द्वारा औद्योगिक शांति बनाए रखना है।
- सरकार हड़ताल और तालाबंदियों को हतोत्साहित करने का प्रयास करती रही क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका कुप्रभाव पड़ता है।
- पहले पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति के दो प्रमुख आधार बताए गए पहला श्रमिकों की सब प्रकार से उन्नति हो और उन्हें न्याय मिले तथा दूसरा देश के आर्थिक विकास में वे पूर्ण रूप से योगदान दें।
- दुसरे पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति के दो प्रमुख पहलु थे- प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी तथा श्रमिकों की शिक्षा के प्रोग्राम का विस्तार कर श्रम कल्याण केन्द्रों को अधिक से अधिक विस्तृत करना।
- तीसरे पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति का उद्देश्य द्वितीय पंचवर्षीय योजना में व्यक्त की गई नीति को सुदृढ़ स्थिर एवं विस्तृत बनाना था। इस योजना में मजदूरी बोर्ड स्थापित करने तथा ऐच्छिक अधिनिर्णयन की सिफारिश को स्वीकार कर लिया गया।
- चौथे पंचवर्षीय योजना में मुख्यतया श्रम कानूनों के प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन हेतु श्रम प्रशासन को सुदृढ़ बनाने तथा श्रम संबधी विषयों पर अनुसंधान और सांख्यिकी सुधार का प्रयास किया गया।
- पांचवे पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति का आधार औद्योगिक शांति बनाए रखना एवं उत्पादकता में वृद्धि करना था। रोजगार एवं स्वरोजगार सुविधाओं के विकास पर बल दिया गया। कर्मचारी राज्य बीमा योजना को विस्तृत किया गया।
- छठे पंचवर्षीय योजना में जिस श्रम नीति का अनुमोदन किया गया उसमे उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए प्रबंध में श्रमिकों के बीच सहयोग पर बल दिया गया। श्री एस० बुभलिंगम की अध्यक्षता में आय तथा कीमतों पर एक राष्ट्रीय नीति तय करने के लिए अध्ययन दल की नियुक्ति की गयी।
- सातवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति में रोजगार, मानव बल का नियोजन, क्षमता का उपयोग, कार्यकुशलता तथा उत्पादकता में वृद्धि एवं सामाजिक सुरक्षा पर विशेष बल दिया गया।
- आठवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम की गुणवत्ता, कार्यकुशलता, कार्य की दशाओं में सुधार और सामाजिक कल्याण विशेष रूप से उनके लिए जो असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे है, श्रम नीति का मुख्य विषय रहा।
- नौवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम उत्पादकता में वृद्धि, काम के अवसरों की सूचना का आदान-प्रदान, श्रमिकों और उनके आश्रितों के हितों की रक्षा, प्रवासी तथा बंधुवा श्रमिक से जुडी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास श्रम नीतियों द्वारा किया गया।
- दसवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम नीतियों द्वारा बाल श्रम, असंगठित क्षेत्र के कामगारों के कल्याण, कौशल उन्नयन एवं श्रम सांख्यिकी तथा अनुसन्धान के क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया गया। औद्योगिक विवादों को लोक अदालतों की स्थापना कर सुलझाने के सुझाव दिए गए।
- ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम लोचशीलता अर्थात श्रमिकों को काम पर लगाने और हटाने में पूर्ण स्वतंत्रता तथा श्रम कानूनों में सुधार पर बल दिया गया। अकुशल श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर को 20% तक बढ़ाने की बात कही गयी।
- बारहवीं पंचवर्षीय योजना में श्रम नीति का मुख्य प्रयास भारतीय श्रमिकों के कौशल को विश्वस्तरीय मानक का बनाना रहा जिससे भारत में उपलब्ध कार्यशील जनसँख्या के समुह का उच्चतम लाभ प्राप्त किया जा सके। रोजगार के अधिक अवसर सृजित करने के उद्येश्य से गैर कृषि क्षेत्र में 50 मिलियन नए काम के अवसर पैदा करने का लक्ष्य रखा गया।
पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत भारत की श्रम नीति की प्रमुख विशेषताएं
● औद्योगिक शांति बनाए रखने को प्राथमिकता देना।
● आपसी सामूहिक सौदेबाजी तथा ऐच्छिक पंच निर्णय को प्रोत्साहित करना।
● न्याय न मिलने पर श्रमिकों द्वारा शांतिपूर्ण प्रत्यक्ष कार्यवाही करने के अधिकार को स्वीकृत करना।
● राज्य द्वारा समाज के हितों का संरक्षण करना।
● कमजोर पक्ष के हित में राज्य द्वारा हस्तक्षेप किया जाना।
● उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाने में सहयोग प्राप्त करना।
● श्रमिकों को उचित मजदूरी के प्रति आश्वस्त करना तथा सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करना।
● समाज की आर्थिक आवश्यकताओं को सर्वोच्च संभव ढंग से पूरा करने के लिए नियोजक तथा श्रमिकों में रचनात्मक सहयोग स्थापित करना।
● श्रमिकों के उद्योग की स्थिति में वृद्धि करना।
● सरकारी नियमों को उचित रूप से लागू कराना आदि।
वर्तमान समय में देश की श्रम नीति
👉भारत सरकार ने 1962 में राष्ट्रीय श्रम अर्थशास्त्र अनुसंधान और विकास संस्थान (NILERD) की स्थापना की। यह नीति आयोग, योजना मंत्रालय से संबद्ध एक केंद्रीय स्वायत्त संगठन है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार वर्तमान में इसकी जनरल काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में, मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अमिताभ कांत कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष के रुप में और प्रोफेसर अरुप मित्रा निलेर्ड के महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे हैं। इस संस्था के प्राथमिक उद्देश्यों में विकास के सभी मुख्य पहलुओं के संबंध में अनुसंधान और डेटा संग्रहण और मानव पूंजी आयोजना, मानव संसाधन विकास तथा अनुवीक्षण और मूल्यांकन के सभी पहलुओं में शिक्षा तथा प्रशिक्षण देना शामिल है।
👉 वर्तमान समय में सरकार ने अपनी श्रम नीतियों में व्यापक बदलाव किए है। एक तरफ जहाँ सरकार का प्रयास है कि इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के द्वारा नियोजकों को उद्योगों के संचालन में सहूलियत दिया जाए वही दूसरी तरफ श्रम कानूनों में सुधार लाकर उसकी जटिलताओं को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि उनका अनुपालन समुचित ढंग से हो सके और श्रमिकों को लाभान्वित किया जा सके। हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा कार्यरत अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों के एक उपसमूह के साथ मिलकर राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति (National Migrant Labour Policy) का मसौदा तैयार किया गया है।
👉 वर्तमान श्रम नीति की मुख्य अवधारणा निजी क्षेत्रों में रोजगार सृजन, श्रमिकों का कौशल विकास, श्रमिकों के हितों को सुरक्षित रखते हुए श्रम उत्पादकता बढ़ाना, सामाजिक संवाद के माध्यम से औद्योगिक विवादों को रोकना, श्रम कल्याण एवं श्रम सुरक्षा, औद्योगिक शांति को बढ़ाना, श्रमिकों के आय में बढ़ोतरी, असंगठित श्रमिकों को विशेष सुरक्षा प्रदान करना, श्रम के नए रूपों यथा प्लेटफार्म वर्कर, गिग वर्कर, आउटसोर्सिंग वर्कर आदि को सुरक्षित करना, प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा, श्रम कानूनों का बेहतर प्रवर्तन करते हुए इंस्पेक्टर राज को ख़त्म करना, आदि है।
👉 पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम- 16 अक्टूबर 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने कहा कि “राष्ट्र निर्माण के लिए श्रम की जरूरत है। हमने आज तक श्रम को उचित दर्जा नहीं दिया है। हमें अब श्रमिकों के प्रति नजरिया बदलना होगा। हमारा श्रमिक श्रम योगी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सत्यमेव जयते जितनी ही ताकत श्रमेव जयते में भी है।” श्रम क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाने के कुछ प्रमुख योजनाओं की शुरुआत की गयी-
● श्रम सुविधा पोर्टल- इस पोर्टल की विशेषताएं हैं:
– ऑनलाइन पंजीकरण के लिए इकाइयों को विशिष्ट श्रम पहचान संख्या(LIN) आवंटित की जाएगी।
– उद्योग द्वारा स्वयं प्रमाणित और सरल ऑनलाइन विवरणी दायर करना। अब इकाइयों को 16 अलग विवरणी दायर करने के बजाय सिर्फ एक विवरणी ऑनलाइन दायर करना होगा।
– आठ (8) केंद्रीय श्रम अधिनियम, अर्थात् वेतन अधिनियम, 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961, बोनस अधिनियम 1965, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970, अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1979, और भवन एवं अन्य सन्निर्माण कामगार (रोजगार का विनियमन और सेवा की स्थिति) अधिनियम 1996, के भुगतान के संबंध में एकीकृत ऑनलाइन वार्षिक विवरणी अनिवार्य किया गया है। ये विवरणी जो पहले छमाही / वार्षिक तौर पर भरे जाते थे, अब सभी नियोक्ताओं द्वारा केवल वार्षिक रूप से दाखिल किए जाने की आवश्यकता है और इन्हें ऑनलाइन दायर किया जाना है।
– श्रम निरीक्षकों द्वारा 72 घंटे के भीतर निरीक्षण रिपोर्ट अपलोड करना अनिवार्य है।
– पोर्टल की मदद से समय पर शिकायत का निवारण होगा।
– छह (6) केंद्रीय श्रम अधिनियमों के तहत श्रम निरीक्षण से छूट की सुविधा स्टार्ट-अप को प्रदान की जा रही है जो श्रम सुविधा पोर्टल के माध्यम से स्व-प्रमाणित घोषणा पत्र प्रस्तुत करते हैं।
● आकस्मिक निरीक्षण प्रणाली- इसके अंतर्गत इंस्पेक्टर राज को समाप्त करने के उद्येश्य से Random System Generated Inspection System बनाने की बात की गयी। श्रम निरीक्षकों द्वारा 72 घंटे के भीतर निरीक्षण रिपोर्ट को श्रम सुविधा पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य किया गया। श्रम निरीक्षण में पारदर्शिता लाने के लिए एक पारदर्शी श्रम निरीक्षण योजना तैयार की गई है। इसकी चार विशेषताएं हैं-
– अनिवार्य निरीक्षण सूची के अंतर्गत गंभीर मामलों को शामिल किया जाएगा।
– पूर्व निर्धारित लक्ष्य मानदंड पर आधारित निरीक्षकों की एक कम्प्यूटरीकृत सूची आकस्मिक तैयार की जाएगी।
– आंकड़ों और प्रमाण पर आधारित निरीक्षण के बाद शिकायत आधारित निरीक्षण किया जाएगा।
– विशेष परिस्थितियों में गंभीर मामलों के निरीक्षण के लिए आपात सूची का प्रावधान होगा।
● यूनिवर्सल खाता संख्या- इससे अंतर्गत सभी कर्मचारियों का अपना पोर्टेबल, परेशानी मुक्त और ऐसा भविष्य निधि खाता होगा जिस तक कहीं से भी पहुंचा जा सकता है। कर्मचारी भविष्य निधि के लिए यूनिवर्सल खाता संख्या के जरिये पोर्टेबिलिटी के लिए आवेदन देना होगा। योजना के अंतर्गत 4 करोड़ से अधिक ईपीएफ धारकों का केन्द्रीय स्तर पर संग्रहण और डिजिटाइजेशन किया गया है और सभी को यूएएन दिया गया है।
● प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना- इससे प्रशिक्षुओं को पहले दो वर्ष के दौरान भुगतान की जाने वाली राशि का 50 प्रतिशत सरकार द्वारा लौटाकर मुख्य रुप से निर्माण इकाइयों और अन्य प्रतिष्ठानों को मदद किया गया।
● पुनर्गठित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना- असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों को स्मार्ट कार्ड देना जिनमें दो और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विवरण होगा। बाद में सरकार द्वारा असंगठित श्रमिकों को ध्यान में रखते हुए आयुष्मान भारत योजना लाया गया।
● पूर्व शिक्षा की मान्यता- Recognition of Prior Learning (RPL) के द्वारा पूर्व में सीखे गए अनुभव को कौशल प्रशिक्षण से जोड़कर श्रमिकों की कार्य-कुशलता बढ़ाने का प्रयास किया जाना है ताकि उनकी अर्जक क्षमता में वृद्धि हो सके।
👉 ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस(EODB)- व्यापार को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा कुल 187 बिन्दुओं पर राज्य सरकार को सुधार हेतु सुझाव दिया गया। जिसमें श्रम प्रशासन से संबंधी 19 बिन्दुओं में सुधार का सुझाव भी शामिल है। हाल ही में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार ने राज्यों को कर्ज की सीमा बढ़ाने के शर्तों के अधीन ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के तहत 9 अधिनियमों (समान परिश्रमिकी अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, बिहार दुकान प्रतिष्ठान अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम, मजदूरी भुगतान अधिनियम, उपादान भुगतान अधिनियम, ठेका श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम, कारखाना अधिनियम तथा बायलर अधिनियम) में Computerized central random inspection system विकसित करने तथा चार अधिनियमों में नवीकरण को यथासंभव समाप्त करने का सुझाव दिया है। व्यापार सुगमता के तहत बिहार राज्य में श्रम प्रशासन द्वारा मुख्यतः निम्न बिन्दुओं पर कार्य किया गया है-
● विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत दिए जाने वाले निबंधन एवं नवीकरण लाइसेंस पारदर्शी तरीके से ऑनलाइन तथा निश्चित समय-सीमा के भीतर (15 दिन में) निर्गत करने की व्यवस्था की गयी है।
● कारखाना अधिनियम के तहत 10 वर्षों के लिए लाइसेंस दने की व्यवस्था की गयी है।
● नियोजकों को दस श्रम अधिनियमों में ऑनलाइन विवरणी दाखिल करने हेतु आवश्यक संशोधन बिहार नियमावली में किए गए है।
● किसी भी कारखाना या औद्योगिक स्थापनों के लिए लगातार दुबारा निरीक्षण पर रोक लगाया गया है।
● कारखानों और प्रतिष्ठानों को निम्न, मध्यम और उच्च जोखिम श्रेणी में वर्गीकृत करते हुए निम्न तथा माध्यम जोखिम वाले उद्योगों/स्थापनों के निरीक्षण के लिए स्वअभिप्रमाणन की व्यवस्था तथा अन्य पक्ष प्रमाणन (Third party certification) के सुविधा की व्यवस्था की गयी है।
● किसी भी प्रतिष्ठान में (बाल श्रम निषेध के कार्यों को छोड़कर) निरीक्षकों को अकेले निरीक्षण की अनुमति नहीं है तथा इसके लिए Computerized central random inspection system के तहत निरीक्षण का प्रावधान किया गया है।
● ऑनलाइन एकीकृत विवरणी नियोजकों से जमा करवाने की व्यवस्था की जा रही है।
इस प्रकार कहा जा सकता है, भारत की श्रम नीति निरंतर श्रमिकों के उत्थान के लिए प्रयासरत है।
Comments