Skip to main content

Factories Act Part-2 MCQs

Test Instructions –  Factories Act  All questions in this test are curated from the chapter on the Factories Act, 1948, as covered in our book  Labour Laws and Industrial Relations . 📚 If you’ve studied this chapter thoroughly, this quiz offers a chance to assess your understanding and retention. The test includes multiple-choice questions that focus on definitions, governance, benefits, and procedural aspects under the Act. ✅ Each correct answer awards you one mark. At the end of the test, your score will reflect your grasp of the subject and guide any revisions you might need. 🕰️ Take your time. Think through each question. Ready to begin? Let the assessment begin! Book- English Version - " Labour Laws & Industrial Relation " हिंदी संस्करण- " श्रम विधान एवं समाज कल्याण ” Factories Act Part-2 MCQs Factories Act, 1948 - Part-2 - MCQ Quiz Submit

श्रम संहिता का परिचय (Labour Code in India)

भारत मे श्रम कानून ब्रिटिश समय से ही प्रभावी रहे है, जैसे- कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923, श्रम संघ अधिनियम, 1926 आदि। स्वतंत्रता के पश्चात कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पुष्ट करने के लिए कई प्रकार के नए श्रम कानून बनाये गए जैसे- मातृत्व हितलाभ अधिनियम, 1966, समान परिश्रमिकी अधिनियम, 1976, असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 आदि।श्रम संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है। इसलिए, संसद और राज्य विधानमंडल दोनों ही श्रम को विनियमित करने वाले कानून बना सकते हैं। श्रम के विभिन्न पहलुओं जैसे, औद्योगिक विवादों का समाधान, काम करने की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा और मजदूरी आदि को विनियमित करने वाले लगभग 100 से अधिक राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। इन श्रम कानूनों की जटिलता के कारण न तो नियोजक सही से इसका अनुपालन कर पाते है और न ही सरकार इनका सही से प्रवर्तन करा पाती है। भारत सरकार ने श्रम सुधारों के तहत पूर्व के 29 श्रम कानूनों को समाहित करके 4 श्रम संहिता में परिवर्तित किया है। यदि किसी विशेष विषय वस्तु पर उपलब्ध विभिन्न लिखित कानून है तो उसका व्यवस्थित संग्रह संहिता कहलाता है। जैसा कि हम जानते है, देश मे लगभग 44 श्रम कानून है जिसमें से एक ही विषय से संबंधित कई कानून है, जैसे- मज़दूरी से जुड़ा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, वेतन भुगतान अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम, आदि। इन्हीं भिन्न-भिन्न कानूनों को श्रम संहिता के रूप में संकलित करने का प्रयास किया गया है। आज के इस टॉपिक में हम श्रम संहिता (Labour Code) के संबंध में चर्चा करेंगे।



श्रम संहिता (Labour Code)

उद्येश्य


इन श्रम संहिताओं को लाने का प्रमुख उद्येश्य निम्न है-

👉श्रम कानूनों का सरलीकरण करना

👉उद्योगों की रक्षा करते हुए रोजगार सृजन की सुविधा विकसित करना

👉श्रम कानूनों के तहत अधिकतम प्रतिष्ठानों का अच्छादन करना

👉कामबंदी (Lay-off), बंदी (closure) और छंटनी (retrenchment) की नयी सीमा तय करना

👉श्रम प्रशासन में सुधार लाना

👉ठेका श्रमिकों (Contract labour) को सुरक्षित करना

👉श्रम संघों (Trade Unions) की समस्या का समाधान करना

👉डिजिटलीकरण में श्रम-बाजार के लिए उभरती चुनौतियाँ का सामना करना

केंद्र सरकार ने एक जैसे 29 कानूनों को समाहित करके चार श्रम संहिता में परिवर्तित किया है। ये संहिताएँ निम्न प्रकार से है-

1. सामाजिक श्रम संहिता (Social Security Code, 2020)

माननीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा 19 सितम्बर, 2020 को लोकसभा में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 को पेश किया गया जो 22 सितम्बर, 2020 को लोकसभा से पारित हुआ। 23 सितम्बर, 2020 को राज्यसभा से पारित होने के बाद 28 सितम्बर, 2020 को राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की गयी। वर्तमान में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 लागू नहीं है। यह संहिता किस तिथि से प्रभावी होगी इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किया जाएगा। इस संहिता की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित है-


👉 इस संहिता में 9 विभिन्न श्रम अधिनियमों यथा- कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952, नियोजनालय (रिक्तियों की अनिवार्य सूचना) अधिनियम, 1959, मातृत्व हितलाभ अधिनियम, 1961, उपादान भुगतान अधिनियम, 1972, सिनेमा कर्मकार कल्याण-निधि अधिनियम, 1981, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण उपकर अधिनियम, 1996, असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 को समाहित किया गया है।

👉 इस संहिता का उद्येश्य संगठित, असंगठित या किसी अन्य क्षेत्र में कार्यरत सभी कर्मचारियों और कर्मकारों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना है।

👉  संहिता में कई नए शब्दों जैसे कैरियर केन्द्र, समूहक, प्लेटफार्म कर्मकार आदि को परिभाषित किया गया है।

👉  संहिता के अंतर्गत विभिन्न सामाजिक सुरक्षा बोर्ड/निगम जैसे कर्मचारी भविष्य निधि न्यासी केंद्रीय बोर्ड, कर्मचारी राज्य बीमा निगम, असंगठित कर्मकार राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड, असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड, गिग एवं प्लेटफार्म कर्मकार राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड, राज्य भवन कामगार कल्याण बोर्ड बनाए गए है।

👉  संहिता केंद्रीय सरकार को असंगठित कामगारों, गिग कर्मकारों, प्लेटफार्म वर्कर्स तथा उनके आश्रितों के लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम से संबंधित लाभों का उपबंध करने के लिए सशक्त करता है।

👉  संहिता में स्वनियोजित कर्मकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभों का उपबंध करने हेतु योजनाओं को संचालित करने के लिए केंद्र सरकार को सक्षम किया गया है।

👉  संहिता में मातृत्व लाभ, कर्मकार प्रतिकर, उपदान, निर्माण श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा आदि के विस्तृत प्रावधान किए गए है।

👉  असंगठित कामगारों, गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों आदि को आधार नंबर की सहायता से निबंधित करने का प्रावधान भी संहिता में किया गया है।

👉  असंगठित कामगारों, गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों आदि को सामाजिक सुरक्षा का लाभ देने के लिए सामाजिक सुरक्षा कोष के गठन का प्रावधान बनाया गया है।

👉  संहिता में स्थापनों के रजिस्ट्रीकरण का भी प्रावधान किया गया है।

👉  संहिता द्वारा निर्धारित विभिन्न अपराध के लिए सरकार द्वारा अधिसूचित राजपत्रित पदाधिकारी जुर्माने के साथ अपराधों का प्रशमन (Compounding) कर सकते है।

पूर्व के अधिनियमों और वर्तमान संहिता के प्रावधानों में मुख्य अंतर निम्नवत है-



2. औद्योगिक सम्बन्ध संहिता (Industrial Code, 2020)


माननीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा 19 सितम्बर, 2020 को लोकसभा में औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 को पेश किया गया जो 22 सितम्बर, 2020 को लोकसभा से पारित हुआ। 23 सितम्बर, 2020 को राज्यसभा से पारित होने के बाद 28 सितम्बर, 2020 को राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की गयी। वर्तमान में औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 लागू नहीं है। यह संहिता किस तिथि से प्रभावी होगी इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किया जाएगा । इस संहिता की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित है-


👉   तीन श्रम अधिनियमों यथा- श्रम संघ अधिनियम, 1926; औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947; तथा औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 को समाहित कर औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 बनाया गया है।

👉  संहिता में कर्मकार को परिभाषित करते हुए ₹18000 तक मासिक वेतन पाने वाले पर्यवेक्षक को भी कामगार के अंतर्गत रखा गया है।

👉  नियत अवधि नियोजन (Fixed Term Employment) को इस प्रकार लागू करने का प्रावधान बनाया गया है कि नियत अवधि की समाप्ति पर नोटिस की अवधि और छंटनी प्रतिकार के अतिरिक्त कामगार को स्थायी कामगार के समान सभी सुविधाएँ प्राप्त हो।

👉  हड़ताल की परिभाषा के क्षेत्र में निश्चित आकस्मिक छुट्टी को लाया गया है।

👉  बीस से अधिक कामगार वाले प्रतिष्ठानों में अधिकतम दस सदस्यों की संख्या वाले शिकायत निवारण समिति का गठन किया जाना है।

👉  पहली बार वार्ता के प्रयोजनों के लिए नियोजकों द्वारा किसी औद्योगिक स्थापना में वार्ताकारी संघ और वार्ताकारी परिषद् की मान्यता की नयी विशेषता को उपबंधित किया गया है। वार्ताकारी संघ की मान्यता उस संघ को दिया जाएगा जिसके पास उस औद्योगिक स्थापना के मास्टर रोल में दर्ज 51% या अधिक कामगार सदस्य है। वही जिस श्रमसंघ के पास 20% या अधिक सदस्य है उसे वार्ताकारी परिषद् में एक सीट प्राप्त होगा।

👉  अधिकरण के समक्ष श्रमसंघ के अरजिस्ट्रीकरण या रजिस्ट्रीकरण के रद्द किए जाने की स्थिति में अपील करने का उपबंध किया गया है।

👉  केंद्र सरकार या राज्य सरकार को अपने अधिकार क्षेत्र में किसी श्रमसंघ या उसके महासंघ को केन्द्रीय श्रमसंघ या राज्य श्रमसंघ के रूप में मान्यता देने की शक्ति दी गयी है।

👉  अब यदि 300 से अधिक कामगार होंगे तो स्थायी आदेश (Standing Order) लागू होगा। यदि कोई नियोजक मॉडल स्थायी आदेश को ही अपनाता है तो उसे स्थायी आदेश का प्रमाणीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है।

👉  वर्तमान में प्रचलित बहु न्यायालयी निकायों जैसे श्रम न्यायालय, सुलह बोर्ड, जाँच न्यायालय को अब समाप्त कर केवल अधिकरण (Tribunal) को रखा गया है। अधिकरण में वर्तमान के एकल न्यायिक सदस्य की व्यवस्था के स्थान पर एक न्यायिक सदस्य और एक प्रशासनिक सदस्य होंगे।

👉  औद्योगिक विवाद के असफल सुलह में न्यायनिर्णयन के लिए निर्देशन (Reference) की व्यवस्था अब समाप्त कर दी गयी है। केवल राष्ट्रीय औद्योगिक अधिकरण के मामले में निर्देश किया जा सकता है।

👉  नए संहिता में उपबंधित किया गया है कि सुलह करवाई सुलह अधिकारी द्वारा हड़ताल और तालाबंदी की सूचना प्राप्ति के बाद पहली बैठक आयोजित किए जाने की तिथि से प्रारंभ हुई समझी जाएगी।

👉  सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में चौदह दिन की सूचना दिए बिना हड़ताल और तालाबंदी पर रोक लगाया गया है। यदि कोई मामला ट्रिब्यूनल में लंबित है तो इस मामले से सम्बन्धित हड़ताल कामगारों द्वारा नहीं की जा सकती है।

👉  औद्योगिक सम्बन्ध संहिता में कम्पनियों या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में कार्य करने कामगारों को काम पर रखने और उनकी छँटनी करने से सम्बन्धित प्रावधान को आसान किया गया है। अब केवल 300 से अधिक कामगारों वाले प्रतिष्ठानों में कामबंदी, छंटनी और बंदी के पहले समुचित सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता होगी।

👉  छंटनी किए गए कामगारों के कौशल संवर्धन के लिए कर्मकार पुनः कौशल निधि की स्थापना की गयी है। इस निधि में नियोजक द्वारा अन्य भुगतान के साथ-साथ छंटनीग्रस्त कामगार के 15 दिनों के वेतन या अन्य कोई राशि जो केंद्र सरकार अधिसूचित करे, जमा कराया जाएगा।

👉  संहिता द्वारा निर्धारित विभिन्न अपराध के लिए सरकार द्वारा अधिसूचित राजपत्रित पदाधिकारी जुर्माने के साथ अपराधों का प्रशमन (Compounding) कर सकते है।

👉  समुचित सरकार को शक्ति दी गयी है कि वे किसी भी औद्योगिक स्थापना को लोकहित में निश्चित अवधि के लिए इस संहिता के किन्ही उपबंधों से छूट प्रदान कर सकते है।

पूर्व के अधिनियमों और वर्तमान संहिता के प्रावधानों में मुख्य अंतर निम्नवत है-


व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की दशाएँ संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020)


माननीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा 19 सितम्बर, 2020 को लोकसभा में उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता, 2020 को पेश किया गया जो 22 सितम्बर, 2020 को लोकसभा से पारित हुआ। 23 सितम्बर, 2020 को राज्यसभा से पारित होने के बाद 28 सितम्बर, 2020 को राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की गयी। यह संहिता किस तिथि से प्रभावी होगी इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किया जाएगा। इस संहिता की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित है-


👉  इस संहिता में 13 विभिन्न श्रम अधिनियमों यथा- कारखाना अधिनियम, 1948, बागान श्रमिक अ‎धिनियम, 1951, खान अधिनियम, 1952, श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार-पत्र कर्मचारी (सेवा-शर्तें) एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955, श्रमजीवी पत्रकार (वेतन की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958, मोटर परिवहन कामगार अधिनियम, 1961, आदि को समाहित किया गया है।

👉  संहिता का उद्येश्य कर्मकारों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण और कार्यदशाओं से संबंधित विषयों में प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों और परिवर्तनात्मक कारकों को अनुकूलित बनाने में नम्यता लाना है।

👉  खानों और गोदी कामगारों (Dock Workers) के अलावे दस या अधिक कामगारों वाले सभी स्थापनों पर यह संहिता प्रभावी है।

👉  संहिता में दस या अधिक कामगारों वाले सभी स्थापनों के लिए एकल पंजीकरण (Registration) की व्यवस्था की गयी है। हालाँकि कारखाना के मामले में यह संख्या 20 (शक्ति के सहायता से चलने वाले कारखाना में) या 40 (बिना शक्ति के सहायता से चलने वाले कारखाना में) होगी।

👉  श्रमजीवी पत्रकारों की श्रेणी में इलेक्ट्रोनिक मिडिया, जैसे ई-पेपर स्थापना, रेडियो या अन्य मिडिया में कार्यरत श्रमजीवी पत्रकार भी शामिल होंगे।

👉  नियोक्ता द्वारा अनिवार्य रूप से नियुक्ति प्रमाण-पत्र जारी करने का प्रावधान किया गया है।

👉  उन सभी स्थापनों में कतिपय वर्ग में विनिर्दिष्ट आयु के उपर के सभी कर्मचारियों को निःशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जांच का उपबंध किया गया है, जिनके कर्मचारियों में व्यवसायजनित रोगों का खतरा है।

👉  जिन स्थापनों में 10 या अधिक प्रवासी कामगार कार्यरत होंगें वहां प्रवासी कामगारों से सम्बंधित प्रावधानों को लागू किया गया है।

👉  निबंधित प्रवासी कामगारों एवं निर्माण कामगारों को अंतर्राज्यीय लाभ के सुवाह्यता का उपबंध किया गया है।

👉  कामगारों के उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा से संबंधित नीतिगत विषयों पर केन्द्रीय सरकार को सुझाव एवं सलाह देने के लिए राष्ट्रीय उपजीविकाजन्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड का गठन किया जाएगा।

👉  किसी स्थापना या स्थापनों के लिए किसी वर्ग में समुचित सरकार द्वारा सुरक्षा समिति के गठन का उपबंध किया गया है।

👉  सभी प्रकार के कार्य के लिए सभी स्थापनों में महिलाओं को नियोजित किया जाएगा। महिलाएं विहित सुरक्षा शर्तों के अधीन संध्या 7 बजे से सुबह 6 बजे के बीच भी कार्य कर सकती है।

👉  संहिता में कारखानों, ठेका श्रम और बीड़ी सिगार स्थापनाओं के लिए सामान्य अनुज्ञप्ति का प्रावधान करता है और ठेका श्रमिकों को लगाने हेतु पाँच वर्ष की अवधि के लिए एकल अखिल भारतीय अनुज्ञप्ति का भी उपबंध करता है।

👉  यदि किसी कामगार की दुर्घटना में दिव्यांगता या मृत्यु हो जाती है तो नियोजक पर अधिनियम के प्रावधानों के अधीन लगाए गए जुर्माने की राशि का 50% तक कामगार या उनके वैध आश्रित को देने के लिए न्यायालयों को अधिकार दिया गया है।

👉  महामारी या वैश्विक आपदा की स्थिति में संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग में निवास करने वाले व्यक्तियों की सामान्य सुरक्षा और स्वास्थ्य की विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार को अध्यारोही (Overriding) शक्ति देता है।

👉 नियोक्ता को एक निर्धारित आयु से अधिक आयु वाले कामगारों को वर्ष में एक बार निःशुल्क चिकित्सा जाँच करवाना होगा।

👉 इसके माध्यम से पहली बार कामगारों को नियुक्ति पत्र प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया गया है।

👉  संहिता द्वारा निर्धारित विभिन्न अपराध के लिए सरकार द्वारा अधिसूचित राजपत्रित पदाधिकारी जुर्माने के साथ अपराधों का प्रशमन (Compounding) कर सकते है।

पूर्व के अधिनियमों और वर्तमान संहिता के प्रावधानों में मुख्य अंतर निम्नवत है-


वेतन संहिता (Code on Wage, 2019)


माननीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा 23 जुलाई, 2019 को लोकसभा में मजदूरी संहिता, 2019 को पेश किया गया। 02 अगस्त, 2019 को राज्यसभा से पारित होने के बाद 08 अगस्त 2019 को राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की गयी। वर्तमान में मजदूरी संहिता, 2019 लागू नहीं है। यह संहिता किस तिथि से प्रभावी होगी इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किया जाएगा । इस संहिता की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित है-

👉 संहिता में चार श्रम अधिनियमों यथा- न्यूनतम मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1948; मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936; समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 तथा बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 को सम्मिलित किया गया है।

👉 इसमें मजदूरी, समान परिश्रमिकी, मजदूरी का भुगतान तथा बोनस के संबंध में प्रावधान किए गए है।

👉  न्यूनतम मजदूरी नियत करने की शक्ति केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार को भी दिया गया है।

👉 समुचित सरकार विभिन्न कारकों यथा अपेक्षित कुशलता, कार्य की कठिनता, कार्य-स्थल की भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के लिए अलग अलग न्यूनतम मजदूरी तय कर सकती है।

👉 मजदूरी का समय से भुगतान तथा उसमे होने वाले प्राधिकृत कटौती के उपबंध जो वर्तमान में मजदूरी भुगतान अधिनयम, 1936 में ₹24,000 प्रतिमाह मजदूरी पाने वाले कामगारों तक लागू है, वह सीमा नए वेतन संहिता में समाप्त हो जाएगी तथा सभी कर्मचारियों के लिए मजदूरी का समय से भुगतान तथा उसमे होने वाले प्राधिकृत कटौती के उपबंध लागू हो जाएंगे।

👉 संहिता में केंद्र सरकार ने न्यूनतम अधिसूचित मजदूरी- फ्लोर वेज का प्रावधान किया है। कोई भी राज्य सरकार केंद्र द्वारा निर्धारित फ्लोर वेज से कम न्यूनतम मजदूरी अधिसूचित नहीं कर सकती है।

👉 संहिता ने मजदूरी भुगतान के आधुनिकतम पद्धति यथा चेक अथवा डिजिटल या इलेक्ट्रोनिक माध्यम से खाते में भुगतान का प्रावधान भी किया गया है। किसी प्रतिष्ठान विशेष में चेक अथवा डिजिटल या इलेक्ट्रोनिक माध्यम से ही मजदूरी भुगतान करने संबंधी अधिसूचना समुचित सरकार निर्गत कर सकती है।

👉 निरीक्षण के मनमानेपन को दूर करने के उद्येश्य से निरीक्षकों के स्थान पर निरीक्षक-सह-सुकारक नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है, जो सूचना प्रदाय करेंगे तथा नियोजकों और कामगारों को सलाह देंगे।

👉 समुचित सरकार को बोनस की पात्रता तथा बोनस के गणना के लिए मजदूरी की अधिकतम सीमा निर्धारित करने की शक्ति दी गयी है।

👉 शिकायतों के निवारण और दावों के शीघ्र तथा प्रभावी निपटान के लिए अपीलीय प्राधिकार बनाये गए है।

👉 इसमें उपबंध है कि, निरीक्षक-सह-सुकारक प्रथम बार उल्लंघन की दशा में अभियोजन कार्यवाही प्रारंभ करने से पूर्व नियोजक को सुनवाई का अवसर देगा ताकि नियोजक संहिता के उपबंधों का अनुपालन कर सके। तथापि 5 वर्ष के भीतर उल्लंघन की पुनरावृत्ति की दशा में ऐसा अवसर नहीं दिया जाएगा।

👉 न्यायपालिका पर बोझ कम करने के लिए केवल 50 हजार रुपए तक के जुर्माने में दंडनीय मामलों के निपटारे के लिए भारत सरकार में अवर सचिव से अन्यून स्तर के पदाधिकारी को शक्ति दी गयी है।

👉 वैसे अपराध जो कारावास से दंडनीय नहीं है, उन मामलों में अपराधों के शमन (Compounding) का प्रावधान किया गया है।

👉 संहिता में प्रावधानित किया गया है कि यदि मजदूरी या बोनस भुगतान संबंधी कोई दावा दायर किया गया है तो दावे की राशि का भुगतान कर दिया गया है यह साबित करने का भार नियोजक का होगा।

👉 कामगार द्वारा अपना दावा दायर करने की समय-सीमा जो वर्तमान में 6 माह से एक वर्ष तक है, को बढाकर तीन वर्ष तक कर दिया गया है।

पूर्व के अधिनियमों और वर्तमान संहिता के प्रावधानों में मुख्य अंतर निम्नवत है-



श्रम संहिताओं से लाभ

श्रमिकों को लाभ- 


👉 अब सभी प्रकार के नियोजनों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा सकेगी। जबकि मौजूदा अधिनियम में केवल कुछ अधिसूचित नियोजनों के श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में अच्छादित किया जाता रहा है। 

👉 मजदूरी भुगतान अधिनियम के 24,000 की सीमा समाप्त होनें से सभी श्रमिकों को वेतन संहिता से आच्छादित  किया जा सकेगा। 

👉 न्यूनतम मजदूरी की सार्वभौमिक परिभाषा से, इससे सम्बन्धित विवादों में कमी आयेगी। सरकारी कार्यालयों में भी वेतन संहिता को लागू किया जायेगा। श्रमिकों के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान किया जायेगा। 

👉 मौजूदा अधिनियमों में मजदूरी संबंधी कोई भी शिकायत श्रमिक केवल 6 से 12 माह के अन्दर कर सकते है लेकिन संहिता आने के बाद तीन साल की समय-सीमा के अंदर शिकायत दर्ज किया जा सकता है।

👉 संहिता में कामगारों के निलंबन की स्थिति में जीवन-यापन भत्ते की भी व्यवस्था की गयी है। इस वित्तीय भार को देखते हुए अब नियोजक अनावश्यक निलंबन नहीं करेंगे। 

👉 संहिताओं में दंड प्रावधानों को कठोर करने से नियोजकों में भय बना रहेगा तथा वे श्रमिकों का शोषण नहीं करेंगे।

👉 फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की व्यवस्था करने से संविदा श्रमिकों को भी स्थायी कामगारों की तरह सुविधाएँ प्राप्त होंगी।

👉 कौशल उन्नयन कोष के प्रावधान होने से छंटनीग्रस्त कामगारों को बेहतर भविष्य मिलने की संभावना बनेगी।

👉 संहिता में पर्यवेक्षकीय कामगारों के शामिल होने की वेतन सीमा को बढ़ा दिया गया है, जिससे अधिक से अधिक पर्यवेक्षकीय कामगार लाभान्वित हो सकेंगे।

👉 सामाजिक सुरक्षा कोष की व्यवस्था होने से श्रमिकों के मध्य सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढेगा। गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स को भी अब सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जायेगा।

👉 संहिता के प्रावधानों के तहत ही अब ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से असंगठित कामगारों का डेटाबेस तैयार किया जा रहा है। इस डेटाबेस से श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ने में काफी सुविधा होगी।

👉 नियोजन के समय नियुक्ति पत्र अब देना अनिवार्य होगा। इससे श्रमिकों को किसी प्रकार की शिकायत की अवस्था में नियोजक-नियोजित संबंध स्थापित करने में सहूलियत होगी।

👉 नियोक्ता को एक निर्धारित आयु से अधिक आयु वाले कामगारों को वर्ष में एक बार निःशुल्क चिकित्सा जाँच करवाना होगा। इससे खतरनाक उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य का समुचित देखभाल हो सकेगा

👉 महिलाओं को अब रात्रिकालीन पालियों में काम करने की आजादी होगी। ऐसे में दिन में घरेलु कार्यों में व्यस्त महिलाएं भी अपने लिए अतिरिक्त आय का सृजन कर सकती है।

👉  अब केन्द्रीय श्रम संघ के तर्ज पर राज्य श्रम संघ का फायदा श्रम संगठनो को मिलेगा।

👉 बिना पूर्व सूचना के सभी प्रकार के तालाबंदी पर रोक से श्रमिकों की रोजी-रोटी अचानक से बंद नहीं होगी।

👉  मौजूदा अधिनियम में नियोजक और श्रमिक का विवाद लेबर कोर्ट या  ट्रिब्यूनल भेजने से पूर्व सरकार की सहमति आवश्यक होती है जिसे संहिता में समाप्त किये जाने से विवादों का निपटारा शीघ्रता से हो सकेगा।

नियोजकों को लाभ-

👉  निबंधन/लाइसेंस लेने की ऑनलाइन व्यवस्था तथा कम-से-कम लाइसेंस लेने की आवश्यकता होने से अनुपालन आसन होगा।

👉 पारदर्शी निरीक्षण की व्यवस्था होने से इंस्पेक्टर राज का भय नहीं रहेगा।

👉 जानकरी के अभाव में पहले अपराध का compounding होने से पुनः अपराध दुहराने की संभावना कम होगी।

👉 वर्तमान प्रावधानों के तहत कामगारों की छंटनी और कारखाना बंदी के लिए पहले 100 से अधिक कामगार होने पर सरकार से अनुमति लेनी है जिसे बढाकर अब 300 किये जाने से उद्योगों के सञ्चालन में नियोजकों को अधिक स्वतंत्रता मिलेगी।

👉 बिना पूर्व सूचना के सभी प्रकार के हड़तालों पर रोक से कारखाना में उत्पादन अचानक से बंद नहीं होगा।

👉 इसे भारत में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस बढ़ेगा। जिससे नियोजक उद्योग धंधों को लगाने के लिए आकर्षित होंगे। परिणामस्वरूप अधिक से अधिक रोजगार का भी सृजन होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-

1. श्रम संहिता क्या है?
उत्तर- यदि किसी विशेष विषय वस्तु पर उपलब्ध विभिन्न लिखित कानून है तो उसका व्यवस्थित संग्रह संहिता कहलाता है। जैसा कि हम जानते है, देश मे लगभग 44 श्रम कानून है जिसमें से एक ही विषय से संबंधित कई कानून है, जैसे- मज़दूरी से जुड़ा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, वेतन भुगतान अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम, आदि। इन्हीं भिन्न-भिन्न कानूनों को चार श्रम संहिता के रूप में संकलित किया गया है। ये चार श्रम संहिता है-  औद्योगिक संबंध संहिता, मजदूरी संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की दशाएँ संहिता, और सामाजिक सुरक्षा संहिता।

2. नया लेबर कोड कब से लागू होगा?
उत्तर- चार श्रम संहिताओं में से वेतन संहिता को 2019 में तथा अन्य तीनों संहिताओं को 2020 में अधिसूचित किया गया है वर्तमान में ये संहिताएँ लागू नहीं है। नए लेबर कोड किस तिथि से प्रभावी होगी इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किये जाने का प्रावधान संहिताओं में किया गया है। उम्मीद है जल्द ही केंद्र सरकार इन संहिताओं को प्रभावी करेगी

3. श्रम कानूनों के संहिताकरण के क्या लाभ हैं?
उत्तर- श्रम संहिताओं के आने से श्रम कानूनों का सरलीकरण, रोजगार सृजन, श्रम कानूनों के तहत अधिकतम प्रतिष्ठानों का अच्छादन करना, श्रम प्रशासन में सुधार लाना, असंगठित श्रमिकों को अधिक सामाजिक सुरक्षा, ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस में बढ़ावा आदि का लाभ मिलने की संभावना है

4. श्रम संहिताओं का विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर- नए श्रम संहिता में हड़ताल, बंदी एवं छंटनी के प्रावधानों में हुए कुछ परिवर्तनों का श्रमिक संघों द्वारा विरोध किया जा रहा है। बिना पूर्व सूचना के सभी प्रकार के हड़तालों पर रोक तथा कामगारों की छंटनी और कारखाना बंदी के लिए पूर्व सरकार की अनुमति लेने के लिए जहाँ पहले उद्योगों में 100 या अधिक कामगार कार्यरत होना चाहिए था वही सीमा बढाकर अब 300 कामगार कर दिया गया है। फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट पर भी कई श्रमसंघों को आपत्ति है

5. श्रम संहिताओं से श्रमिकों को क्या लाभ है?
उत्तर- नए श्रम संहिताओं से कई प्रकार के लाभ श्रमिकों को मिलेंगे जैसे- सभी प्रकार के नियोजनों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा सकेगी, 24,000 मजदूरी की सीमा समाप्त होगी, श्रमिकों के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान, संविदा श्रमिकों को भी स्थायी कामगारों की तरह सुविधाएँ मिलेगी, नियोजन के समय नियुक्ति पत्र अब देना अनिवार्य होगा, कामगारों को वर्ष में एक बार निःशुल्क चिकित्सा जाँच की सुविधा मिलेगी, असंगठित कामगारों का आच्छादन बढेगा, आदि

Comments