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संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य

  संराधन पदाधिकारियों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 से जुड़े तथ्य   1.     औद्योगिक विवाद क्या है ? औद्योगिक विवाद अधिनियम , 1947 के अनुसार “ industrial dispute” means any dispute or difference between employers and employers, or between employers and workmen, or between workmen and workmen, which is connected with the employment or non-employment or the terms of employment or with the conditions of labour, of any person; अर्थात " औद्योगिक विवाद" का मतलब किसी उद्योग या कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाले मतभेद या संघर्ष से है। यह विवाद निम्नलिखित पक्षों के बीच हो सकता है: 1.        नियोक्ता और नियोक्ता के बीच – जब दो या अधिक कंपनियां या प्रबंधन इकाइयाँ किसी औद्योगिक या व्यावसायिक मुद्दे पर असहमति रखती हैं। जैसे एक प्रबंधन इकाई कामगारों को बोनस देना चाहती है लेकिन दूसरी प्रबंधन इकाई इस विषय पर असहमत है। 2.        नियोक्ता और श्रमिक के बीच – जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी समूह नौकरी से संबंधित...

मानव तस्करी और अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956

लगभग 300 साल पहले, भारतीय दासता अधिनियम, 1843 पारित किया गया था, जो गुलामी से जुड़े लेन-देन को गैरकानूनी घोषित किया गया और यदि कोई गुलामों की खरीद और बिक्री में भाग लेता था तो उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत दंडित किया जाता था। लेकिन आज भी दासता कई रूपों में मौजूद है, जैसे- बंधुआ श्रम, बलात श्रम, मानव तस्करी, आदि। गुलामी की तरह मानव तस्करी व्यक्तिगत या वित्तीय लाभ के लिए मनुष्यों का शोषण है।व्यावसायिक सेक्स, ऋण बंधन या बलात श्रम के उद्देश्य से धोखाधड़ी या ज़बरदस्ती से नियोजक द्वारा पीड़ितों का शोषण किया जाता है। मानव तस्करी को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा गया है- यौन तस्करी, बलात या बंधुआ श्रम और घरेलू दासता। इसके अलावे बाल श्रम, बाल विवाह, प्रत्यारोपण हेतु मानव अंगों की माँग, महानगरों में घरेलु कार्यों के लिए, लैंगिक असुंतलन आदि के कारण भी मानव तस्करी होते है। मानव तस्करी के चंगुल में  गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्ति, बेरोजगार व्यक्ति, प्रवासी, बच्चे, भागे हुए या बेघर युवा, आदि के फंसने की संभावना ज्यादा होती है। आज के इस टॉपिक में हम ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव तस्करी और अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (Human Trafficking and Human Trafficking (Prevention) Act, 1956) के बारे में चर्चा करेंगे।

मानव तस्करी


अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956

मानव तस्करी

ड्रग्स और अपराध के लिए संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय (UNODC) द्वारा तस्करी प्रोटोकॉल में मानव तस्करी को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि किसी व्यक्ति को धमकी या बल का उपयोग या अन्य प्रकार के ज़बरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी या शोषण के उद्देश्य से नियोजित करना, एक जगह से दुसरे जगह ले जाना, प्रवासन करना, शरण देना या प्राप्त करना ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव तस्करी कहलाता है। UNODC का अनुमान है कि तस्करी के पहचाने गए पीड़ितों में 51% महिलाएं, 28% बच्चे और 21% पुरुष हैं।सेक्स उद्योग में शोषित 72% लोग महिलाएं हैं तथा पहचाने गए तस्करों में 63% पुरुष थे और 37% महिलाएं थीं। लगभग 43% पीड़ित देश की सीमाओं के भीतर घरेलू स्तर पर तस्करी के जल में फँसे हुए है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार देश में 2020 में 1332 पीड़िताओं के मामले अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत दर्ज कराए गए थे।

संविधान का अनुच्छेद 23 (1): इस अनुच्छेद में मानव तस्करी को प्रतिबंधित किया गया है तथा इसे कानूनन दंडनीय अपराध बनाया गया है। इसके साथ ही किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिये बिना (बेगार) काम करने के लिये मज़बूर करना भी प्रतिबंधित किया गया है। हालाँकि, यह अनुच्छेद राज्य को सार्वजनिक प्रयोजन के लिये सेना में अनिवार्य भर्ती तथा सामुदायिक सेवा सहित, अनिवार्य सेवा लागू करने की अनुमति देता है।


मानव तस्करी से जुड़े लगभग 25 प्रावधान भारतीय दंड संहिता में उल्लेखित हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण हैं-

  • धारा 366ए- अठारह वर्ष से कम उम्र की किसी नाबालिग लड़की को किसी अन्य व्यक्ति के साथ जबरन या बहला-फुसलाकर अवैध संबंध बनाने के इरादे से किसी ऐसे स्थान पर जाने के लिए उत्प्रेरित करना दंडनीय अपराध होगा।
  • धारा 366बी- इक्कीस वर्ष से कम उम्र की किसी भी लड़की को इस आशय से लाया जाता है कि उसे किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संभोग के लिए मजबूर किया जाए या बहकाया जाए, एक दंडनीय अपराध है।
  • धारा 374- किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है जो किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिए अवैध रूप से मजबूर करता है।

अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956

मानव तस्करी विशेष रूप से महिलाओं को यौन व्यापार से बचाने के लिए अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 को केंद्र सरकार ने पारित किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत वेश्यावृत्ति के लिए ह्यूमन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए समुचित प्रयास किया गया है

  • अधिनियम में कोई भी घर, कमरा, वाहन या स्थान जिसका उपयोग किसी अन्य व्यक्ति के यौन शोषण या दुर्व्यवहार के उद्देश्यों के लिए किया जाता है वेश्यालय के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति का आर्थिक लाभ के लिए लैंगिक शोषण करने को वेश्यावृत्ति कहते हैं।
  • अधिनियम के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जो वेश्यागृह को चलाता है, उसका प्रबंध करता है या उसके रखने में और प्रबंध में मदद करता है तो उसको कम से कम एक वर्ष व अधिक से अधिक तीन साल का कठोर कारावास, और 2000/- रूपये का जुर्माना होगा। यदि वह व्यक्ति दोबारा इस अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसको कम से कम दो साल व अधिक से अधिक पांच साल का कठोर कारावास और दो हजार रूपये का जुर्माना होगा।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए फुसलाता है, ताकि वह उससे वेश्यावृत्ति करवा सके तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 3 साल व अधिक से अधिक 7 साल के कठोर कारावास और 2000/- रूपये के जुर्माने से दंडित किया जाता है और अगर यह अपराध किसी व्यक्ति की सहमति के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी व्यक्ति को सात साल की जेल जो अधिकतम 14 साल तक की हो सकती है, दंडित किया जा सकता है और अगर यह अपराध किसी बच्चे के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी को कम से कम 7 साल की जेल, व उम्र कैद भी हो सकती है।
  • यदि किसी व्यक्ति को उस परिसर में हिरासत में रखना जहाँ वेश्यावृत्ति की जाती है, तो दोषी व्यक्ति को कारावास से दंडित किया जाएगा जो सात वर्ष से कम नहीं होगा लेकिन यह आजीवन हो सकता है और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम में पीडिता का संरक्षण गृह के माध्यम से पुनर्वास का भी प्रावधान किया गया है।


मानव तस्करी की रोकथाम

मानव तस्करी को कई प्रकार के हस्तक्षेप से रोका जा सकता है। इसमें सार्वजनिक रूप से संवेदीकरण (Sensitization) और जागरूकता (Awareness) के साथ-साथ उन संवेदनशील क्षेत्रों (Vulnerable areas) पर ध्यान देने की आवश्यकता है जो मानव तस्करी के वातावरण को बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। राज्य को अनिवार्य उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, आय सृजन और रोजगार के अवसर सृजित करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए। रोकथाम से जुड़े प्रावधानों को अधिक प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। गैर सरकारी संगठनों को अवैध व्यापार करने वालों के क्षेत्र में पीड़ित बच्चों की आवाजाही पर समुदाय को सतर्क नजर रखनी चाहिए। उन्हें शिक्षित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि माता-पिता सुरक्षित प्रवास अभ्यास के बारे में जागरूक हों।व्यापक दर्शकों की संख्या के कारण मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। नागरिकों को पीड़ित होने की स्थिति में सहायता प्राप्त करने के लिए स्थानों और संस्थानों के बारे में जागरूक करना एवं आजन को शिक्षित करना और जागरूकता फैलाना मिडिया का प्रमुख दायित्व है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मानव तस्कर क्या है?

उत्तर- ड्रग्स और अपराध के लिए संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय (UNODC) द्वारा तस्करी प्रोटोकॉल में मानव तस्करी को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि किसी व्यक्ति को धमकी या बल का उपयोग या अन्य प्रकार के ज़बरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी या शोषण के उद्देश्य से नियोजित करना, एक जगह से दुसरे जगह ले जाना, प्रवासन करना, शरण देना या प्राप्त करना ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव तस्करी कहलाता है।

2. मानव तस्करी की धारा क्या है?

उत्तर- भारतीय दंड संहिता की धारा 370 के अलावे धारा 366A, 366B आदि मानव तस्करी से जुडी धाराएँ है

3. मानव तस्करी के क्या क्या तरीके हैं?

उत्तर- लोगों को बेहतर जिंदगी का प्रलोभन, अच्छे आय की नौकरी, स्थायी जीवन, विवाह, प्रेम-प्रसंग में फंसाकर, विलासिता का सपना दिखाना, आदि तरीकों के जरिये मानव तस्करी की जाती है

4. मानव तस्करी के क्या कारण है?

उत्तर- मानव तस्करी को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा गया है- यौन तस्करी, बलात या बंधुआ श्रम और घरेलू दासता। इसके अलावे बाल श्रम, बाल विवाह, प्रत्यारोपण हेतु मानव अंगों की माँग, महानगरों में घरेलु कार्यों के लिए, लैंगिक असुंतलन आदि के कारण भी मानव तस्करी होते है।

5. भारत में मानव तस्करी के लिए सजा क्या है?

उत्तर- मानव तस्करी के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 370 के तहत 10 साल के कारावास और जुर्माना का दंड अधिरोपित किया जा सकता है। अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए फुसलाता है, ताकि वह उससे वेश्यावृत्ति करवा सके तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 3 साल व अधिक से अधिक 7 साल के कठोर कारावास और 2000/- रूपये के जुर्माने से दंडित किया जाता है और अगर यह अपराध किसी व्यक्ति की सहमति के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी व्यक्ति को सात साल की जेल जो अधिकतम 14 साल तक की हो सकती है, दंडित किया जा सकता है और अगर यह अपराध किसी बच्चे के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी को कम से कम 7 साल की जेल, व उम्र कैद भी हो सकती है।


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