Test Instructions – Factories Act All questions in this test are curated from the chapter on the Factories Act, 1948, as covered in our book Labour Laws and Industrial Relations . 📚 If you’ve studied this chapter thoroughly, this quiz offers a chance to assess your understanding and retention. The test includes multiple-choice questions that focus on definitions, governance, benefits, and procedural aspects under the Act. ✅ Each correct answer awards you one mark. At the end of the test, your score will reflect your grasp of the subject and guide any revisions you might need. 🕰️ Take your time. Think through each question. Ready to begin? Let the assessment begin! Book- English Version - " Labour Laws & Industrial Relation " हिंदी संस्करण- " श्रम विधान एवं समाज कल्याण ” Factories Act Part-2 MCQs Factories Act, 1948 - Part-2 - MCQ Quiz Submit
देश के विभिन्न क्षेत्रों का असमान विकास होने के कारण यहां श्रमिक एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं। वे अधिकांश असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं और उन्हें मजदूरी, आवास, स्वास्थ्य आदि से जुडी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हाल ही में देश में COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को देखकर भविष्य में इस वर्ग को ऐसी चुनौतियों से बचाने के लिए एक बेहतर विधिक प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई।मार्च, 2020 को देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू पहले लॉकडाउन के बाद देश के कई हिस्सों में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हुई। इस दौरान मज़दूरों को रोज़गार, आश्रय, भोजन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ा। कम आय वाले प्रवासी श्रमिकों को ज्यादातर मामलों में शोषण का शिकार होना पड़ता है। आज के इस टॉपिक में हम प्रवासी श्रमिक एवं अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979 (Migrant Workers and Inter-State Migrant Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979) के बारे में चर्चा करेंगे।
प्रवासी श्रमिक एवं अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979
प्रवासी श्रमिक
यदि कोई व्यक्ति अपने रोजगार की तलाश में अस्थायी रूप से एक राज्य से दूसरे राज्य या विदेशों में जाते है तो उन्हें प्रवासी श्रमिक कहा जाता है। प्रवासन स्थान के आधार पर प्रवासी श्रमिक के मुख्यतः तीन प्रकार है- राज्य के अंदर दूसरे जिलों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर, देश के अंदर दूसरे राज्यों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर तथा दूसरे देशों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर। अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों के रोजगार को नियंत्रित करने के लिए और उनकी सेवा शर्तों के लिए सरकार ने अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार (नियोजन विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम 1979 को अधिनियमित किया है।
अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979
इस अधिनियम की प्रमुख बातें निम्नलिखित है-
👉 अधिनियम में अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से है जो किसी ठेकेदार द्वारा या उसके माध्यम से एक राज्य से दूसरे राज्य में किसी प्रतिष्ठान में रोजगार के लिए किसी समझौते या अन्य व्यवस्था के तहत मुख्य नियोजक की जानकारी या बिना जानकारी के भर्ती किया जाता है।
👉 यह अधिनियम उन सरकारी और निजी सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जहाँ 5 या उससे अधिक कामगार प्रवासी श्रमिक के रूप में कार्य करते है।
👉 जहाँ प्रवासी कामगार से काम लेना है उस प्रतिष्ठान का निबंधन करवाना है तथा प्रतिष्ठान से संलग्न संवेदक द्वारा दोनों राज्यों (जहाँ कामगार कि भर्ती कि जाती है और जहाँ के कामगार को नियोजित किया जाता है ) में अनुज्ञप्ति लेना आवश्यक है। प्रतिष्ठान पर अंतिम रूप से नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति प्रधान या मुख्य नियोजक कहलाता है।
👉 ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों के बारे में वह सभी जानकारियां जो निश्चित की गई हों, दोनों राज्य की सरकारों को, अर्थात् जिस राज्य से वे आए हैं और जिस राज्य में का कर रहे हैं, काम पर लगाए जाने के पंद्रह दिनों के अंदर देगा।
👉 अधिनियम की धारा 12 के अनुसार ठेकेदार सभी प्रवासी श्रमिकों को एक पासबुक, जारी करेगा, जिसमें उस श्रमिक की एक फोटो लगी होगी तथा हिंदी और अंग्रेजी या उस भाषा में जो मजदूर जानता हो उसमे कुछ प्रमुख सूचना भी दी जाएगी, जैसे -कार्य का नाम और जगह का नाम जहां काम हो रहा हो, नियोजन की अवधि, दी जाने वाली मजदूरी की दर एवं मजदूरी देने का तरीका, वि स्थापना भत्ता, वापसी का किराया जो कि मजदूरी को दिया जाता है तथा कटौती आदि के बारे में जानकारी।
👉 अधिनियम की धारा 13 के प्रावधानों के अनुसार प्रवासी श्रमिक की मजदूरी दर, छुट्टियां, काम करने का समय एवं अन्य सेवा शर्ते, वहां पर काम करने वाले अन्य मजदूरों के समान होंगी। प्रवासी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में बताई गई मजदूरी से कम मजदूरी नहीं दी जाएगी।
👉 अधिनियम की धारा 14 एवं 15 के प्रावधानों के अनुसार प्रवासी श्रमिक को दो प्रकार के भत्ते देने है- i) वि स्थापना भत्ता- भर्ती के समय ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को वि स्थापना भत्ता जो उसके एक महीने के वेतन का पचास प्रतिशत या 75/- रूपये इनमें जो भी ज्यादा होगा, देना होगा और यह भत्ता उसे उसकी मजदूरी के अलावा मिलेगा; ii) यात्रा भत्ता - ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्य के निवास स्थान से काम करने की जगह तक आने व जाने के लिए यात्रा भत्ता भी प्रदान करेगा, जो उसकी मजदूरी के अलावा दिया जाएगा। यात्रा के दौरान मजदूर को काम पर समझा जाएगा।
👉 इस अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत ठेकेदार को कई सुविधाएँ प्रवासी मजदूर को देनी होंगी, जैसे- मजदूरी का नियमित भुगतान, पुरूष और महिला को समान वेतन, कार्य स्थल पर अच्छी सुविधाएं, कार्य के दौरान मजदूरों के रहने की व्यवस्था करना, आवश्यकता होने पर मुफ्त चिकित्सीय सुविधाएं, कार्य की प्रकृति के अनुरूप सुरक्षात्मक कपड़ों को उपलब्ध कराना, किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने पर उसके सगे-संबंधियों एवं दोनों राज्यें के संबंधित अधिकारियों को सूचना देना, आदि। ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को कल्याणकारी सुविधायें निश्चित समय-सीमा में उपलब्ध नही करवाता है तो उसे उपलब्ध करवाने का दायित्व प्रधान नियोजक का होगा।
👉 अधिनियम की धारा 17 में कहा गया है कि ठेकेदार जिसने ठेका श्रमिक को नियोजित किया है, प्रत्येक श्रमिक को ससमय मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा। प्रत्येक मुख्य नियोजक ठेकेदार द्वारा मजदूरी के वितरण के समय उपस्थित होने के लिए अपने द्वारा अधिकृत एक प्रतिनिधि को नामित करेगा और वह नामित प्रतिनिधि मजदूरी के रूप में भुगतान की गई राशि को प्रमाणित करेगा। यदि ठेकेदार निर्धारित अवधि के भीतर मजदूरी का भुगतान करने में विफल रहता है या कम भुगतान करता है, तो मुख्य नियोक्ता मजदूरी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। इसके बाद मुख्य नियोजक श्रमिक को भुगतान की गई राशि को अनुबंध के तहत ठेकेदार को देय किसी भी राशि से कटौती करके या ठेकेदार द्वारा देय ऋण के रूप में वसूल करना।
👉 यह सुनिश्चित करना प्रत्येक ठेकेदार/ मुख्य नियोक्ता का कर्तव्य होगा कि उनके द्वारा किसी भी अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार को दिया गया कोई भी ऋण कामगार के रोजगार की अवधि पूरी होने के बाद बकाया नहीं रहे। प्रवासी कामगार के कार्य समाप्ति के पश्चात यदि कोई बकाया उसके ऊपर नियोजक/ठेकेदार का रह जाता है तो उसकी वसूली के लिए कोई सिविल वाद दायर नही किया जा सकता है।
👉 यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम का उल्लंघन करता है तो उसे एक वर्ष तक की जेल या 1000/- रूपये तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति दोबारा ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे 100/- रूपये का जुर्माना रोज देना होगा, जब तक वह उल्लंघन करता है। यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के ऐसे नियमों का उल्लंघन करता है, जिसके लिए इस अधिनियम में कोई दंड या प्रावधान नहीं है तो वह अधिकतम दो साल की जेल या 2000/- रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-
1. प्रवासी श्रमिक किसे कहते है?
उत्तर- यदि कोई व्यक्ति अपने रोजगार की तलाश में अस्थायी रूप से एक राज्य से दूसरे राज्य या विदेशों में जाते है तो उन्हें प्रवासी श्रमिक कहा जाता है।
2. प्रवासी श्रमिकों को ले जाने के लिए क्या ठेकेदार को करना होता है?
उत्तर- यदि कोई ठेकेदार किसी व्यक्ति को दूसरे राज्य में काम पर भर्ती करने के लिए ले जाना चाहता है तो उसे श्रम विभाग से अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम के तहत दो प्रकार का लाइसेंस लेना होगा। पहला लाइसेंस जिस राज्य के प्रतिष्ठान में कामगारों को भर्ती किया जाना है वहाँ के श्रम विभाग से लेना है तथा दूसरा जहाँ से कामगारों को ले जाया जा रहा है उस राज्य के श्रम विभाग से लेना है।
3. प्रवासी श्रमिक कितने प्रकार के होते है?
उत्तर- प्रवासन स्थान के आधार पर प्रवासी श्रमिक के मुख्यतः तीन प्रकार है- राज्य के अंदर दूसरे जिलों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर, देश के अंदर दूसरे राज्यों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर तथा दूसरे देशों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर।
4. बिहार के श्रमिक दूसरे राज्यों में काम करने क्यों जाते है?
उत्तर- प्रवासन के कई कारण है, जैसे- रोजगार के अवसरों की कमी, दूसरे राज्यों में अधिक मज़दूरी मिलना, आपदा के कारण आयी गरीबी, सगे-संबंधियों से प्रभावित होने, राज्य पर अधिक जनसंख्या दबाब, आदि। कई बार प्रवासन को नकारत्मक दृष्टि से देखा जाता है लेकिन यह।सच नही है। इसके कई फ़ायदे है, जैसे- प्रवासी श्रमिकों को दूसरे राज्यों में बेहतर मज़दूरी मिलती है, उनका जीवन स्तर ऊँचा होता है, उनके कौशल में विकास होता है, राज्य को विदेशों से आय प्राप्त होती है,आदि।
5. प्रवासी श्रमिकों के क्या अधिकार है?
उत्तर- ठेकेदार को कई सुविधाएँ प्रवासी मजदूर को देना होता है, जैसे- मजदूरी का नियमित भुगतान, पुरूष और महिला को समान वेतन, कार्य स्थल पर अच्छी सुविधाएं, कार्य के दौरान मजदूरों के रहने की व्यवस्था करना, आवश्यकता होने पर मुफ्त चिकित्सीय सुविधाएं, कार्य की प्रकृति के अनुरूप सुरक्षात्मक कपड़ों को उपलब्ध कराना, किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने पर उसके सगे-संबंधियों एवं दोनों राज्यें के संबंधित अधिकारियों को सूचना देना, आदि। ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को कल्याणकारी सुविधायें निश्चित समय-सीमा में उपलब्ध नही करवाता है तो उसे उपलब्ध करवाने का दायित्व प्रधान नियोजक का होगा।
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