व्यक्तित्व निर्माण क्या है और यह क्यों जरूरी है? व्यक्तित्व अंग्रेजी के पर्सनालिटी (Personality) शब्द का रूपान्तर है। अंग्रेजी के इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘पर्सोना’ (Persona) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- ‘नकाब’। व्यक्तित्व का अर्थ मनुष्य के व्यवहार की वह शैली है जिसे वह अपने आन्तरिक तथा बाह्य गुणों के आधार पर प्रकट करता है। व्यक्ति के बाह्य गुणों का प्रकाशन उसकी पोशाक, वार्ता का ढंग, आंगिक अभिनय, मुद्राएँ, आदत तथा अन्य अभिव्यक्तियाँ हैं। मनुष्य के आंतरिक गुण हैं उसकी अन्तःप्रेरणा या उद्देश्य, संवेग, प्रत्यक्ष, इच्छा आदि। व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के समस्त मिश्रित गुणों का वह प्रतिरूप है जो उसकी विशेषताओं के कारण उसे अन्य व्यक्तियों से भिन्न इकाई के रूप में स्थापित करता है। बिग व हण्ट के अनुसार- ‘‘व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार-प्रतिमान और इसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है।’’ व्यक्तित्व विकास के माध्यम से समयबद्धता, विचारों में नम्यता, सीखने की तत्परता, दयालु स्वभाव, दूसरों की सहायता करने का उत्साह, ईमानदारी से कर्म करना, भावनाओं पर नियंत्रण रखना आदि जैसे वांछनीय गुणों को प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी अपेक्षा एक सिविल सेवक में की जाती है।
सिविल सेवा परीक्षा आपके व्यक्तित्व और दृष्टिकोण का एक समग्र परीक्षण है। परीक्षा में आपके व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर परिक्षण किया जाता है। अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि कोई भी अभ्यर्थी अपने समग्र व्यक्तित्व में कुछ वांछनीय व प्रभावी सुधार लाकर इस परीक्षा में सफलता की अपनी संभावनाओं को बढ़ा सकता है। आइये व्यक्तिव विकास के प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करते है-
स्वयं में विश्वास करें
स्वामी विवेकानंद जी का कहना है, “जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।” सिविल सेवा की तैयारी लंबी, उबाऊ और थका देने वाली होती है। ऐसे में तैयारी के दौरान कई बार अभ्यार्थियों के मन में संशय के बादल मंडराने लगते है, जैसे- क्या मेरा हिंदी माध्यम से चयन होगा? क्या मेरा वैकल्पिक विषय सही है? क्या मैं उत्तर लेखन सही से कर रहा हूँ? क्या मैं इतने कठिन परीक्षा में सफल हो सकूँगा। ऐसे में अभ्यार्थी अनास्था और संशय से अपने तैयारी को जारी रखता है तथा कुछ समय के बाद उसे लगता है कि वह इस परीक्षा में सफल होने के योग्य नहीं है। स्वयं में विश्वास न करने वाले तथा अपने मार्ग के प्रति श्रद्धा नहीं रखने वाले पुरुषों के विनाश की उद्घोषणा भगवद्गीता भी करती है, “अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।” तैयारी के क्रम में स्वयं पर विश्वास अत्यंत आवश्यक है। आप जिस तरीके से तैयारी करना चाहते है उस तरीके पर अच्छे से सोच-विचार कर लें लेकिन एक बार तैयारी प्रारंभ करने के बाद मन को पेंडुलम की तरह आगे-पीछे न करें बल्कि अपने निश्चय पर दृढ रहें।
आत्मअनुशासन रखें
आज के समय में जीवन में कई भटकाव है, ऐसे में आत्मानुशासन बहुत आवश्यक हो जाता है। काम में सफलता प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा है, स्व-नियंत्रण न होना। अपने लक्ष्य निर्धारण के बाद यदि हम अपने पथ से विचलित न हो तभी सफलता की आशा की जा सकती है। जो आत्म-अनुशासन का अभ्यास करता है, वह कार्य-जीवन में संतुलन बनाए रख सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अपने समय का अच्छा उपयोग करता है। सोशल मीडिया एवं इंटरनेट सर्फिंग में आज बच्चे घंटों गुजार कर अपना समय नष्ट कर देते है। कई बार युवा अवस्था में प्रेम-प्रसंग या किसी व्यसन में खुद को फँसाकर अभ्यार्थी अपने तैयारी करने के बहुमूल्य अवसर को बर्बाद कर देते है। और यह सब होता है आत्मानुशासन के अभाव में। जिस प्रकार अर्जुन ने केवल मछली की आँख को देखा था ठीक उसी प्रकार सिविल सेवा की तैयारी के दौरान आपको केवल अपने लक्ष्य पर टिके रहने के लिए आत्मानुशासित रहना होगा। आप स्वयं को जो भी टास्क दें उसे हर-हाल में पूरा करने का संकल्प रखें। समय-समय पर स्वयं के आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता होती है। हमें न केवल अपनी कमियों को पहचानना होगा बल्कि समय के साथ उनको दूर कर स्वयं को मज़बूत करना होगा।
समय प्रंबंध करना सीखें
एक अभ्यार्थी के लिए समय प्रबंधन उतना ही आवश्यक है जितना कि एक डूबते हुए व्यक्ति के लिए रस्सी का सहारा। जीवन में हर सुबह नई होती है, हर दिन नया होता है, हर आने वाला मिनट नया होता है। लेकिन लक्ष्य तो निश्चित है, जहाँ हमें एक तय समय में पहुँचना है। आपको अपने 24 घंटे में कब क्या करना है वो आपको पता होना चाहिए। यदि आप तैयारी के प्रारम्भ से समय प्रबन्धन नियम का पालन करेंगे तो परीक्षा पूर्व आपका सिलेबस तैयार रहेगा आप स्वयं में आत्मविश्वास की कमी नहीं पाएंगे।
सकारात्मकता बनाये रखे
सफलता के प्रति प्रतिबद्ध किसी भी अभ्यर्थी का अदम्य सकारात्मकता से भरपूर होने का गुण उसे बाकी अभ्यर्थियों से काफी बेहतर स्थिति में पहुँचा सकता है। सिविल सेवा परीक्षा की लंबी व कठिन प्रक्रिया के दौरान सकारात्मकता और मोटिवेशन लेवल बनाए रखना इतना आसान भी नहीं है, पर थोड़े प्रयास से इस स्तर को कायम रखा जा सकता है। आप इस सकारात्मकता के स्तर को बनाए रखने के लिए स्वयं को प्रसन्नचित रखें। पढ़ाई को तनाव की तरह लेने के बजाय उसका आनंद लें और भीतर से प्रसन्नता महसूस करें। छोटी-छोटी खुशियों को मनाएँ और कल के बड़े ख़ुशी के उम्मीद में आज की खुशी का दमन न करें। ऐसा रवैया न बनाएँ कि मैं तो अमुक सफलता मिलने पर ही खुश होऊँगा। आपने महसूस किया होगा कि किसी से मिलना मोटिवेशनल लगता है और किसी से बात करके निराशा और अवसाद मिलता है। अतः कोशिश करें कि पॉजिटिव सोच रखनेवालों की संगति करें और निगेटिविटी से भरपूर लोगों से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखें। यानी नकारात्मक लोगों से व्यर्थ के विवादों में उलझे बगैर अपनी राह में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते जाएँ। हाँ, समालोचनात्मक टिप्पणी और सुधार के सुझावों का खुलकर स्वागत करें। रिश्ते निभाना सीखें। तैयारी की प्रक्रिया और जीवन की दौड़ में आपके अपने हमेशा आपका साथ निभाते हैं। परिवार और दोस्त आपको मोटिवेट कर ऊर्जा से भर सकते हैं और हर कदम पर आपको हिम्मत बँधा सकते हैं। अपनी रुचियाँ विकसित करें। हममें से हर किसी का रुझान और अभिरुचियाँ अलग-अलग हो सकते हैं। किसी को खेलना पसंद है तो किसी को नॉवेल पढ़ना, किसी को योगाभ्यास भाता है तो किसी को सिनेमा-संगीत का शौक होता है। अपनी रुचियों पर बहुत ज्यादा वक्त न भी इन्वेस्ट कर सकें, पर दिन में आधा-एक घंटा तो इन्हें दे ही सकते हैं। ये रुचियाँ व शौक न केवल आपको एक खुशी और संतुष्टि देते हैं, बल्कि तरोताजा अहसास भी कराते हैं। सकारात्मकता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि छोटी-छोटी छोटी-छोटी बातों का तनाव न लें और छोटे-छोटे खुशियों को मनाना सीखें।
निरंतरता आवश्यक है
सफलता को अपनी तरफ आकर्षित करने वालों में निरंतरता (Consistency) रूपी एक प्रमुख गुण होता है। हमारे-आपके बीच ऐसे तमाम लोग होते हैं, जो शुरुआत तो बड़ी शानदार और महत्त्वाकांक्षी ढंग से करते हैं, पर अपने उस जज्बे को कायम नहीं रख पाते। ऐसे भी तमाम लोगों से हम मिलते हैं, जो रास्ते में छोटी-मोटी परेशानियों में धैर्य खोकर ढेर हो जाते हैं या परिस्थितियों या किसी व्यक्ति पर ठीकरा फोड़कर खुद की असफलता को छुपाने की कोशिश करने लगते हैं। हमें यह समझना होगा कि जीवन के तमाम क्षेत्रों सहित सिविल सेवा परीक्षा के सफल अभ्यर्थियों के ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जिनमें निरंतरता प्राय: सफलता का एक अनिवार्य तत्त्व रहा है। आजकल व्यक्ति को योग्यता का आकलन करने के मानदंडों में काफी बदलाव आया है। पहले जहाँ IQ (Intelligence Quotient) को ही व्यक्ति की काबिलियत का आधार माना जाता था, वहीं बाद में इसमें EQ (Emotional Quotient) का तत्त्व भी शामिल हुआ और आजकल PQ (Persistence Quotient) का आकलन करना जरूरी समझा जाने लगा है। निरंतरता के इस गुण की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कवि हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है-
"जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़कर, मत भागो तुम,
कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती, कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती।"
परीक्षा की पूरी प्रक्रिया के दौरान सतत उत्साह और निरंतरता बनाए रखना सफलता की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा सकता है।
विनम्रता एवं अहंकारशुन्यता रखें
सिविल सेवा परीक्षा के लिए अपने व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया में जो विशेषता विकसित करना अपरिहार्य है, वह है- विनम्रता। विनम्रता एक ऐसा गुण है, जो आपको भी प्रसन्न बनाता है और आपसे जुड़े लोगों को भी । हम अपने आस-पास अकसर ऐसे साथियों को देखते हैं, जो परीक्षा का कोई चरण उत्तीर्ण होने या अपने अच्छे प्रदर्शन पर विचलित हो जाते हैं और जमीन पर पाँव भी नहीं रख पाते। छोटी-छोटी खुशियों को जीना चाहिए; पर अपनी छोटी-छोटी सफलताओं का अहंकार करना अथवा दूसरों को नीचा दिखाना भला कहाँ की समझदारी है ! और फिर, हमें गुरूर हो भी तो भला किस बात का! हम जितना पढ़ते जाते हैं, हम पाते हैं कि उससे कहीं ज्यादा हमने पढ़ा ही नहीं है। जाने-माने दार्शनिक सुकरात ने यूँ ही नहीं कहा था—"मैं सबसे ज्यादा ज्ञानी इस अर्थ में हूँ, क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।" अतः ज्ञान एवं सीखने की लालसा बनाए रखें और खुद की लकीर बड़ी कर आगे बढ़ने का प्रयत्न करें। अधिकतर अच्छे अभ्यर्थी अपने ज्ञान के अंहकार के कारण साक्षात्कार में बोर्ड के समक्ष अपना नकारात्मक छाप छोड़ जाते है।
कठिन परिश्रम के लिए तैयार रहना
जीवन में सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता है और निरंतर कदम-दर-कदम आगे बढ़ते रहने पर ही सफलता प्राप्त होती है। सिविल सेवा परीक्षा पर यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है। कठिन परिश्रम और अध्यवसाय के बल पर ही कोई अभ्यर्थी इस बेहद कठिन एवं प्रतिष्ठित मानी जानेवाली परीक्षा का तिलिस्म भेद सकता है। आप में कड़ी मेहनत करने की प्रवृत्ति होना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि परीक्षा में सफलता के बाद सेवाकाल में भी हर मोड़ पर कठिन परिश्रम व चुनौतियों का सामना करना ही होता है। मेहनत करने से कदापि न कतराएँ और आलस्य से बचते हुए खुशी-खुशी सहज भाव से भरपूर परिश्रम करें।
हमेशा सीखने के लिए तैयार रहें
निरंतर सीखने का गुण मनुष्य को विकास के चरम पर पहुँचाने में सक्षम हुआ है। यह इंसान की सीखने की भूख ही है, जो उसे निरंतर नए आविष्कार करने, निरंतर आगे बढ़ने और कुछ नया सुधार करने को प्रेरित करती है। एक बच्चे में भी बचपन से ही सीखने की जबरदस्त प्रवृत्ति होती है और वह अनुकरण से तेजी से चीजों को सीखता है। इस तरह सीखने की यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है और हमारी सोच के आयामों का विस्तार होता जाता है। हम अपने परिवार, दोस्तों, शिक्षकों, पास-पड़ोस, आस-पास के पर्यावरण, अखबार, पत्रिकाएँ, इंटरनेट, साहित्य, विज्ञान, खेल-कूद- सबसे निरंतर सीखते ही जाते हैं और दिन-प्रतिदिन परिपक्व होते जाते हैं। सिविल सेवा परीक्षा की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि इसके लिए परिपक्वता का एक स्तर आवश्यक है, जिसका हमारी शारीरिक उम्र से कोई खास लेना-देना नहीं होता। सीखने की प्रक्रिया में कई बार हम गलती भी करते है, ऐसे में अपनी गलती को स्वीकार करें और पुनः उससे सीख लेते हुए आगे बढे। इसीलिए सिविल सेवा परीक्षा में सफलता और सफलता के बाद के सुदीर्घ कैरियर में सफलता के लिए एक वैचारिक परिपक्वता और निरंतर सीखने का जज्बा अपरिहार्य है।
निष्काम कर्मयोग का पालन करें
सिविल सेवा परीक्षा ही नहीं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की ऊँचाइयाँ छूने के लिए भारतीय दर्शन के जो सिद्धांत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है, वह गीता का 'निष्काम कर्मयोग' है। 'गीता' में कहा गया है “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोत्स्व कर्मणिः।" सामान्य भाषा में इस 'निष्काम कर्मयोग' के सिद्धांत को इस रूप में समझा और बताया जाता है, 'कर्म करते रहो, फल की इच्छा मत करो।' कई अभ्यार्थी अपने तैयारी के दौरान अपने सिलेबस को पूरा करने से ज्यादा समय इस बात में खपाते है कि उनका अंतिम चयन होगा या नहीं, यदि नहीं होगा तो उनका भविष्य क्या होगा? महात्मा गाँधी जी का भी मानना था कि साधन और साध्य में साध्य से ज्यादा साधन की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
यदि इस प्रमुख गुणों का स्वयं में समावेश किया जाए तो सफलता आपसे दूर नहीं होगी।
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