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सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970

वैश्वीकरण के बाद से ही नियमित स्थायी श्रमिकों का हिस्सा श्रम बल में लगातार कम होता जा रहा है। बेरोजगारी एवं अप्रभावी श्रम नीतियों के कारण श्रम बाजार में मांग से अधिक श्रम उपलब्धता से कामगारों को नियोजक प्रायः अस्थायी संविदा/ठेका कामगारों के रूप में रखते है क्योंकि वे सस्ते श्रम होते है एवं उन्हें “रखना और निकालना” (Hire & Fire) भी आसान होता है। आज के इस टॉपिक में हम ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 (Contract Labour and Contract Labour (Regulation and Abolition) Act 1970) के बारे में चर्चा करेंगे।


ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970

ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970

संविदा/ठेका श्रमिक का अर्थ

संविदा श्रम का अर्थ है उद्यमों में कार्य के लिए ठेकेदार द्वारा लगाए गए कामगार। ये कामगार आमतौर पर कृषि क्षेत्र, निर्माण उद्योग, पत्तन और ऑयल फील्ड कारखानों, रेलवे, नौवहन एयरलाइनों, सड़क परिवहन इत्यादि में लगाए जाते हैं। हाल ही में एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (ASI) से संबंधित आंकड़ों में इस बात की पुष्टि हुई है कि गत् वर्षो में अनुबंध कामगारों की संख्या में वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि कुल रोजगार में अनुबंध कर्मचारियों की हिस्सेदारी 2000-01 में 15.5 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 27.9 हो गई जबकि इसके विपरीत सीधे तौर पर काम पर रखे गए श्रमिकों का हिस्सा उसी अवधि में 61.2 प्रतिशत से गिरकर 50.4 प्रतिशत हो गया है।

श्रम बाजार में नियमित एवं अनुबंध श्रमिक का विभाजन स्पष्ट रूप से दिखता है। इन श्रमिकों के मजदूरी, सुविधाओं और सामूहिक मोल-भाव की क्षमता में फर्क होता है। संविदा श्रमिक को श्रमिक अनुबंधकर्त्ताओं (Labour Contractors) के माध्यम से काम पर रखा जाता है तथा इन्ही ठेकेदारों के द्वारा उन्हें वेतन का भुगतान भी किया जाता है, जिस कारण संविदा श्रमिकों को नियोक्ता न तो अपना कर्मचारी मानते हैं और न ही उनके मसले पर ट्रेड यूनियन भी किसी प्रकार की बातचीत के लिए तैयार होते हैं। श्रमसंघ जो नियमित श्रमिकों के लिए बेहद उच्च मजदूरी की मांग करते हैं, अनुबंध श्रमिकों के संबंध में न्यूनतम मजदूरी पर सहमति व्यक्त करते हैं।

हाल में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र में नियुक्त संविदा श्रमिकों को नियमित श्रमिकों के समान वेतन दिए जाने की बात करते हुए कहा कि “संविदा श्रमिकों, अस्थायी श्रमिकों, दिहाड़ी मजदूरों एवं अनौपचारिक श्रमिकों को ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ न देना उनका शोषण है और यह मानवीय गरिमा के प्रतिकूल है।” 

सरकार ने ऐसे कामगारों के लिए ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 को एक केंद्रीय कानून के रूप में लागू किया। जिसका उद्देश्य उन शर्तों को विनियमित करना है जिनके तहत ठेका मजदूर काम करते हैं।

ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970

इस अधिनियम की प्रमुख बातें निम्नलिखित है-

👉 यह अधिनियम हर उस प्रतिष्ठान/ठेकेदार पर लागू होता है, जिसमें बीस या अधिक कामगार कार्यरत हैं या पूर्ववर्ती बारह महीनों के किसी भी दिन ठेका श्रमिक के रूप में कार्यरत रहे है। बिहार सहित कुछ राज्यों ने श्रम सुधारों के कदम के रूप में अधिनियम के लागू होने के लिए कामगारों की संख्या को बढ़कर बीस की जगह पचास कर दिया है।

👉 यह अधिनियम उन प्रतिष्ठानों पर लागू नहीं होगा जिनमें केवल रुक-रुक कर या आकस्मिक प्रकृति का काम किया जाता है। किसी प्रतिष्ठान में किए गए कार्य को आंतरायिक प्रकृति का नहीं माना जाएगा- (i) यदि यह पूर्ववर्ती बारह महीनों में एक सौ बीस दिनों से अधिक के लिए किया गया था, या  (ii) यदि यह मौसमी प्रकृति का है और एक वर्ष में साठ दिनों से अधिक समय तक किया जाता है।

👉 अधिनियम में मुख्य नियोजक और ठेकेदार की बात कही गयी है। मुख्य नियोजक वह व्यक्ति है जो किसी प्रतिष्ठान का अंतिम रूप से मालिक है। साथ ही ठेकेदार वह व्यक्ति है जो प्रतिष्ठान में सामानों की आपूर्ति को छोड़कर स्थापना के किसी भी कार्य को करने के लिए संविदा श्रमिम उपलब्ध करवाता है।  

👉 इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य सरकार प्रतिष्ठानों का निबंधन करने के लिए निबंधन पदाधिकारी और ठेकेदारों को लाइसेंस देने के लिए लाइसेंसिंग पदाधिकारी की नियुक्ति करेगा।

👉 अधिनियम के तहत संविदा श्रमिकों के लिए कई प्रकार के कल्याणकारी सुविधाओं का प्रावधान किया गया है, जैसे- 100 या अधिक ठेका कामगार होने पर कैन्टीन की सुविधा, स्वछ पेयजल की व्यवस्था, शौचालय एवं मूत्रालय की व्यवस्था, कार्यस्थल पर कपड़े धोने की व्यवस्था, मानवोचित दशाओं से युक्त रहने के लिए अस्थायी  विश्राम गृह, प्राथमिक उपचार किट आदि।अधिनियम की धारा 20 में स्पष्ट किया गया है कि यदि ठेकेदार संविदा श्रमिकों को कल्याणकारी सुविधायें निश्चित समय-सीमा में उपलब्ध नही करवाता है तो उसे उपलब्ध करवाने का दायित्व प्रधान नियोजक का होगा।

👉 अधिनियम की धारा 21 में कहा गया है कि ठेकेदार जिसने ठेका श्रमिक को नियोजित किया है, प्रत्येक श्रमिक को ससमय मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा। प्रत्येक मुख्य नियोजक ठेकेदार द्वारा मजदूरी के वितरण के समय उपस्थित होने के लिए अपने द्वारा अधिकृत एक प्रतिनिधि को नामित करेगा और वह नामित प्रतिनिधि मजदूरी के रूप में भुगतान की गई राशि को प्रमाणित करेगा। यदि ठेकेदार निर्धारित अवधि के भीतर मजदूरी का भुगतान करने में विफल रहता है या कम भुगतान करता है, तो मुख्य नियोक्ता मजदूरी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। इसके बाद मुख्य नियोजक श्रमिक को भुगतान की गई राशि को अनुबंध के तहत ठेकेदार को देय किसी भी राशि से कटौती करके या ठेकेदार द्वारा देय ऋण के रूप में वसूल करना।

👉 अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार को निरीक्षकों की नियुक्ति करनी है। निरीक्षक मुख्य नियोजक तथा ठेकेदार द्वारा रखे जाने वाले रेकॉर्ड एवं रजिस्टर की जाँच करेगा।

👉 अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में एक निरीक्षक को बाधित करने पर तीन महीने तक का कारवास या पांच सौ रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। 

👉यदि कोई इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम का उल्लंघन करता है, उसे तीन महीने तक का कारावास या एक हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है, और उल्लंघन जारी रखने की स्थिति में प्रतिदिन एक सौ रुपए का अतिरिक्त जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।

👉 अधिनियम की धारा 10 के अनुसार केंद्र अथवा राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी प्रतिष्ठान में किसी भी प्रक्रिया, संचालन या अन्य कार्य में ठेका श्रमिकों का नियोजन बंद कर सकती है। हालांकि किसी भी प्रतिष्ठान में ठेका श्रमिकों के नियोजन को बंद करने से पूर्व सरकार उस प्रतिष्ठान में ठेका श्रमिकों के लिए प्रदान किए गए कार्य की शर्तों और लाभों और अन्य प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखेगी, जैसे कि- ( क) क्या प्रक्रिया, संचालन या अन्य कार्य जो प्रतिष्ठान में किया जाता है, उस उद्योग या व्यवसाय के लिए आवश्यक है; (ख) क्या यह बारहमासी प्रकृति का है; (ग) क्या यह सामान्य रूप से उस प्रतिष्ठान या उसके समान किसी प्रतिष्ठान के नियमित कर्मचारियों के माध्यम से किया जाता है;  (घ) क्या पर्याप्त संख्या में पूर्णकालिक कामगारों को नियोजित करना पर्याप्त है।  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. ठेका श्रम प्रणाली क्या है?

उत्तर- किसी भी स्थापना में मुख्य नियोजक द्वारा ठेकेदार के माध्यम से अपने कार्यों को करवाना ठेका श्रम प्रणाली में आता है। इसमें कार्य करने वाले श्रमिक ठेकेदार के कर्मी होते है और मुख्य नियोजक उन्हें स्थायी कर्मी का दर्जा नही देता है।

2. ठेका श्रमिकों के क्या अधिकार है?

उत्तर- ठेका श्रमिकों को विभिन्न श्रम कानूनों के तहत दिए गए सभी अधिकार मिलते है। उन्हें न्यूनतम मजदूरी का भुगतान, ससमय मज़दूरी का भुगतान, मज़दूरी से अनाधिकृत कटौती नही करना, साप्ताहिक अवकाश, मातृत्व लाभ, कार्यस्थल पर सुरक्षा, कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से रोक, भविष्य निधि एवं कर्मचारी राज्य बीमा निगम में निबंधित करने जैसे सभी अधिकार प्राप्त है।

3. ठेका श्रमिक के मज़दूरी भुगतान का प्रावधान क्या है?

उत्तर- ठेकेदार जिसने ठेका श्रमिक को नियोजित किया है, प्रत्येक श्रमिक को ससमय मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा। प्रत्येक मुख्य नियोजक ठेकेदार द्वारा मजदूरी के वितरण के समय उपस्थित होने के लिए अपने द्वारा अधिकृत एक प्रतिनिधि को नामित करेगा और वह नामित प्रतिनिधि मजदूरी के रूप में भुगतान की गई राशि को प्रमाणित करेगा। यदि ठेकेदार निर्धारित अवधि के भीतर मजदूरी का भुगतान करने में विफल रहता है या कम भुगतान करता है, तो मुख्य नियोक्ता मजदूरी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। 

4. ठेका श्रम को कौन समाप्त कर सकता है?

उत्तर- केंद्र अथवा राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी प्रतिष्ठान में किसी भी प्रक्रिया, संचालन या अन्य कार्य में ठेका श्रमिकों का नियोजन बंद कर सकती है। 

5. ठेका श्रमिकों को कार्यस्थल पर कौन-कौन से सुविधा देना है?

उत्तर- संविदा श्रमिकों के लिए कई प्रकार के कल्याणकारी सुविधाओं का प्रावधान किया गया है, जैसे- 100 या अधिक ठेका कामगार होने पर कैन्टीन की सुविधा, स्वछ पेयजल की व्यवस्था, शौचालय एवं मूत्रालय की व्यवस्था, कार्यस्थल पर कपड़े धोने की व्यवस्था, मानवोचित दशाओं से युक्त रहने के लिए अस्थायी  विश्राम गृह, प्राथमिक उपचार किट आदि।अधिनियम की धारा 20 में स्पष्ट किया गया है कि यदि ठेकेदार संविदा श्रमिकों को कल्याणकारी सुविधायें निश्चित समय-सीमा में उपलब्ध नही करवाता है तो उसे उपलब्ध करवाने का दायित्व प्रधान नियोजक का होगा।




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