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सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

BPSC परीक्षा के पैटर्न में बदलाव; अब क्या हो रणनीति


परिवर्तन संसार का नियम है। प्रकृति में सबकुछ स्वयं को बेहतर बनाने के लिए परिवर्तित करते रहता है। समय के मांग के अनुसार व्यक्तित्व अथवा संस्था में बदलाव ही प्रगतिशीलता का आधार है। इसे प्रत्येक सिविल सेवा के अभ्यार्थी को स्वीकार कर अपनी तैयारी प्रारंभ करनी चाहिए। इसी कड़ी में 68वी बीपीएससी में बड़े बदलाव को समझा जा सकता है। यूपीएससी एवम् अन्य पड़ोसी राज्यों के सिलेबस को देखते हुए एवम् वर्तमान समय की मांग को देख कर बीपीएससी द्वारा परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया गया है। कई बार छात्रों को अनुभव होता था कि किसी ख़ास वैकल्पिक का चयन या बूम होने से विद्यार्थी डिप्टी कलेक्टर बन जाता है या ऑब्जेक्टिव परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग नहीं होने के कारण तुक्का मारकर भी लोग सफल हो जा रहे है। ऐसे में BPSC का सिलेबस परिवर्तन अपरिहार्य हो गया था। आइये समझते है बीपीएससी के नए बदलाब को और जानते है कैसे इस बदलाब में स्वयं को बेहतर बनाया जाए।

प्रारंभिक परीक्षा में बदलाब

प्रारंभिक परीक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में निगेटिव मार्किंग की शुरुआत की गयी है। जिसका मुख्य उद्देश्य तुक्केबाज और गैर-गंभीर अभ्यर्थी को प्रारंभिक परीक्षा में ही छांट कर बाहर निकाल देना। जैसे जब हम किसी अनाज में से कंकड़ को निकालते है तो पहले हाथ से चुन कर बड़े कंकडो को बहार कर देते है उसके बाद अत्यंत छोटे-छोटे कंकडों के लिए चालन का प्रयोग करते है ठीक वैसे ही निगेटिव प्रारंभिक परीक्षा के भीड़ से गैर-गंभीर छात्रों को बाहर निकाल देगा उसके बाद मुख्य परीक्षा रूपी चालन से बेहतर छात्रों को ही साक्षात्कार तक जाने देगा। प्रारंभिक परीक्षा में नाकारात्मक मार्किंग नहीं होने से कई बार वैकल्पिक परीक्षा यथा SSC, Railway आदि की तैयारी करने वाले बच्चे प्रारंभिक परीक्षा का कट-ऑफ बढ़ा देते थे और तार्किक एवं वस्तुनिष्ठ नजरिया रखने वाले बच्चे मुख्य परीक्षा के लिए चयनित नहीं हो पाते थे। अब प्रश्न के स्वरूप /प्रकृति में भी में बदलाव हुआ है। जहाँ पहले सभी वैकल्पिक प्रश्न सीधे-सीधे पूछे जाते थे वही अब कई प्रश्नों को गहराई तक उतर का पुछा जा रहा है। इसका उद्देश्य रटने की बजाय व्यापक ज्ञान के आधार पर विकल्पों का चयन करने वाले अभ्यर्थियों का चयन करना है। इसे 67 वीं BPSC के प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उदाहरण से समझा जा सकता है-

प्रश्न- किस राज्य में पहला लोकायुक्त स्थापित हुआ था? (प्रश्न संख्या-4; सीरिज-C)

क) ओडिशा   ख) केरल ग) महाराष्ट्र घ) पंजाब  ड) उपर्युक्त में से कोई नहीं/एक से अधिक

प्रश्न- भारत के वित्त आयोग के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें-

1.     वित्त आयोग एक संविधिक निकाय है।

2.     संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत वित्त आयोग स्थापित किया गया था।

3.     वित्त आयोग द्वारा की गयी सिफारिशें प्रकृति में केवल सलाहकार है।

4.     पहला वित्त आयोग 1950 में स्थापित किया गया था।

उपर्युक्त कथनों में कौन सा सही है-

       क) केवल 1 और 4               ख) केवल 3 और 4               ग) केवल 2 और 3

       घ) केवल 2 और 4                ड) उपर्युक्त में से कोई नहीं/ उपर्युक्त में से एक से अधिक

अब दोनों प्रश्नों को देखने के बाद आप समझ चुके होंगे कि जहाँ पहले प्रश्न में केवल एक जानकारी से आप प्रश्न का उत्तर दे पाएंगे वही दुसरे प्रश्न में आपको वित्त आयोग की समग्र जानकरी ही सही उत्तर तक पहुँचाने में सफल हो सकती है। यहाँ यह भी समझना है कि पांचवे विकल्प को रखते हुए अंतिम विकल्प को दो विकल्प बना दिया गया है। अर्थात कहने को तो पाँच विकल्प है लेकिन विषय की सटीक जानकारी न हो तो अंतिम विकल्प आपको दिग्भ्रमित करते हुए सही उत्तर चयन में समस्या कर सकता है। मुख्य परीक्षा के विस्तृत तैयारी से ही 70 से 80 प्रतिशत प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी हो जाती है। शेष  भाग को करेंट अफेयर्स एवम अन्य PT आधारिक किताबों के मदद से पूरा किया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा में बदलाव

मुख्य परीक्षा में पूर्व की भांति सामान्य अध्ययन के दो पेपर को ही रखा गया है। सबसे प्रमुख बदलाव वैकल्पिक विषय को ऑब्जेक्टिव बनाते हुए इसे क्वालिफिंग प्रकृति का बना दिया गया है।जिससे वैकल्पिक विषयों को लेकर भेदभाव अथवा अच्छे अंक कुछ ही वैज्ञानिक विषयों में आते हैं जबकि मानविकी विषयों में अंक कम मिलते हैं ,के भ्रम को दूर करने का प्रयास किया गया है। इसके साथ ही निबंध के पेपर को शामिल किया गया है ।इससे विद्यार्थियों के किसी विषय वस्तु पर अच्छी पकड़ को जांचा जा सके और चिंतन के स्तर को परखा जा सके। अब बदलाव के अनुरूप अभ्यर्थियों को अपने रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता है। मुख्य परीक्षा के विभिन्न पेपर में हुए बदलाव का स्वरुप निम्नवत है:-

Ø सामान्य अध्ययन-

प्रत्येक पेपर में 8 प्रश्न लिखने होंगे।

प्रत्येक खंड का प्रथम प्रश्न शार्ट  आंसर एवम अनिवार्य प्रकृति का होगा जिसमे प्रश्न पूरे सिलेबस से पूछे जायेंगे।

प्रत्येक खंड के शेष प्रश्न में 02 विकल्प होंगे जिसमे से एक ही  लिखना होगा ।इस तरह शेष प्रश्न सिलेबस से एवम 38 मार्क्स के होंगे।

GS 1 में आधुनिक भारत और भारतीय संस्कृति से ,महत्व्यपूर्ण राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय समसामयिक मुद्दों एवम संखायिकी से प्रश्न होंगे। जबकी जीएस 2 में भारतीय राजव्यस्था,भारतीय अर्थशास्त्र एवम भारत का भूगोल और   विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी के भूमिका एवम महत्व से प्रश्न होंगे।

सांख्यिकी में पूर्व में 4 में से दो प्रश्न लिखने होते थे।नए बदलाव में 02 प्रश्न में 02 विकल्प होगा जिसमे से एक एक बनाना होगा

GS 2 में भी उसी पैटर्न को अपनाया गया है।

इस प्रकार दोनों GS पेपर में शॉर्ट प्रश्न के शामिल होने से  पूरे सिलेबस को पढ़ना अनिवार्य हो गया है।

Ø वैकल्पिक विषय

वैकल्पिक विषय को ऑब्जेक्टिव बनाते हुए इसे क्वालीफाइंग बना दिया गया ।लंबे समय से विज्ञान एवम् मानविकी विषयों को प्राप्त होने वाले अंकों में अंतर से जुड़े मुद्दे उठते रहे थे जिसे इसके माध्यम से दूर करने का एक सार्थक प्रयास आयोग के द्वारा किया गया है।लेकिन क्वालीफाइंग हो जाने से वैकल्पिक विषयों के प्रति आकर्षण में कमी आना स्वाभाविक है।

इसका चयन करते समय सामान्य अध्ययन में उस विषय की भूमिका को भी ध्यान में रखना ज्यादा तार्किक होगा।वैसे विषय का चयन अभ्यर्थियों के लिए लाभदायक होगा जिसका सामान्य अध्ययन में उपयोगिता हो ताकि सामान्य अध्य्यन की तैयारी करते समय ही उस विषय की आधारभूत ज्ञान प्राप्त हो जाएं। पहले की तुलना में वैकल्पिक विषयों पर समय कम  देना होगा लेकिन इसे नजरंदाज करके भी नहीं चला जा सकता है।

वैकल्पिक विषय में बहुविकल्पीय 100 अंक के होंगे तथा 40 अंक में आप उत्तीर्ण हो जायेंगे। इसमें प्राप्त अंक आपके स्कोर में जोड़ा नही जायेगा।

Ø निबंध

निबंध का एक पृथक पेपर को नए सिलेबस में शामिल किया गया है।निबंध किसी भी विषय वस्तु पर अभ्यार्थी की समझ और आधारभूत ज्ञान के साथ लेखन शैली को परखने का बेहतर माध्यम होता है। 3 खंडों में 03 भिन्न प्रकार के विषयों पर निबंध पूछे जायेंगे ।100- 100 अंकों के 3 निबंध लिखने होंगे ।

निबंध में मुख्यतः राष्ट्रीय ,अंतरराष्ट्रीय समसामयिक मुद्दों,सामाजिक मुद्दे,बिहार से जुड़े ऐतिहासिक एवम आधुनिक मुद्दे के प्रश्न होंगे। यूपीएससी की भांति संभतः अमूर्त विषयों पर भी प्रधान पूछे जाने की संभावना है।अभ्यर्थियों से विशेष आग्रह होगी की निबंध को लेकर बिलकुल लापरवाह नहीं रहें। निबंध लेखन एक सतत प्रक्रिया है।

परीक्षा से पहले कुछ विषयों पर निबंध लिख लेंगे,परीक्षा हॉल में लिख लेंगे,मेरा निबंध लेखन शैली अच्छी है आदि" विचारों अथवा रणनीति से बचने का प्रयास करेंगे।सतत अभ्यास से से आपके निबंध निश्चित रूप से अच्छे हो जायेंगे।

निबंध लिखते समय अपनी तैयारी और रुचि को प्राथमिकता देंगे जिसमे आप सहज हो क्योंकि आपकी रुचि और सहजता आपके आंतरिक विचारो को बाहर लाने  में मददगार होती है । मूर्त विषयों पे निबंध लिखना अपेक्षाकृत आसान होता है क्योंकि आपके सामान्य अध्ययन के ज्ञान का उपयोग हो जाता है।जबकि अमूर्त विषयों पर निबंध लिखना तुलनात्मक रूप से आसान नहीं है। इसमें विषय के पीछे के भाव को समझना आवश्यक है।

निबंध  लिखते समय उसकी शुरुआत  बहुत ही सारगर्भित होनी चाहिए।आप इसकी शुरुआत किसी अच्छे विद्वान के व्यक्तव से,किसी प्रमाणिक संस्था के परिभाषा से अथवा किसी अच्छी कहानी से कर सकते हैं।खुद के अनुभव से जुड़े घटना से भी किसी गंभीर सामाजिक मुद्दे के भूमिखकी शुरुआत किया जा सकता है।

साथियों बदलाव को  हमेशा स्वीकर करते हुए बदली परिस्थितियों के अनुरूप खुद में बदलाव लाकर  सकारात्मक प्रयास ही आपको कामयाबी की ओर ले जाती है। बीपीएससी द्वारा किए गए बदलाव आपको आपमें परिवर्तन का एक अवसर देती है।आप इसे अवसर मानकर अपनी कमियों पर लगातार काम करें।निश्चित रूप से आप एक दिन अपनी  कमियों पर विजयी होकर आप अपने जीवन में सफलता पाएंगे और अपना मुकाम हासिल कर अपने परिवार,समाज और राज्य के लिए अपनी उपयोगिता साबित कर पाएंगे।मनुष्य का महत्व उसकी उपयोगिता से होती है और उसकी उपयोगिता उसके प्रयासों से निर्धारित होती है।

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