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Showing posts from March, 2023

सरकारी विभागों के मजदूरों के लिए श्रम कानून (Labour Law for Outsourcing Workers)

 

भारतीय संविधान में श्रमिकों से संबंधित प्रावधान

सभ्य कहलाने के लिए, एक समाज को अपने श्रमिक वर्ग को मनुष्य के रूप में सम्मान और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार देना होगा। यह सोच मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और संयुक्त राष्ट्र, संगठन की प्रस्तावना में निहित है। मजदूर वर्ग की आकांक्षा राष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्र के संविधान में अभिव्यक्त होती है। भारत ने स्वतंत्र होने के बाद, 26 अप्रैल 1949 को एक वृहत एवं शक्तिशाली संविधान को अपनाया। भारतीय संविधान एक अद्वितीय बुनियादी राष्ट्रीय दस्तावेज है। शासन के लिए बुनियादी सिद्धांत प्रदान करने के अलावा, यह समाज के कमजोर वर्ग, विशेष रूप से श्रमिक वर्ग की आकांक्षाओं को यथेष्ट रूप से प्रस्तुत करता है। यह भी इतिहास की एक अजीब घटना है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम और मजदूर वर्ग की मुक्ति का संघर्ष एक साथ हुआ और हमारे नेताओं ने मजदूरों की भलाई और भारत की आजादी दोनों के लिए संघर्ष किया। इस दौरान उन्होंने मजदूर वर्ग से कुछ वादे और प्रतिज्ञा किए, जिन्हें आजादी के बाद पूरा किया जाना था। उन सभी वादों और प्रतिज्ञाओं की अभिव्यक्ति संविधान में मिलती है। भारतीय संविधान की त्रिमूर्ति, प्रस्तावना, मौलिक अधिकार ...

प्रवासी श्रमिक एवं अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979

देश के विभिन्न क्षेत्रों का असमान विकास होने के कारण यहां श्रमिक एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं। वे अधिकांश असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं और उन्हें मजदूरी, आवास, स्वास्थ्य आदि से जुडी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हाल ही में देश में COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को देखकर भविष्य में इस वर्ग को ऐसी चुनौतियों से बचाने के लिए एक बेहतर विधिक प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई।मार्च, 2020 को देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू पहले लॉकडाउन के बाद देश के कई हिस्सों में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हुई। इस दौरान मज़दूरों को रोज़गार, आश्रय, भोजन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ा। कम आय वाले प्रवासी श्रमिकों को ज्यादातर मामलों में शोषण का शिकार होना पड़ता है। आज के इस टॉपिक में हम प्रवासी श्रमिक एवं अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979 (Migrant Workers and Inter-State Migrant Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979) के बारे में च...

ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970

वैश्वीकरण के बाद से ही नियमित स्थायी श्रमिकों का हिस्सा श्रम बल में लगातार कम होता जा रहा है। बेरोजगारी एवं अप्रभावी श्रम नीतियों के कारण श्रम बाजार में मांग से अधिक श्रम उपलब्धता से कामगारों को नियोजक प्रायः अस्थायी संविदा/ठेका कामगारों के रूप में रखते है क्योंकि वे सस्ते श्रम होते है एवं उन्हें “रखना और निकालना” (Hire & Fire) भी आसान होता है। आज के इस टॉपिक में हम ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 (Contract Labour and Contract Labour (Regulation and Abolition) Act 1970) के बारे में चर्चा करेंगे। ठेका श्रमिक एवं ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 संविदा/ठेका श्रमिक का अर्थ संविदा श्रम का अर्थ है उद्यमों में कार्य के लिए ठेकेदार द्वारा लगाए गए कामगार। ये कामगार आमतौर पर कृषि क्षेत्र, निर्माण उद्योग, पत्तन और ऑयल फील्ड कारखानों, रेलवे, नौवहन एयरलाइनों, सड़क परिवहन इत्यादि में लगाए जाते हैं। हाल ही में एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (ASI) से संबंधित आंकड़ों में इस बात की पुष्टि हुई है कि गत् वर्षो में अनुबंध कामगारों की संख्या में वृद्धि हुई है। उल्लेख...

बाल श्रम तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

"बाल श्रम" शब्द को सामान्यता बच्चों द्वारा किये गए ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी शिक्षा और उनकी गरिमा से वंचित करता है, और जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में (5-14) आयु वर्ग के कामकाजी बच्चों की कुल संख्या 43.53 लाख है। जिसमें से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश भारत में कुल कामकाजी बच्चों का लगभग 55% हैं। 2021 में ILO द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “बाल श्रम: वैश्विक अनुमान 2020, रुझान और आगे की राह” में आईएलओ और यूनिसेफ ने अनुमान लगाया है कि दुनिया भर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर 160 मिलियन हो गई है जिसमें पिछले चार वर्षों में 8.4 मिलियन बच्चों की वृद्धि हुई है और COVID-19 के प्रभावों के कारण लाखों बच्चे जोखिम में हैं। आईएलओ के इस रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र में बाल श्रम में 70 प्रतिशत (11.2 करोड़) बच्चे हैं, इसके बाद सेवा क्षेत्र में 20 प्रतिशत (3.14 करोड़) और उद्योग में 10 प्रतिशत (1.65 करोड़) हैं। 5 से 11 वर्ष की आयु के लगभग 28 प्रतिशत बच्चे और ...

बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

बंधुवा श्रमिक की प्रथा समाज के सामंती सोच की देन है जो परम्परा के रूप में काफी समय से चलती चली आ रही है। ये भोले-भाले श्रमिक अपने मालिकों से जो ऋण लेते है उसके ऋण-जाल में उलझ कर न तो कभी मूलधन चूका पाते है और न ही सूद से मुक्ति पाते है। ऐसे में पीढ़ी दर पीढ़ी उस मालिक के यहाँ सपरिवार कार्य में लगे रहते है। बिहार में हरवाहा, बारामासी तथा कमियाँ जैसे नामों से इन्हें पुकारा जाता रहा है। आज के इस टॉपिक में हम  बंधुआ श्रमिक एवं  बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 (Bonded Labour and Bonded Labour System (Abolition) Act, 1976)  के बारे में चर्चा करेंगे। बंधुआ श्रमिक एवं बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 सामान्य अर्थों में जब एक व्यक्ति के श्रम या सेवाओं को उसके कर्ज या अन्य दायित्वों के पुनर्भुगतान के लिए गिरवी के रूप में रख लिया जाता है तो उसे हम बंधुआ मजदूरी या ऋण बंधन (Bondage debt) के रूप में जानते है। ऋण चुकाने के लिए उस व्यक्ति को कितनी सेवा देनी है और कितने दिनों तक देनी है यह बंधुआ श्रम प्रथा में अपरिभाषित रहता है। बंधुआ श्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी किया जा सकता है...

श्रम, श्रम विधान एवं श्रम विधान के सिद्धांत

सामान्यतया हम परिश्रम या कार्य को ही श्रम के रूप में जानते है परंतु अर्थशास्त्र में श्रम को विशेष अर्थों में लिया जाता है। यहाँ श्रम से तात्पर्य उन सभी मानवीय शारीरिक तथा मानसिक श्रम से है जो उत्पादन के उद्येश्य से किया जाता है। श्रम एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रयासों की मात्रा है। श्रम उत्पादन के चार कारकों में से एक है जो आपूर्ति को चलाता है। सुबह को यदि आप पार्क में टहलते है तो वह अर्थशास्त्र के नजर में श्रम नहीं है क्योंकि उसका उद्येश्य धनोपार्जन नहीं है। मार्शल के अनुसार “श्रम से अभिप्राय मनुष्य के आर्थिक कार्य से है चाहे वह हाथ से किया जाए या मस्तिष्क से किया जाए।” जेवंस के अनुसार “श्रम वह मानसिक या शारीरिक प्रयत्न है जो अंशतः या पुर्णतः कार्य से प्राप्त होनेवाले सुख के अतिरिक्त, अन्य किसी आर्थिक उद्येश्य से किया जाता है।” अर्थात उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र में श्रम के लिए मानवीय प्रयत्न, मानसिक एवं शारीरिक श्रम, आर्थिक लाभ तथा भौतिक या अभौतिक पदार्थों का निर्माण होना आवश्यक है। आज के...